सफल होना है तो ऐसे मित्र को तुरंत छोड़ दे

नमस्कार दोस्तों आप आचार्य चाणक्य जी को कोण नहीं जानता, उनके जैसा महँ ज्ञानी और अर्थ कुशल व्यक्ति आज इस युग में कोई दूसरा नहीं है, उनके विचारो और नीतियों को अपनाकर बड़े बड़े राजे महाराजे यशस्वी हुए है. उन्ही आचार्य चाणक्य जी ने अपनी नीतियों में मनुष्य जीवन को सुखकर बनाने के लियी बहोत सी महत्वपूर्ण बाते बतायी है,

आज मैं आपको आचार्य चाणक्य जी ने बताये हुए ऐसे एक मित्र के बारे में बत्ताने जा रहा हु, अगर आप जीवन में सफल होना चाहते है तो ऐसे मित्र का तुरंत त्याग करे, नहीं तो वो आपके सफलता के मार्ग में काटे बिछाने का काम करेगा.

आचार्य चाणक्य अपने श्लोक में कहते है .

परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।

वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥

दोस्तों इस श्लोक में आचार्य चाणक्य जी ने ऐसे दुष्ट मित्र का जिक्र किया है जो केवल आपका नुकसान करने के लिए ही आपके साथ रहता है, दुष्ट मित्र को पहचानना कोई मुश्किल काम नहीं है, सबसे पहले ये ध्यान में रखे की, कर्म से अच्छा कोई मित्र नहीं होता, तुम जैसा कर्म करोगे तुम्हे वैसा ही फल प्राप्त होगा, उसी तरह तू जैसे मित्र के साथ संगती बनाओगे तुम भी उसी की तरह आचरण करने लगोगे. दुराचारी मित्र हो तो वो आपमें भी दुराचार की भावना उत्पन्न करने का प्रयास करेगा, सज्जन मित्र हो तो वो अपमे सज्जन भाव ही निर्माण करेगा और आपको सदाचार का ज्ञान देगा.

हम अक्सर देखते है, हम अगर कोई गलत काम करते है तो हमारे माता पिता हमें वो काम ना करने के लिए टोकते है, अगर कोई मित्र आपको बुरा काम करने में प्रोत्साहन दे रहा हो तो वो आपका सबसे बड़ा शत्रु ही होता है, अगर कोई मित्र आपको कोई गलत काम करने से रोकने का प्रयास करता है तो उसे सच्चा मित्र मानना चाहीये.

कुछ मित्र ऐसे होते है, जो जानबूझ कर आपके सामने आपकी तारीफ करते है, आपकी बुद्धिमता की प्रशंसा करते है, और आपके पीठ पीछे आपकी बुरे करने में कोई कसार नहीं छोड़ते.

जो मित्र बिना कारन ही आपकी प्रशंसा करने लगे तो ऐसे मित्र से संभलकर ही रहना चाहिए, क्यों की वो केवल उसका हेतु साध्य करने के उद्देश से ही आपसे मीठी बाते करने लगता है.

किसी भी अन्य व्यक्ति की की गयी मीठी बातो पर विश्वास नहीं करना चाहिए, मीठी बाते करने वाले मित्रो से हमेशा सावधान ही रहना चहिये, जो मित्र आपकी भलाई चाहता है वो हमेशा आपको किसी न किसी बात पर टोकता रहा है और आपको गलत काम ना करने के लिए बार बार समझाता है, परन्तु आपको उसकी टोका ताकि से चीड होने लगती है और आपसे ऐसे मित्र से क्रोध के आवेश में आकर बैर कर बैठते है.

इसीलिए चाणक्य कहते है, जो मित्र आपके सामने आपकी प्रशंसा करता हो, आप कुरूप होने के बावजूद भी जानबूझ कर आपकी सुन्दरता की प्रशंसा करता हो, आप किसी स्थान पर गलत होते है फिर भी आपको सही है बता कर बहकता हो ऐसे मित्र का किसी मुंह पर दूध रखे हुए विष के सामान घोड़े की तरह त्याग कर देना चाहिए.

क्यों की घोड़े कभी जहरीली वनस्पति खाते है तो उनके मुंह वर विष लगजता है, और ऐसा घोड़ दौड़ने में सक्षम नही होता है, वो धीरे धीरे कमजोर होने लगता है और वो आपको भी सफ़र में आगे बढ़ने से रोकता है.

उसी तरह, गलत कामो में लिप्त रहा मित्र, हमेशा मुख से दुसरो की बुराई करने वाला व्यक्ति आपके सफलता के मार्ग में काटा बनजाता है. अतः ऐसे मित्र का तुरंत त्याग करे.

जो मित्र आपके अन्दर की बुराई को जानकर आपके समक्ष खड़ा होकर, निःस्वार्थ और निडर होकर आपको आपके अन्दर की बुराईया बताता है, ऐसा ही व्यक्ति मित्र कहलाने के लायक होता है.

अगर आप स्वयं के अन्दर की बुराईया और कमजोरिय जानेंगे तभी तो आप उन्हें रोकने के लिए कुछ उपाय कर पायेंगे,

तो दोस्तों, क्या आपका भी ऐसा कोई मित्र है जो हमेशा आपको अछे मार्ग पर चलने की सलाह देता है, निचे कमेंट्स में उसका नाम जरुर लिखे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *