जहां ज्ञानियों को छोड़ मूर्खों को पूजा जाता है

एक मामूली से बालक चंद्रगुप्त को अखंड भारत का सम्राट बनाने वाले उनके गुरु आचार्य चाणक्य एक ऐसी मजबूत शख्शियत हैं जिन्होंने कभी परिस्थितियों के सामने अपने गुटने नहीं टेके, बल्कि प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बनाने के लिए हर संभव प्रयास किए हैं।

आचार्य चाणक्य के अनुसार सफल मनुष्य वही है जो दिल से ज्यादा दिमाग से काम लेता है, जो जीवन में भावनाओं से ज्यादा व्यवहारिकता को बल देता है। एक बार जो व्यक्ति कमजोर पड़ गया वह जीवन में आगे बढ़ने का रास्ता नहीं खोज सकता।

आचार्य चाणक्य का मानना कि एक मूर्ख दोस्त से बुद्धिमान दुश्मन भला होता है। एक मूर्ख के साथ रहने के कई नुकसान हो सकते हैं, जो हमें तभी समझ आते हैं जब हम उन्हें भुगत लेते हैं।

चाणक्य ने जीवन को सफल और सहज बनाने के लिए चाणक्य नीतियों में कुछ बातों को श्लोक के रूप में पिरोया है।

इस लेख के अंतर्गत हम आपको आचार्य चाणक्य के एक ऐसे ही श्लोक के विषय में बताएंगे जो आपको यह समझा सकता है कि एक मूर्ख व्यक्ति किस तरह आपके लिए खतरा साबित हो सकता है।

 

चाणक्य नीति के इस श्लोक का अर्थ है कि जहं जिस जगह मूर्खों की पूजा नहीं होती वहां ज्ञानियों का सम्मान होता है, उस जगह ज्ञानी व्यक्ति की बात को सुना और समझा जाता, उनकी बातों पर अमल किया जाता है। जिस घर में पति-पत्नी के बीच वाद-विवाद नहीं होते, सभी प्रेम से रहते हैं, जहां अन्न का दाना भी व्यर्थ जाया नहीं किया जाता, जहां धन-धान्य पर्याप्त मात्रा में होते हैं, वह घर देवी लक्ष्मी की कृपा से परिपूर्ण रहता है। वहां खुशियों का आगमन बना रहता है।

इसके विपरीत जहां लोग मूर्खों की पूजा और आव भगत करते हैं, जहां पति-पत्नी के बीच क्लेश रहता है या अन्न की बर्बादी की जाती है वहां कभी देवी लक्ष्मी नहीं ठहरती। ऐसे परिवार का धन किसी ना किसी गलत काम में हे खर्च होता है।

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