समाधि का अनुभव कैसे कर सकते है? How To AchieveThe State of Meditation in Hindi

विरामप्रत्ययाभ्यासपूर्वः संस्कारशेषोऽन्य

तुम्हारे कुछ करने से इस जागरूकता का अनुभव नहीं कर सकते हो, तुम प्रयास से अपने भीतर सजगता और बुद्धिमता नहीं ला सकते हो।

विरामप्रत्ययाभ्यासपूर्वः

प्रयत्नहीन विश्राम में स्थिर होने से, विश्राम को पकड़ने से, स्वयं में स्थित होने से, यह संभव है। सजग विश्राम के अभ्यास से यह संभव है।

निद्रा भी विश्राम है पर उसमें सजगता नहीं होती, प्रकृति हमें निद्रा के लिए मजबूर कर देती है, तुम विश्राम नहीं कर रहे होते हो, तुम्हें आराम के लिए मजबूर किया जाता है। जब तुम बहुत थक जाते हो तब प्रकृति तुम्हें पकड़ कर, खींच कर जबरदस्ती आराम करवाती है वह तुम्हारा विश्राम नहीं है। तुम्हारा स्वयं का विश्राम तो ध्यान से ही संभव है, सजगता से तुम जब कहते हो की अच्छा अब मुझे विश्राम करना है तब ही सही विश्राम होता है। नहीं तो विश्राम तुम्हे ही अपने आगोश में निगल लेता है जबकि ध्यान में तुम विश्राम को होने की अनुमति देते हो। क्या तुम यह अंतर समझ रहे हो?

निद्रा तुम्हे विश्राम में धकेल देती है जबकि समाधि में तुम अपने आप विश्राम कर रहे होते हो, यही अभ्यास है। विरामप्रत्ययाभ्यासपूर्वः अर्थात  सजगता से गहरे विश्राम का अभ्यास।

संस्कारशेषोऽन्य

कुछ लोगों के लिए यह पुराने संस्कार से भी संभव है। कुछ लोगों को मन में अधिक सजगता, शान्ति और समता लाने के लिए बहुत अभ्यास करना पड़ता है परन्तु कुछ लोगों के लिए यह पिछले जन्मों के संस्कारों से ही प्राप्त होता है, उन्हें स्वतः ही अनुभव होते है। कभी कभी यह जन्म से ही होता है और कभी कभी जीवन काल में किसी विशेष समय पर, उनके अंदर से ही यह फूटने लगता है।

क्या तुमने कभी ऐसा देखा है? कभी किसी को ३०-४० की उम्र के बाद अचानक कुछ तो आध्यात्मिक अनुभव होता है और उसके बाद उनमे अधिक सजगता आ जाती है। दुर्भाग्यवश इनमे से ज्यादातर लोग भटक जाते है, कुछ भविष्यवाणी करने लगते है की दुनिया समाप्त होने वाली है। वास्तव में होता यह हैं की उन्होंने कहीं तो किसी बाइबिल या पुस्तकों में कहीं ऐसा कुछ पढ़ा होता है और उन्हें उस आध्यात्मिक अनुभव में वह एकदम सत्य लगता है। कभी कभी ऐसे घोषणाएं भी होती है की दुनिया २० सितम्बर को समाप्त हो रही है और लोग इकट्ठे हो जाते है। वह इन सब भ्रांतियों का शिकार इसलिए हो जाते है क्यूंकि उन्हें योग के बारे में ज्ञान नहीं होता। कभी किसी को ध्यान में कुछ प्रकाश दिखाई देता है और उन्हें लगता है की कुछ उतर रहा है, कुछ आ रहा है, लोग ऐसे आध्यात्मिक अनुभवों से भटक जाते है।

तुम्हे यह समझना होगा की यह सब पूर्व जन्मो का संस्कार है, संस्कारशेषोऽन्य यह एक अलग तरह की समाधि है।

सूत्र :  भवप्रत्ययो विदेहप्रकृतिलयानाम्

यह थोड़ा और गूढ़ है। समाधि जगत के मात्र इस स्तर का अनुभव नहीं है, इसके पार दूसरे स्तरों पर भी समाधि का प्रभाव होता है। जिन लोगो के पास शरीर नहीं होता वह भी ध्यान से प्रभावित होते है। जब तुम ध्यान करते हो तब तुम केवल अपने भीतर ही सामंजस्य नहीं ले कर आते हो बल्कि  तुम इस अस्तित्व के विभिन्न स्तरों पर जीवात्माओं को प्रभावित करते हो।

तुम्हारा ध्यान ऐसे लोगों की चेतनाओं को प्रभावित करता है जो अभी से १०० साल पहले रहे थे और ऐसे जिन्हें अभी जन्म लेना है। क्या तुम यह समझ रहे हो, जीवन अनंत है। जीवन प्रत्येक क्षण में है और अनंत भी है, तुम्हारा जीवन यहाँ हजारों लाखों वर्षों से है और हज़ारों वर्षों तक रहेगा।

योगियों के भी अलग अलग प्रकार होते है, विदेह अर्थात जिनके पास शरीर नहीं होता। जब मन समता में हो तो तुम ऐसे भाव के साथ चल सकते हो जैसे तुम्हारे पास कोई शरीर नहीं है। ऐसे ही जिनके पास शरीर नहीं होता वह भी ध्यान के प्रभाव में आ जाते हैं।

ऐसे ही प्रकृतिलय, जो पूरी तरह से प्रकृति में रम गए हैं वह भी उसी समता की अवस्था को प्राप्त करते हैं।

विदेह में तुम पदार्थ के स्तर से दूर हो जाते हो, तुम भौतिक अस्तित्व के प्रति अनभिज्ञ होते हो, तुम्हे अपने चारों तरफ के प्रति सजगता भी नहीं रहती, तुम पूरी तरह से स्वयं में डूब जाते हो। या पूरी तरह से संसार की वस्तुओं में डूब जाना।

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