चाणक्य के जीवन से कब सीखेंगे हमारे नेता

एक घुड़सवार अपने घोड़े को पानी पिलाने के लिए कुएं पर ले गया। वहां अरहट की घड़ियों से पानी निकलता था। कुआं चलाने वाले व्यक्ति ने पानी निकालना शुरू किया। अरहट की खटखट सुन घोड़ा चमकने लगा। घुड़सवार बोला-‘अरे भाई ! मेरा घोड़ा चमक रहा है। तुम यह खटखट बंद करो।’ खटखट बंद हुई, पानी भी बंद हो गया। घुड़सवार फिर बोला-‘पानी बंद क्यों किया?’ उसने कहा-‘यह अरहट वाला कुआं है। यहां खटखट होगी, तभी पानी आएगा।’ यह दुनिया भी अरहट वाले कुएं जैसी है। कुछ न कुछ खटखट होती ही रहती है। मनुष्य उसे देखने लगे तो सुख से जी नहीं सकता। दुनिया में खटखट होती रहे और मनुष्य शांति से जीता रहे। इसी तरह वह अपने जीवन को आनंदमय बना सकता है। सज्जन कौन होता है? इस प्रश्न का उत्तर अनेक लोग अनेक प्रकार से देते हैं। कुछ लोग सज्जनता की कसौटी आचार की निर्मलता को बनाते हैं। कुछ लोग उदार विचारों में सज्जनता का दर्शन करते हैं, व्यवहार-कुशल व्यक्ति को भी सज्जन माना जाता है। एक अभिमत के अनुसार सज्जन वह होता है, जो समाज सेवा और सहयोग के लिए सदा तत्पर रहता है। पंखा स्वयं घूमता है और दूसरों के ताप को दूर करता है। इसी प्रकार सज्जन व्यक्ति गांव-गांव घूमकर जनता के संताप का निवारण करते हैं। भारत में व्यक्ति का मूल्य उसके चरित्र के आधार पर किया जाता है। यहां कितने अच्छे-अच्छे लोग हुए हैं। आगे बढ़ कर बोलने वाले ही नहीं, आचरण करने वाले हुए हैं। यहां गणतंत्र बाद में आया, उसके पहले ऐसे व्यक्ति सामने आ गए थे, जिनका जीवन आदर्श था। पूर्वजों की उस थाती की सुरक्षा करना हर व्यक्ति का काम है। मनुष्य के सामने दो नजरिए हैं। एक नजरिया है- कठिनाई देखने का। यह कठिनाई, वह कठिनाई- इस प्रकार सोचने वाला कोई काम नहीं कर सकता। कौन-सा काम ऐसा है जिसे करने में कठिनाई न होती हो? देश का नेता-वर्ग चाणक्य के जीवन से शिक्षा कब लेगा? सम्राट चंद्रगुप्त का महामात्य चाणक्य। एक बार मगध जनपद में अकाल पड़ा। दिहाड़ी पर जीवन चलाने वालों के सामने समस्या पैदा हो गई। उनके पास न खाने के लिए रोटी थी और न पहनने के लिए कपड़ा। वे क्या करें, कहां जाएं? अकालग्रस्त लोगों को राहत पहुंचाने का अभियान प्रारंभ किया गया। महामात्य चाणक्य एक साधारण-सी झोंपड़ी में रहते थे। उन्होंने राहत कार्य की दृष्टि से घोषणा करवाई-‘अकाल से प्रभावित लोगों के पास गरम कपड़े नहीं हैं। सामने सर्दी का मौसम है। उनको सर्दी से बचाना है। सब लोग अपने-अपने घरों से कंबल लाकर दो।’ घोषणा की देरी थी। महामात्य के झोंपड़े में कपड़ों का ढेर लग गया। चाणक्य अपने झोंपड़े में बैठे थे। सामने नए-नए कंबलों का ढेर लगा था। चाणक्य ने एक फटा-पुराना सा कंबल ओढ़ रखा था। रात के समय वहां कोई चोर घुस गया। नये और अच्छे कंबलों की बात सुन उसका मन ललचा गया। चोर झोंपड़े में छिपकर खड़ा था। वह चाणक्य के सोने की प्रतीक्षा कर रहा था। उधर एक विदेशी व्यक्ति चाणक्य से मिलने आया। चाणक्य को फटे-पुराने कंबल में लिपटे देख उसने पूछा -‘आपके सामने अच्छे कंबलों का ढेर लगा है, फिर आपने यह फटा कंबल क्यों ओढ़ रखा है?’ जवाब मिला- ‘आप जिन कंबलों की ओर संकेत कर रहे हैं, वे सब जनता के हैं। जनता की चीज जनता के ही काम आएगी। ये मेरे लिए नहीं है।’ विदेशी यह सुन हैरान रह गया। चोर को ऐसा सबक मिला कि उसने चोरी करनी छोड़ दी। प्रशासन में जिन लोगों को काम करने का अवसर मिलता है, वे चाणक्य के जीवन से प्रेरणा लें तो गणतंत्र सफल बन सकता है। मंत्रिमंडल में जो लोग आते हैं, उनका यह नैतिक दायित्व है कि वे अपने इस्पाती चरित्र से देश को नई दिशा दें। व्यवहार को परिष्कृत करने की कसौटी है-‘अणुव्रत आचार-संहिता।’ जाति, संप्रदाय आदि भेद रेखाओं से ऊपर एक अणुव्रती का चरित्र मानव समाज के लिए आदर्श चरित्र हो सकता है। भारतीय अपनी अस्मिता को पहचानें। वे संसार की स्थितियों को देखें, समझें, पर उनसे डरें नहीं। प्रस्तुति: ललित गर्ग

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