महाभारत : कथा है पुरुषार्थ की, स्वार्थ की, परमार्थ की

कृष्ण द्वैपायन एक महान ऋषि थे, जिन्हें व्यास के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने न सिर्फ महाभारत की कथा लिखी, बल्कि वेदों का संकलन भी किया। कहा जाता है कि वेद एक लाख वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं। उस ज्ञान को मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाया जाता रहा। दरअसल लोगों को ध्वनि के महत्व और प्रभाव के बारे में पता था, इसलिए उन्होंने उसे लिपिबद्ध नहीं किया। हमारे इस्तेमाल की सभी चीजों में ध्वनि,भौतिकता का सबसे सूक्ष्म रूप है। इसका अगला स्तर, जिसमें आपके मन में घटित होने वाली चीजें भी शामिल हैं, विद्युत-चुम्बकीय तरंगें हैं। उन्होंने विचारों, भावनाओं और बाकी चीजों को ज्यादा अहमियत नहीं दी मगर ध्वनि को महत्वपूर्ण माना क्योंकि यह भौतिकता का सबसे सूक्ष्म रूप है और इससे व्यापक असर पैदा किया जा सकता है।गंगा के समृद्ध मैदानों में एक अकाल आने तक वेद मौखिक परंपरा से ही आगे बढ़ते रहे। वह अकाल 14 सालों तक रहा।

