चाणक्य का मातृ प्रेम

‘चाणक्य ! तुम्हारे मुख के आगे के दोनों दांतों से जाहिर होता है कि तुम चक्रवर्ती बनोगे.’ आगत संत ने भविष्यवाणी की. भविष्यवाणी सुनने के बाद मां बोली – ‘बेटा ! ईश्वर करे तुम चक्रवर्ती बनो’. पर व्यक्ति धन और अधिकार पाकर अपने सगे-सम्बन्धियों को भूल जाता है. तुम वैसा ही न कर बैठना. इतना कहते-कहते माता की आँखों से दो बूँद आंसू छलक आये. आंसू प्रसन्नता के थे लेकिन चाणक्य ने कुछ और ही समझा. वह दौड़कर आँगन में गया और अपने मुंह के आगे के दोनों दांत तोड़ लाया.
बेटे का लहू – लुहान मुंह देखकर माँ ने घबराकर कहा- यह क्या किया ?
मैंने चक्रवर्ती के लक्षणों को समाप्त कर दिया है माँ ! चाणक्य ने कहा. माँ ! अब रोना मत. मैं जीवन भर तुम्हारे पास रहूँगा. मेरे लिए राज्य वैभव से अधिक वैभवशाली तुम हो.

 

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