हनुमान जी की महाभारत में भूमिका | Mysterious role of Lord Hanuman in Mahabharata
उन समय में लोग कुछ ध्वजाओं का प्रयोग करते थे, जैसे कि हर राजनीतिक दल आज किसी झंडे का प्रयोग करता है। कांग्रेस पार्टी ‘पंजे’ के चिह्न वाले झंडे का प्रयोग करती है, दूसरी पार्टी ‘कमल के फूल’ का चिह्न प्रयोग करती है। इसी प्रकार प्राचीन समय वे लोग हनुमान का प्रयोग करते थे क्योंकि यह जीत का संकेत है और कृष्ण ने इसे चुना क्योंकि कृष्ण जो भी कार्य हाथ में लेते थे वहाँ हमेंशा जीतते थे।
उन्होंने अर्जुन से कहा “ अच्छा होगा कि तुम हनुमान को ध्वज के रूप में ग्रहण करो”, इसलिए उसने हनुमान को चुना। उसने श्रीकृष्ण की बात को ध्यान पूर्वक सुना।
पिछले युग में हनुमान जीत का प्रतीक थे, जब राम ने श्रीलंका के सबसे समृद्ध राज्य से युद्ध किया तो उन्होंने कुछ मुट्ठी भर वानर सैनिकों के साथ वह युद्ध लड़ा था, उनका दल बहुत कमजोर था। और उनके विरुद्ध जो दल था वो बहुत शक्तिशाली था जिनके पास बहुत शक्ति एवं संपदा थी।
ऐसा कहा जाता है, उन दिनों में श्रीलंका इतना समृद्ध था कि वहाँ हर घर की छत सोने की बनी थी। यह स्वर्ण शहर था। प्रत्येक घर के खंभे कीमती पत्थरों से भरे हुए थे इसलिए जब राम भारत से श्रीलंका गए तो उन्होंने कहा कि ‘यह शहर अविश्वसनीय है! लेकिन भले ही यह सोने से बहुत भरा हुआ है और बहुत समृद्ध है, फिर भी मैं अपनी मातृभूमि पर जाना पसंद करूँगा। क्योंकि मेरे लिए तो मेरी मातृभूमि स्वर्ग से भी बेहतर है।’
इसलिए भगवान राम युद्ध जीतने के बाद अयोध्या वापस चले गए।
हनुमान प्रत्यक्ष कमजोरी पर विजय के प्रतीक थे। जो शारीरिक रूप से कमजोर दिखता हो, लेकिन आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली हो। पांडव केवल पांच थे और कौरव सौ थे। यह लडाई के लिए किसी भी तरह से एक समान नहीं था लड़ने के लिए दोनों तरफ बराबर संख्या में लोग होने चाहिए। इसलिए, अर्जुन को न्याय संगत, नैतिक और भावनात्मक शक्ति देने के लिए, कृष्ण ने कहा, ‘हम अपने ध्वज के रूप में हनुमान को रखते हैं। तो सोचो कि यदि वो ऐसा कर सकते हैं तो तुम अभी ऐसा कर सकते हो।
कृष्ण हमेशा यही कहते थे।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के ज्ञान वार्ता (प्रवचन) से संकलित