महात्‍मा बुद्ध की इन कथाओं में छिपा है जीवन का रहस्‍य

महात्‍मा बुद्ध ने अपने उपदेशों में जिंदगी को सही तरीके से जीने के मार्ग बताए हैं। आइए आज उनके द्वारा कही दो कथाओं को पढ़कर जानें जीवन का रहस्‍य..
क्‍या है मृत्‍यु :
मृत्‍यु को समझना एक जटिल विषय है। जो इसे समझ लेता है वह जिंदगी के असली मायने जान जाता है। यही सवाल एक बार महात्‍मा बुद्ध के शिष्‍यों ने पूछा था। कि आखिर शरीर त्यागने के बाद आत्मा की यात्रा कैसी होती है, वह क्या करती है और उसका क्या होता है। यह सवाल सुन महात्‍मा बुद्ध के चेहरे पर मुस्‍कुराहट आ गई। महात्मा बुद्ध ने बड़ी ही शालीनता के साथ अपने शिष्य से पूछा “पहले तुम मुझे ये बताओ कि अगर कोई तीर सीधे आकर तुम्हारे हाथ पर लगता है तो तुम सबसे पहले उस तीर को निकालोगे या ये देखोगे कि वह तीर किस दिशा से आया है”? शिष्य ने कहा “निश्चित रूप में मैं सबसे पहले उस तीर को निकालूंगा, नहीं तो वह मेरे पूरे शरीर में जहर भर देगा”। इस जवाब को सुनते ही महात्मा बुद्ध ने कहा “बिल्कुल सही, मनुष्य को अपने मौजूदा जीवन की समस्याओं को सुलझाने में अपना समय और मेहनत झोंकनी चाहिए, ना कि ये सोचने में कि अगले जन्म में क्या होगा”। महात्‍मा बुद्ध कभी भी पुर्नजन्‍म या आने वाले जन्‍म को लेकर चिंतित नहीं रहते थे। वह आज की बात करते हैं और उन्‍होंने अपने शिष्‍यों को भी वर्तमान में जीने की सलाह दी।

क्‍या होता है डर और भय
एक बार महात्मा बुद्ध वृक्ष के नीचे बैठे ध्यान कर रहे थे, इतने में ही कुछ बच्चे वहां खेलते-खेलते पहुंच गए और जिस पेड़ के नीचे बुद्ध ध्यान में लीन थे उस पेड़ के ऊपर पत्थर बरसाने लगे, ताकि आम वृक्ष से नीचे गिर जाएं। तभी एक पत्‍थर महात्‍मा बुद्ध के सिर पर लग गया और उनके सिर से खून निकलना शुरु हो गया। लेकिन इस घटना के बाद महात्मा बुद्ध की प्रतिक्रिया और भी ज्यादा हैरान कर देने वाली थी। महात्मा बुद्ध रो रहे थे, उन्होंने बच्चों के कहा, तुमने इस वृक्ष को पत्थर मारा, उसने तुम्हें फल दिया। लेकिन जब यह पत्थर मुझे लगा तो सिवाय डर और भय के मैं तुम्हें कुछ भी नहीं दे सका। बुद्ध की इस बात में काफी गहराई थी। कि इंसान जब डर और भयभीत होता है, तो वह किसी काम का नहीं रहता। ऐसे में अपने मन से डर को बाहर निकालो और आगे बढ़ो।

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