भारत का इतिहास – कितना सही कितना गलत?

भारत में हमेशा से आध्यात्मिक संस्कृति रही है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि यहां लोग बस आंखें बंद करके बैठे रहते थे। यहां लोग सिर्फ घरों में बंद नहीं बैठे रहे, बल्कि पूरी दुनिया का भ्रमण किया। अगर आप अतीत पर नजर डालें तो दुनिया के कुछ बहुत पुराने बंदरगाह इसी भूमि पर बने। गुजरात के लोथल में बना बंदरगाह तकरीबन पांच हजार साल पुराना है, जो अरब सागर के पास स्थित साबरमती नदी पर बना है। यह बंदरगाह किसी भी मौसम में जहाजों को लंगर डालने और उनकी देखरेख से जुड़ी जरूरतों को पूरा कर सकता था। यहां के लोगों को ज्वार-भाटा संबंधी गतिविधियों, सागर व नदियों के बारे में इतनी जबरदस्त जानकारी थी कि उन्होंने बंदरगाहों को इस तरह बनाया, ताकि उसमें गाद इकठ्ठी न हो सके।एक और काफी पुराना बंदगाह है- तमिलनाडु का पूम्पुहर । हालांकि समुद्र का जलस्तर कई मीटर बढऩे से अब यह ढांचा पानी के नीचे चला गया है। दुनिया में पहली नौपरिवहन या कहें दुनिया की सैर सबसे पहली बार यहीं से शुरु हुआ था। ऐसे तमाम साक्ष्य और किंवदंतियां हैं कि यहां से लोग दक्षिणी अमेरिका पहुंचे और उस देश के साथ उन्होंने संस्कृति व लोगों को आदान-प्रदान किया। जब हाल के कुछ सौ सालों में हमारे यहां विदेशी आक्रमणकारी आए तो उनका मूल मकसद सबसे पहले यहां के इतिहास को मिटाना था, क्योंकि वे जानते थे कि लोग तभी उठ खड़े होते और लड़ते हैं, जब उन्हें उसमें कुछ गौरव महसूस होता है।आज आप जो भारतीय इतिहास पढ़ते हैं, उसका ज्यादातर हिस्सा अंग्रेजों ने लिखा है। अंग्रेजों ने हमारा इतिहास ऐसे लिखा है कि यहां कोई भी चीज छ: हजार साल से पुरानी नहीं है। इस तरह से सारा इतिहास इसी कालखंड तक सिमट कर रह गया, अन्यथा भारत एक ऐसा उद्यमी देश रहा है, जिसका इतिहास उससे कहीं ज्यादा प्राचीन है। यहां के लोग अपनी सीमाओं से निकल कर व्यापार करते रहे हैं। सिल्क रूट के जरिए बड़े पैमाने पर पश्चिमी एशिया के साथ व्यापार होता रहा है। हालांकि आज उस इलाके को पश्चिम एशिया कोई नहीं कहता, सब उसे खाड़ी देश या पूर्व मध्येशिया कहते हैं। जबकि एशिया का सुदूर पश्चिमी भाग आज लेबनान, फिलीस्तीन व इजरायल व सीरिया जैसे देशों के नाम से जाना जाता है। उन दिनों पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका के बीच बड़े पैमाने पर व्यापार होता था।आज से तकरीबन तीन सौ साल पहले तक दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था का एक चौथाई हिस्सा भारत की अर्थव्यवस्था हुआ करती थी। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक बड़ा हिस्सा भारत के जरिए होता था। लेकिन तकरीबन 250 सालों तक हमें बुरी तरह से लूटा गया और हमारी गिनती दुनिया के सबसे गरीब देशों में होने लगी। आज देश में उद्यम को बढ़ावा देने के लिए एक नई पहल शुरू की गई है, लेकिन इस मामले में सिस्टम से जुड़ी बहुत सारी दिक्कतें हैं, जिसे सरकार और देश के नीति-निर्माता सुधारने की कोशिश में लगे हुए हैं।

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