ईश्वर को समर्पण मात्र से भी तुम चेतना की उस पूर्ण स्फुरित अवस्था को प्राप्त कर सकते हो। अब ईश्वर क्या है, कौन है, कहाँ है? यह कहना आसान है की ईश्वर को समर्पित करो पर ईश्वर है कहाँ, किसी ने देखा तो नहीं। यह अगला प्रश्न है।
ईश्वर कौन है? इस अस्तित्त्व का अधिपति कौन है? यह आधिपत्य क्या है? ऐसा क्या है जो इस संसार को चलाता है? तुम्हें पता लगेगा की प्रेम ही है जो इस संसार का संचालन करता है।
प्रेम ही ईश्वर है।
प्रेम जो इस समूचे अस्तित्त्व का केंद्र है, मूल है, इसी का आधिपत्य भी है। जैसे सूर्य सौरमंडल का केंद्र है एवं वही सभी ग्रहों का अधिपति है। इसी तरह तुम्हारे जीवन का मूल तत्त्व प्रेम है और उसी से तुम शासित हो।
तुम्हारे बदलते हुए शरीर के परे, बदलते हुए विचारों और भावनाओं के परे, जो तुम्हारा मूल है, कुछ बहुत सूक्ष्म और उत्कृष्ट है, जिसे तुम प्रेम या चैतन्य, कोई भी नाम दे सकते हो। वही चैतन्य इस संसार का मूल है और इसके होने का कारण भी है, उसी के पास सभी आधिपत्य है।
प्रेम के कारण ही एक पक्षी अपने नवंतुकों के लिए दाना जुटाता है, पुष्प भी प्रेम के होने से ही खिलते हैँ। प्रेम के होने से ही पक्षी अंडे देते हैं, गाय प्रेम से ही बछड़ो की देखभाल करती हैं। बिल्लियां अपने बच्चों को प्रेम करती हैं इसलिए उनका ख्याल रखती हैं, तुम बंदरों को भी देखोगे तो वह भी अपने बच्चों से प्रेम करते हैं। प्रेम इस संसार में अन्तर्निहित है और उसी से यह संसार चलता है। जो अन्तर्निहित है वही इस चैतन्य का मूल भी है। इसीलिए जीसस ने भी कहा कि प्रेम ही ईश्वर है। प्रेम और ईश्वर एक दूसरे के पर्याय है।