कहा जाता है कि उतने सालों में बारिश की एक बूंद तक नहीं हुई। फसलें सूख गईं और उस समय मौजूद सभ्यता कुम्हलाने लगी। लोग वेदों का पाठ करना भूल गए क्योंकि वे यहां-वहां से खाने की चीजें इकट्ठी करने में व्यस्त थे। वे पूरी तरह अपनी परंपराएं भूल गए। जब फिर से बारिश आई और ब्यास ने सभ्यता को हुए नुकसान को देखा तो उन्हें लगा कि वेदों को लिख लेना ठीक रहेगा। उन्हें चार खंडों में बांटा गया, जिन्हें ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद कहा गया। पारंपरिक क्रम यही है, वह नहीं जिसे लोग आजकल इस्तेमाल करते हैं। आज भी इन चार वेदों को इंसानों द्वारा अब तक रचित सबसे महान ग्रंथ माना जाता है।वह एक महान, सनातन कहानी भी लिखना चाहते थे, जो हमेशा लोगों के लिए प्रासंगिक रहे। उन्होंने यह कहानी दो लोगों को सुनाई – पहले अपने शिष्य वैशंपायन को, जिसने बहुत विस्मित होकर यह कहानी सुनी। शिष्य चीजों को बिगाड़ सकते हैं। इंसानी याद्दाश्त के जरिये मौखिक संप्रेषण की विधि सतयुग में काम करती थी, जब लोगों के पास एक खास तरह की दिमागी क्षमता होती थी। कलियुग के आने के साथ-साथ, मानव दिमाग और उसकी याददाश्त की क्षमता कम हो गई। व्यास को लगा कि उन्हें कोई जोखिम नहीं लेना चाहिए, इसलिए उन्होंने वेदों को लिखने के लिए एक देवता – गणपति को तैयार किया। एक व्यक्ति उस कहानी को लिख रहा था और दूसरा सिर्फ सुन रहा था। मगर दुर्भाग्यवश, लिखित ग्रंथ इतना आकर्षक था, वह इतना महान साहित्यिक ग्रंथ था कि देवताओं ने आकर उसे चुरा लिया। महाभारत को हम आज जिस रूप में जानते हैं, वह सिर्फ वह हिस्सा है, जो वैशंपायन ने याद रखा था, यह गणपति का लिखा हुआ ग्रंथ नहीं है। युद्ध के समाप्त होने के बाद, वैशंपायन ने हस्तिनापुर के सम्राट जनमेजय को यह कहानी सुनाई। सम्राट जनमेजय युधिष्ठिर के दूसरे उत्तराधिकारी थे। हम आज जिन एक लाख श्लोकों को जानते हैं, वे व्यास के बोले हुए श्लोकों का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा है। इन एक लाख श्लोकों में से मैं 8 फीसदी से भी कम के बारे में बताउंगा। आपको इसमें पूरी तरह शामिल होना होगा। आपको इसे किसी और की नहीं, बल्कि अपनी कहानी की तरह देखना होगा, उसका एक हिस्सा बनना होगा। हमें किसी और की कहानी नहीं सुननी है, बल्कि उस कहानी से होकर गुजरना है। अपने आज के मूल्यों, नैतिकताओं और नीतियों के पैमाने पर 5000 साल पहले मौजूद रहे लोगों को देखने और समझने की कोशिश करना या उनके बारे में राय कायम करना गलत होगा। मैं चाहता हूं कि आप उनकी तरह सोचें, उनकी जगह खुद को रख कर इस तरह अनुभव करें, जैसे उन्होंने किया था। उन दिनों धरती के जीवन का तमाम दूसरे रूपों के बीच मौजूद जीवन से अक्सर लेन-देन होता रहता था। महाभारत के ऐसे तमाम पहलू हैं, जिन पर आप शायद विश्वास नहीं कर पाएंगे मगर आपको किसी चीज पर अविश्वास नहीं करना चाहिए। 21वीं सदी में होने के कारण हम चीजों को अपनाने से ज्यादा उनका चीड़-फाड़ करने में यकीन रखते हैं। मगर फिलहाल मैं चाहता हूं कि आप इस कहानी और इसके किरदारों को अपनाएं। इसके इंसानों, जानवरों, यक्षों, किन्नरों, गणों, देवों, देवताओं और देवियों, सभी को गले लगाएं। तभी आप समझ पाएंगे कि वह वैसा क्यों था और सबसे बढ़कर वह आपके लिए प्रासंगिक क्यों है। चीड़-फाड़ करने पर आप उसकी सारी भावना को खो देंगे। हजारों साल पहले, वृहस्पति नाम के एक पुजारी और विद्वान थे। स्वाभाविक रूप से देवों के राजा इंद्र ने खुद उन्हें अपने आधिकारिक पुजारी का पद सौंपा था। उस समय पुजारी बहुत महत्वपूर्ण होता था क्योंकि वह द्वापर युग था, जिस समय विधि-विधान लोगों के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू था। वे अपने जीवन, अपने आस-पास की स्थितियों और दूसरे लोगों के जीवन को प्रभावित करने के लिए तरीकों और पदार्थों का इस्तेमाल करना सीखते थे। देश के दक्षिणी हिस्से में इस विधि विधान वाली संस्कृति के अवशेष अब भी बरकरार हैं।देश के किसी दूसरे भाग के मुकाबले केरल में कहीं ज्यादा और अधिक शुद्ध रूप में विधि-विधान सुरक्षित हैं। उत्तरी भाग में, जहां यह कहानी घटित हुई थी, यह पूरी तरह और बहुत बुरी तरह से भ्रष्ट हो गया है। मध्य भारत ने कुछ हद तक इसे बरकरार रखा है, मगर बगैर उसकी गहन समझ के। सबसे बदतर स्थिति आप तिब्बत में पाएंगे, जहां मूल हिंदू विधि-विधानों को बहुत बुरी तरह बिगाड़ दिया गया है। दुर्भाग्यवश, गौतम बुद्ध को विधि-विधानों से प्रताड़ित किया जा रहा है। उन्होंने मानव जाति को इन विधि-विधानों से आजाद करने में अपना जीवन लगा दिया क्योंकि वह कलियुग और द्वापर युग के संधिकाल में थे। वह जानते थे कि पिछले द्वापर युग में, लोग बहुत ज्यादा धार्मिक अनुष्ठानों में लगे थे और वह मानव जाति को इन रीति-रिवाजों से राहत देना चाहते थे। इसीलिए, उन्होंने सिर्फ ध्यान पर जोर दिया। मगर आज, बौद्ध संस्कृतियों में किसी हिंदू संस्कृति से ज्यादा अनुष्ठान और विधि-विधान हैं।

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