भगवान महाकाल जिस पर समस्त ब्रम्हांड गति शील है

भगवान शंकर काल के भी काल है अर्थात महाकाल है | महाकाल तो वह धुरी है, जिस पर समस्त ब्रम्हांड गति शील है | महा काल में ही या समस्त चराचर जीव जगत विश्व व्याप्त है, महाकाल ही शिव का ही एक रूप है, जो की खुद शिव से सह्त्र गुना जादा तेजेस्विता युक्त है |

आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् । भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥

अर्थात : आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।

महाकाल की साधना क्यों ?

महाकाल स्वयं काल स्वरूप एवं काल पर ही आरूढ़ हैं, अतः महाकाल (पारदेश्वर) की साधना करने वाला तथा पारद शिवलिंग पर रूद्राभिषेक करने वाला साधक स्वतः त्रिकालदर्शी हो जाता है। अनेक जन्मों पूर्व के एवं आने वाले अनेक जन्मों की स्थिति उसके सामने स्पष्ट हो जाती है। वह जिसको भी देखता है, उसकी भूत, वर्तमान एवं भविष्य भी उसे स्पष्ट दिखाई देने लगता है।

महाकाल अति उग्र देव है और साक्षात महाकाल के दर्शन की इच्छा करना एक प्रकार से मृत्यु को बुलावा देना है। महाकाल दिव्य तेजोमय रूप देखने की सामथ्र्य साधारण भक्त में नही होेती। इसलिए दया के अभिभूत महाकाल कभी भी साधना के मध्य प्रकट नही होते। लेेकिन सच्चे साधक को इसकी अनूभूति अवश्य ही हो जाती है। उस समय महाकाल आशीर्वाद साधका को दरिद्रता, वासनाओं, रोंगों तथा जीवन की समस्याओं से मुक्ति दिला देते है।

ऐसा साधक दीर्घायु को प्राप्त करता है। उसके जन्मकालीन अनिष्ट से अनिष्ट ग्रह भी शांत हो जाते हैं शत्रु उसके समक्ष आते ही परास्त हो जाते है। शास्त्रों में कहा गया है कि गुरू की आज्ञा, गुरू की कृपा एवं गुरू का आशीर्वाद प्राप्त करके ही महाकाल की साधना करनी चाहिए। साथ ही साथ इसके करने की विधि भी ज्ञात कर लेनी चाहिए। गुरू ईश्वर की दिव्य चेतना का अंश है जो साधको का मार्गदर्शन और सहयोग करने के लिए व्यक्त होता है। यदि किसी का गुरू नहीं है अथवा उसे सच्चा गुरू नहीं मिला है, तो वह शिव को ही अपना गुरू माने, क्योंकि भगवान शिव ही सबके गुरू है।

महाकाल की साधना के लिए आप महाकाल स्तोत्र

महाकाल की साधना के लिए आप महाकाल स्तोत्र को प्रयोग कर सकते है जिसको स्वयं भगवान् महाकाल ने खुद भैरवी को बताया था। इसकी महिमा का जितना वर्णन किया जाये कम है। इसमें भगवान् महाकाल के विभिन्न नामों का वर्णन करते हुए उनकी स्तुति की गयी है । शिव भक्तों के लिए यह स्तोत्र वरदान स्वरुप है । नित्य एक बार जप भी साधक के अन्दर शक्ति तत्त्व और वीर तत्त्व जाग्रत कर देता है । मन में प्रफुल्लता आ जाती है । भगवान् शिव की साधना में यदि इसका एक बार जप कर लिया जाये तो सफलता की सम्भावना बड जाती है

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