जानें क्यों चाणक्य ने कहा था कि शत्रुता सिर्फ मूर्खों की ही होती है

आचार्य चाणक्य को आप और हम एक बेहतरीन नीतिशास्त्र, महान प्रशिक्षक और ऐसे अर्थशास्त्री के तौर पर जानते हैं जिनकी तुलना किसी से संभव नहीं है। चाणक्य के वचन, उनकी नीतियां और उनके आदर्श आज भी बहुत से लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं।

इन सभी खूबियों के अलावा चाणक्य को राजनीति का भी अग्रदूत माना गया है। वे एक अतुलनीय डिप्लोमैट यानि कूटनीतिज्ञ, जो व्यक्ति और परिस्थिति के अनुसार सही और गलत जैसी बात कहते थे।

चाणक्य के वचन परिस्थिति के अनुसार उपयुक्त थे, लेकिन फिर भी उन्हें हमेशा विवादों का सामना करना पड़ा।

उनके कथन जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूते थे, उनका कहना था “नास्ति बुद्धिमतां शत्रुः”। इसका अर्थ है कि समझदार व्यक्ति का कोई शत्रु नहीं होता है।

लेकिन उनकी यह बात भी विवादों से घिरी है, बहुत से लोग ये मानते हैं कि समझदार व्यक्ति बहुत से लोगों के लिए खतरा बन सकता है। इसलिए ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं होगी जो उसे अपने रास्ते से हटाने का प्रयत्न करे। तो फिर यह कैसा संभव है कि समझदार व्यक्ति का कोई शत्रु ना हो।

लेकिन अगर आप भी कुछ ऐसा ही सोचते हैं तो यकीन मानिए ऐसा कुछ नहीं है। चाणक्य हमेशा अच्छे आचरण और परिष्कृत चरित्र की बात कहते रहे हैं। लेकिन उनके लिए ये इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं, ये जानने का प्रयत्न करते हैं।

चाणक्य के अनुसार किताबें पढ़ना अच्छी बात है, लेकिन जब तक उन बातों को व्यवहार में नहीं लाया जाएगा, जब तक मनुष्य व्यवहारिक पहलुओं से अवगत नहीं होगा, तब तक वो कुछ सीख नहीं पाएगा।

यह कहना कदापि गलत नहीं होगा कि उनके लिए हमेशा व्यवहारिक ज्ञान सर्वोपरि रहा। चाणक्य के अनुसार दोनों में से एक भी विद्या का ना होना नुकसान पहुंचा सकता है।

चाणक्य के अनुसार जिस तरह हमारा पैसा अगर किसी और के पास रहे तो वह हमारे किसी काम का नहीं होता, कुछ इसी तरह ज्ञान अगर सिर्फ किताबों में ही रहेगा, तो वह हमारे किसी काम का नहीं है। उसे ग्रहण करना ही एकमात्र विकल्प है।

शिक्षित इंसान अगर सामने वाले व्यक्ति को सम्मान देना नहीं जानता, अपने अलावा वह किसी और की कद्र नहीं करता तो उसका वह ज्ञान भी किसी काम का नहीं है।

लेकिन क्या वास्तव में एक बुद्धिमान इंसान शत्रुता से दूर रहने के बावजूद अपने लिए सफलता की राह चुन सकता है, अपनी सफलता की गारंटी ले सकता है।

एक ऐसे राज्य की कल्पना कीजिए जहां सभी व्यक्ति समझदार हैं और उनकी बुद्धिमता की वजह से उनका कोई दुश्मन या शत्रु भी नहीं है। ऐसे मनुष्य का बहुत सी चीजों पर नियंत्रण रहता है और बहुत सी चीजें उसके नियंत्रण से बाहर होती हैं, जैसा कि किसी भी आम इंसान के साथ होता है।

एक बुद्धिमान इंसान हर वो चीज करता है, हर वो पैंतरा आजमाता है जिसकी वजह से वह किसी लड़ाई-झगड़े या किसी द्वंद में ना पड़े। किसी क्लेश में ना पड़कर वह अपना बहुत सा समय बचा लेता है, निश्चित तौर पर वो अपना वह समय अपने काम में लगा सकता है, इस समय का प्रयोग वह अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कर सकता है।

मनुष्य हमेशा अपने अहंकार को शांत करने की कोशिश करता रहता है, वह यह नहीं सोचता कि इस चक्कर में वह अपने बहुत से कार्यों से दूर है। वह इस समय का उपयोग किसी सही स्थान पर कर सकता है। मनुष्य को समझना चाहिए कि किसी से शत्रुता मोल लेकर अपने लिए ही समस्या बुला रहा है।

आपका क्रोध, आपका गुस्सा और अहंकार हमेशा आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। ऐसा करके आप समस्या को सुलझाने की जगह अपने लिए नई समस्या का निर्माण कर रहे होते हैं।

एक समझदार इंसान इस बात को भली-भांति समझता है कि बहस में पड़कर कुछ भी संभव नहीं है। अगर सामने वाला व्यक्ति मूर्ख है और आपकी बात को नहीं समझ रहा है तो निश्चित तौर पर चुप रहकर अपना कार्य करने में ही भलाई है। अपने तथाकथित सम्मान को बचाने के लिए कुछ भी करना व्यर्थ है।

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