चाणक्य से जुड़े अनजाने फैक्ट्स, क्या था उनकी सफलता का राज?

अर्थशास्त्र और राजनीति के महान ज्ञाता चाणक्य का संपूर्ण जीवन उपलब्धियों से भरा हुआ है। एक साधारण से बालक को चक्रवर्ती सम्राट बनाने के उनके सपने ने देश को चंद्रगुप्त मौर्य जैसा शासक दिया था।

अर्थशास्त्र के महारथी चाणक्य को उस काल में “काला पंडित” कहा जाता था। वे बेहद कुरूप थे लेकिन उनकी मानसिक सक्षमता को परख पाना किसी के बस की बात नहीं थी।

उन्होंने एक बालक को ना सिर्फ शारीरिक और मानसिक रूप से बलवान बनने के लिए प्रेरित किया बल्कि उसे यह भी सिखाया कि किस तरह एक राजा एक पिता की तरह अपनी प्रजा की देखभाल करता है।

कैसे वो अपनी प्रजा पर अपना सर्वस्व लुटाने के लिए तैयार रहता है और जरूरत पड़ने पर कड़े निर्णय भी ले सकता है।

चाणक्य की खूबियां

चाणक्य की खूबियां और उनकी उपलब्धियां यहीं नहीं समाप्त होतीं। आज देश-विदेश की सरकारों से लेकर निजी संस्थाओं तक छिपे रहस्यों या किसी के जीवन में चल रही गतिविधियों का पता लगाने के लिए जासूसों का प्रयोग करते हैं। यह अवधारणा आज की नहीं बल्कि चाणक्य द्वारा शुरू की गई थी।

शायद आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन यह सच है कि चाणक्य के पास अपने जासूसों की एक बड़ी सेना थी, जो चंद्रगुप्त मौर्य की सहायता करती थी। इनका जिक्र स्वयं चाणक्य ने अपनी किताब “अर्थशास्त्र” में किया है।

अर्थशास्त्र पुस्तक के दसवें और ग्यारहवें अध्याय में इन जासूसों, उनके उद्देश्यों, उनकी भर्ती का आधार और जिम्मेदारियों के विषय में बताया गया है।

मूलत: चाणक्य ने अलग-अलग कार्यों के लिए 9 तरीके के जासूसों को तैयार किया था, जिनके कार्यों और जिम्मेदारियों को दो भागों में बांटा गया था।

चाणक्य द्वारा बनाए गए जासूसों की पहली श्रेणी में पांच तरीके के जासूसों को भर्ती किया जाता था जिन्हें राजा की पांच आंखें कहा जाता था। ये जासूस सीधे राजा के संपर्क में रहते थे और अन्य जासूसों से ऊपर होते थे।

राजा के प्रति इनकी जिम्मेदारी लंबे समय तक होती थी। इनका कार्य राजा की कैबिनेट पर नजर रखना और उन लोगों के संपर्क में रहना होता था जो किसी को भी बड़ी आसानी से प्रभावित कर सकते थे।

दूसरी श्रेणी के जासूसों को कम समयावधि और किसी विशिष्ट कार्य के लिए रखा जाता था, उद्देश्य की समाप्ति के बाद उनका कार्य समाप्त हो जाता था।

इन जासूसों का मुख्य काम अलग-अलग स्थान पर जाकर जानकारी एकत्र करना होता था।

चाणक्य की सोच समय से काफी आगे की थी। वह संभावनाओं को आधार बनाकर चलते थे और उस बात तक भी पहुंच जाते थे, जिसके लक्षण तो नहीं दिख रहे होते थे परंतु संभावना बनी रहती थी।

वह एक बात के प्रति हमेशा सतर्क रहते थे कि एक श्रेणी के जासूस यह बिल्कुल ना जानते हों कि दूसरी श्रेणी के जासूस कौन से हैं। उनका मानना था कि जितनी जानकारी जरूरी होती है, अगर कोई व्यक्ति उससे ज्यादा जान जाता है तो वह अपने मार्ग से भटक सकता है।

इसके अलावा वह जासूसों के साथ जरूरत से ज्यादा बात करना तक सही नहीं समझते थे। चाणक्य का मानना था कि ज्यादा संप्रेषण की वजह से वो बात भी जासूसों तक पहुंच जाती है जो नहीं पहुंचनी चाहिए।

चाणक्य के जासूसों में हर कोई शामिल था, साहित्यकारों से लेकर अध्यापक, शिक्षक जादूगर, चोर, विद्यार्थी, हर कोई चाणक्य का जासूस होता था। लेकिन एक जासूस ना तो दूसरे जासूस का नाम जानता था और ना ही उसकी भूमिका।

चाणक्य को पता था कि मंदबुद्धि लोग और शारीरिक विकलांगता से ग्रस्त लोगों पर कोई भी शक नहीं करता इसलिए चाणक्य के जासूसों की फौज में राजा के लिए जासूसी करने वालों में ऐसे लोग भी शामिल थे।

नौ प्रकार के जासूसों में चाणक्य ने महिलाओं को ना सिर्फ शामिल किया था बल्कि इनको ऐसे काम भी सौंपे जाते थे जो अन्य किसी के बस से बाहर होते थे। इतना ही नहीं महिला जासूस ही केवल राजा के समक्ष प्रस्तुत हो सकती थीं।

चाणक्य द्वारा जासूसों को ऐसे-ऐसे प्रलोभन दिए जाते थे जिसे जानने के बाद उनका मुंह खुला का खुला रह जाता था। वे अपने जासूसों को ऐसी चीज ईनाम में देते थे जो वह कभी खरीद नहीं सकते थे। इसीलिए उनका कोई भी जासूस उनसे बगावत नहीं करता था।

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