चाणक्य ने विद्यार्थी जीवन की कई नीतियों के बारे में बताया है। हर विद्यार्थी को उन नीतियों का ध्यान रखना चाहिए। अगर चाणक्य की बताई गई नीतियों का पालन किया जाए, तो विद्यार्थी सही रूप से शिक्षा प्राप्त करने में सफल होता है। कामक्रोधौ तथा लोभं स्वायु श्रृड्गारकौतुरके। अतिनिद्रातिसेवे च विद्यार्थी ह्मष्ट वर्जयेत्।। अर्थात- विद्यार्धी के लिए आवश्यक है कि वह काम, क्रोध तथा लोभ से और स्वादिष्ठ पदार्थों तथा श्रृंगार एवं हंसी-मजाक से दूर रहे। निद्रा (नींद) और अपनी शरीर सेवा में अधिक समय न दे। इन आठों के त्याग से ही विद्यार्थी को विद्या प्राप्त हो सकती है।
जिस व्यक्ति के मन में काम भावनाएं उत्पन्न हो जाती है, वह हर समय अशांत रहने लगता है। ऐसा व्यक्ति अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए सही-गलत कोई भी रास्ता अपना सकता है। कोई विद्यार्थी अगर काम भावनाओं के चक्कर में पड़ जाए, तो वह पढ़ाई छोड़कर दूसरे कामों की ओर आकर्षित होने लगता है। उसका सारा ध्यान केवल अपनी काम भावना की ओर जाने लगता है और वह पढ़ाई-लिखाई से बहुत दूर हो जाता है। इसलिए विद्यर्थियों को ऐसी भावनाओं के बचना चाहिए।
जिस व्यक्ति का स्वभाव क्रोध वाला हो, वह छोटी सी बात पर भी किसी ऐसा कुछ कर सकता है, जिसके कारण आगे जाकर पछताना पड़े। ऐसे लोग क्रोध आने पर ये किसी का भी बुरा कर बैठते है। क्रोधि स्वभाव से मनुष्य का मन कभी भी शांत नहीं रहता। विद्या प्राप्त करने के लिए मन का शांत और एकचित्त होना बहुत जरूरी होता है। अशांत मन से शिक्षा प्राप्त करने पर मनुष्य केवल उस ज्ञान को सुनता है, उसे समझ कर उसका पालन कभी नहीं कर पाता। इसलिए शिक्षा प्राप्त करने के लिए मनुष्य को अपने क्रोध पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है।
लालची इंसान अपने फायदे के लिए किसी के साथ भी धोखा कर सकते हैं। ऐसे व्यक्ति धर्म-अधर्म के बारे में नहीं सोचते। जिसके मन में दूसरों की वस्तु पाने का भावना होती है, वह व्यक्ति हमेशा ऐसी बात के बारे में सोचता रहता है। ऐसे व्यक्ति का मन हर वक्त दूसरों की वस्तु पाने की योजना बनाने में लगा रहता है। ऐसा विद्यार्थी कभी भी अपनी विद्या के बारे में सतर्क नहीं रहता और अपना सारा समय अपने लालच को पूरा करने में गंवा देता है। विद्यार्थी को कभी भी अपने मन में लोभ या लालच की भावना नहीं आने देना चाहिए।
जिस इंसान का जुबान उसके वश में नहीं होती, वह हमेशा ही स्वादिष्ठ पदार्थ खोजता रहता है। ऐसा व्यक्ति अन्य बातों को छोड़ कर केवल खाने को ही सबसे ज्यादा महत्व देता है। कई बार स्वादिष्ठ पदार्थ के चक्कर के मनुष्य अपने स्वास्थ तक के साथ समझौता कर बैठता है। विद्यार्थी को अपनी जुबान वश में रखनी चाहिए, ताकी वह अपने स्वास्थय और अपनी विद्या दोनों ध्यान रख सके।
जिस भी विद्यार्थी का मन अपने साज-श्रृंगार पर होता है, वह अपना अधिक से अधिक समय यहीं बातों सोचने में गवा देता है। ऐसे व्यक्ति खुद को हर वक्त सबसे सुंदर और अलग दिखाना चाहता है। जिसकी वजह से पूरे समय उसके दिमान में अपने सौंदर्य, पहनावे और रहन-सहन के बारे में ही बाते चलती रहती है। साज-श्रृंगार के बारे में सोचने वाला व्यक्ति कभी भी एक जगह ध्यान केंद्रित करके विद्या नहीं प्राप्त कर पाता। विद्यार्थी को ऐसे परिस्थितियों से बचना चाहिए।
विद्यार्थी जीवन का एक सबसे महत्वपूर्ण गुण होता है गंभीरता। विद्यार्थी को शिक्षा प्राप्त करने और जीवन में सफलता पाने के लिए इय गुण को अपनाना बहुत जरूरी होता है। जो विद्यार्थी अपना सारा समय हंसी-मजाक में व्यर्थ कर देता है, वह कभी सफलता नहीं प्राप्त कर पाता। विद्य प्राप्त करने के लिए मन का स्थित होना बहुत जरूरी होता है और हंसी-मजाक में लगा रहना वाला विद्यार्थी अपने मन को कभी स्थिर नहीं रख पाता।