वैराग्य: आत्मज्ञान का चिन्ह | Dispassion: Sign of Enlightenment

आत्मज्ञान की अवधारणाएं

आत्मज्ञान को लेकर लोगों की बहुत विचित्र धारणाएं होती हैं। हर संस्कृति और धर्म में आत्मज्ञान को लेकर अपनी अलग ही धारणा है। ईसाई धर्म के मत अनुसार एक धनी व्यक्ति आत्मज्ञानी नहीं हो सकता, यह असंभव है। व्यक्ति को आत्मज्ञानी होने के लिए, व्यक्ति को दरिद्र होना ही चाहिए। ईसाई धर्म के मत अनुसार भगवन राम आत्मज्ञानी नहीं हो सकते, भगवन राम अयोध्या के राजा थे, एक राजा कैसे आत्मज्ञानी हो सकता है? ईसाई धर्म में कहते हैं कि एक ऊँट सुई के छेद से निकल सकता है, पर एक धनी आदमी ईश्वर तक नहीं पहुँच सकता।

कई वर्ष पहले, मैं बैंगलोर से दिल्ली जा रहा था। हवाई अड्डे पर मुझे एक ईसाई पादरी मिले। वो मुझे देख के मुस्कुराएं और मैं भी वापिस मुस्कुराया और वो मेरे पास बात करने आये और बोले, “प्रिय मित्र, आप मुझे बड़े सज्जन लग रहे हो, क्या आप जीसस को मानते हो?” मैंने कहा, “हाँ”, वह थोड़ा चौंक गए और बोले, क्या आप सच में जीसस को मानते है? मैंने फिर से हाँ कहा।

वह बोले, ‘परन्तु आप तो हिन्दू है?, मैंने कहा, “शायद हाँ”

“फिर आप श्री कृष्ण में भी विश्वास करते हैं?”, मैंने कहा, “हाँ”

“परन्तु श्री कृष्ण ईश्वर कैसे हो सकते हैं? वह माखनचोर थे और शादीशुदा भी। कोई शादीशुदा व्यक्ति जो माखन चुराता हो, वह ईश्वर कैसे हो सकता है? वो तुम्हे कैसे मुक्ति दे पाएंगे? जीसस ही एकमात्र रास्ता है। मैं भी पहले हिन्दू हुआ करता था, बाद में ईसाई बन गया और अब मेरे सारे काम हो रहे हैं, जीसस मेरा ख्याल रखते हैं।” और उन्होंने यह सब बड़ी निष्ठा से मुझे कहा, जैसे मेरा धर्मान्तरण करने का प्रयास कर रहे हो।

श्री कृष्ण कैसे आत्मज्ञानी हो सकते हैं? जैन मान्यता में भी श्री कृष्ण आत्मज्ञानी नहीं हो सकते क्योंकि उनकी वजह से महाभारत का युद्ध हुआ। अर्जुन तो संसार छोड़कर संन्यास के लिए चला था, पर श्री कृष्ण ने उसे बहका कर युद्ध के लिए प्रोत्साहित किया। इतने महासमर के लिए जिम्मेदार श्री कृष्ण आत्मज्ञानी कैसे हो सकते हैं? जो माखन भी चुराते हो और सैकड़ों पत्नियां रखते हो? जैन मतानुसार श्री कृष्ण का आत्मज्ञानी होना असंभव है।

जैन मत में एक साधु को, आत्मज्ञानी को कभी कपडे नहीं पहनने चाहिए। उनका आत्मज्ञान का मानक है, निर्वस्त्र घूमना। जो भी निर्वस्त्र नहीं है वो उनके लिए उतने महान नहीं हैं। क्या पता, कब क्या हो जाए? उनके भीतर क्या इच्छाएं चल रही हो? यह कैसे पता चलेगा कि वो काम वासना से मुक्त हैं कि नहीं? इसका प्रमाण कहाँ हैं? इसलिए जैन संत निर्वस्त्र होते हैं। जो कोई वस्त्र नहीं पहनते, वह आत्मज्ञानी माने जाते हैं। यह उनका आत्मज्ञान की धारणा हैं। इनके लिए दिन में दो बार भोजन करने वाले लोग आत्मज्ञानी नहीं हो सकते, और जो भोजन का स्वाद लेकर खाते हो वो तो बिलकुल भी नहीं। क्या संत कभी चॉकलेट खा सकते हैं?, नहीं चॉकलेट खाने वाले संत कैसे हो सकते हैं।

बुद्ध धर्म में भी आत्मज्ञानी होने और न होने की अलग अलग मान्यता हैं। जो कोई गाये, नाचे और संसार को देखे, लोगो को प्रसन्न रखें, वो आत्मज्ञानी नहीं। जो अपने परिवार के साथ मिले-बैठे, उनमे भी आत्मज्ञान की कोई संभावना नहीं। मैंने भी ऐसे कई तथाकथित सन्यासियों को देखा है, जो इतने भयभीत होते हैं कि अपने परिवार से भी नहीं मिल सकते। वो अपने परिवार से ही भागते रहते हैं जिससे कोई मोह न आजाये।

मैं एक ऐसे तथाकथित सन्यासी को जानता हूँ जो अपनी माँ से ही नहीं मिलते। वो सभी से मिलेंगे पर अपनी बूढी माँ से नहीं मिलेंगे। वह सत्तर वर्ष की थी और रोती रहती थी। वो अपने परिवार के लिए ही बड़े निर्दयी हो जाते है। ऐसे तथाकथित सन्यासी, संत, पादरी अपनी इन्ही धारणाओं की वजह से ऐसे व्यवहार करते हैं। तुम यदि सभी से प्रेम रख सकते हो तो अपने परिवार को भी वैसे ही क्यों नहीं देख सकते हो? कई सन्यासी अपने परिवार से नहीं मिलने के लिए मन में व्यथित होते हैं। यह सभी आत्मज्ञान की मान्यताएं मात्र हैं, जिनमे हम अटके रह सकते हैं।

आत्मज्ञान का मूल सिद्धांत

वैराग्य अथवा भीतर केंद्रित रहना इसका मूल सिद्धांत हैं। सब कुछ के होने के बावजूद अपने भीतर स्थिर होना योग का दूसरा महत्त्वपूर्ण सिद्धांत हैं, यह वैराग्य है।

तत्परं पुरुषख्यातेर्गुनवैतृष्ण्यम्।।

एक बार जब तुम अपने अस्तित्व के सच्चिदानंद स्वरुप को जान लेते हो तब यह सांसारिक भय भी समाप्त हो जाते हैं। क्या तुम यह समझ रहे हो? ऐसे में न संसार से भागना होता है, न ही भय, संसार से अनछुहे रहते हुए स्वयं में केंद्रित रहना ही वैराग्य है।

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