मन की शांति के उपाय और महत्व | man ki shanti ke upay aur mahatva
एक बार मुल्ला नसीरुद्दीन के साथ दुर्घटना हुई और वे अस्पताल में थे। शरीर के हरेक अंग की कोई न कोई हड्डी टूटी थी।
उनके सारे चेहरे पर पट्टियाँ बँधी हुई थीं। केवल उनकी ऑंखें दिख रही थीं। उनके एक मित्र उन्हें मिलने आए और उनसे पूछा,”कैसे हो, मुल्ला?” उन्होंने कहा,” मैं ठीक हूँ सिवाय इसके कि जब मैं हँसता हूँ तो दर्द होता है।” तब उनके मित्र ने उनसे पुछा,”भला, इस हालत में आप हँस कैसे सकते हैं?” मुल्ला ने जवाब दिया, “अगर मैं अब न हँसु तो मैं ज़िन्दगी में कभी हँस नहीं पाउँगा।”
ये अविरत उत्साह सम्पूर्ण स्वास्थ्य में रहने का आयाम है। संस्कृत में स्वास्थ्य के लिए शब्द है ‘स्वस्ति’ माने प्रबुद्ध व्यक्ति, जो स्व में स्थित है। स्व में बने रहने की पहली निशानी है उत्साह – जो हँस कर ये कह सके कि, “आज कोई काम नहीं बना।” ये कह सकने के लिए तुम्हें ऐसी मानसिक स्थिति चाहिए जो कि तनाव-मुक्त और दबाव–सिद्ध हो।
तनाव क्या है | What is tension in Hindi
जब तुम तनाव में होते हो, तब तुम्हारो भौहें चढ़ जातीं हैं। जब तुम इस तरह त्योरी चढाते हो, तब तुम चेहरे की ७२ नसें और माँस-पेश्यियाँ उपयोग में लाते हो। लेकिन जब तुम मुस्कुराते हो तब उन में से केवल ४ का उपयोग करते हो।अधिक कार्य का अर्थ है अधिक तनाव। तनाव तुम्हारी मुस्कान को भी गायब कर देता है। तुम्हारी बॉडी लेंग्वेज तुम्हारी मानसिक स्थिति और शारीरिक तंत्र की उर्जा का संकेत दे देती है।
हम एक उर्जा के बादल में संपुटित हैं, जिसे चेतना कहते हैं। ये एक मोम बत्ती और बाती जैसा है। जब तुम मोम बत्ती पर माचिस की तीली लगाते हो, तो बाती पर ज्योत प्रकट होती है। मोम बत्ती में भी वही हाईड्रोकार्बन है। लेकिन जब उसे प्रज्वलित किया जाता है, तब ज्योति केवल उसकी चोटी पर टिमटिमाती है। इसी तरह हमारा शरीर मोम बत्ती की बाती की तरह है और इसके आसपास जो है वह चेतना है, जो हमें जीवित रखती है। तो हमें अपने मन और आत्मा का ध्यान रखना है।
हमारे अस्तित्व के ७ स्तर हैं – शरीर, श्वास, मन, बुद्धि, स्मृति, अहम् और आत्मा। मन तुम्हारी चेतना में विचार और अनुभूति की समझ है जो निरंतर बदलते रहते हैं। आत्मा हमारी अवस्था और अस्तित्व का सूक्ष्मतम पहलू है। और मन और शरीर को जो जोडती है वह हमारी साँस है। सब कुछ बदलता रहता है, हमारा शरीर बदलाव से गुज़रता है, वैसे ही मन, बुद्धि, समझ, धारणाएँ, स्मृति, अहम् भी। लेकिन ऐसा कुछ है तुम्हारे भीतर जो नहीं बदलता। और उसे आत्मा कहते हैं, जो कि सब बदलावों का सन्दर्भ बिंदु है। जब तक तुम इस सूक्ष्मतम पहलू से नाता नहीं जोड़ोगे, आयुर्वेद की प्राचीन पद्धति के अनुसार तुम एक स्वस्थ व्यक्ति नहीं माने जाओगे।
स्वास्थ्य की दूसरी निशानी है, सचेतता, सतर्क और जागरूक रहना। मन की २ स्थितियां होतीं हैं। एक तो शरीर और मन साथ में। और दूसरा शरीर और मन भिन्न दिशाओं की ओर देखते हुए। कभी जब तुम तनाव में हो, तब भी तुम सतर्क रहते हो, लेकिन ये ठीक नहीं है। तुम सतर्क और साथ ही तनाव-मुक्त भी होने चाहिए, इसी को ज्ञानोदय कहते हैं।
भावनात्मक अस्थिरता तनाव होने के कारणों में से एक है। हरेक भावना के लिए हमारी श्वास में एक विशेष लय है। धीमे और लंबे श्वास आनंद और उग्र श्वास तनाव का संकेत देते हैं। जिस तरह से एक शिशु श्वास लेता है वह एक वयस्क के श्वास लेने के तरीके से भिन्न है। यह तनाव ही है जो एक वयस्क की श्वसन पद्धति को भिन्न बनाती है।
हम अपना आधा स्वास्थ्य संपत्ति कमाने में खर्च कर देते हैं और फिर हम वह संपत्ति स्वास्थ्य को वापिस सुधारने में खर्च कर देते हैं। यह किफायती नहीं है। अगर कोई छोटी-मोटी असफलता आ जाए तो फ़िक्र मत करना, तो क्या हुआ? हरेक असफलता एक नई सफलता की ओर बड़ा कदम है। अपना उत्साह बढ़ाओ। अगर तुम में कुशलता है तो तुम किसी भी परिस्थिति में व्यंग को डाल कर उसे पूरी तरह से बदल सकते हो। तनाव – युक्त होना टालो। पशु जब गीले हो जाते हैं या धुल में खेलते हैं, तो बाहर आ कर वे क्या करते हैं? वे अपना सारा शरीर झकझोरते हैं और अपने आप से सब कुछ बाहर निकाल फेंकते हैं। लेकिन हम मनुष्य सारा कुछ, सारा तनाव पकड़ के रखते हैं। किसी कुत्ते, पिल्ले या बिल्ली को देख कर हमें सब कुछ झकझोरना आना चाहिए। जब तुम ऑफिस में आते हो, तो घर को झकझोर दो। जब तुम घर वापिस जाओ, अपनी पीठ से ऑफिस को झकझोर दो।
तनाव से मुक्ति के उपाय | tension kam karne ke upay in hindi
तनाव से मुक्त होने और हमारी उर्जा को पुनः प्राप्त करने के लिए, प्रकृति ने एक अन्तर्निहित व्यवस्था बनाई है, जो है निद्रा। किसी हद तक, निद्रा तुम्हारी थकान मिटाती है। लेकिन प्रायः शरीर प्रणाली में तनाव रह जाता है।उस प्रकार के तनावों को काबू में रखने के लिए प्राणायाम और ध्यान के तरीके हैं। ये तनाव और थकान से मुक्ति देते हैं, क्षमता बढ़ाते हैं, तुम्हारे तंत्रिका तंत्र और मन को मज़बूत बनाते हैं। ध्यान केन्द्रीकरण नहीं है। ये एक गहरा विश्राम है और जीवन को एक अधिक विशाल दृष्टि से देखना है, जिस के ३ स्वर्णिम नियम हैं – मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं कुछ नहीं करता हूँ और मैं कुछ नहीं हूँ।