कभी छोटे-छोटे प्रयोग करके देखें सम होने के। बहुत छोटे-छोटे प्रयोग करके देखें, उनसे ही रास्ता धीरे-धीरे साफ हो सकता है। कभी स्नान करके खड़े हैं। खयाल करें तो आप हैरान होंगे कि या तो आपका वजन बाएं पैर पर है या दाएं पैर पर है। थोड़ा-सा ख्याल करें, आंख बंद करके तो आप पाएंगे, वजन बाएं पैर पर है या दाएं पैर पर है।अगर पता चले कि आपके शरीर का वजन बाएं पैर पर है तो थोड़ी देर रुके हुए देखते रहें। आप थोड़ी देर में पाएंगे कि वजन दाएं पैर पर हट गया। अगर दाएं पैर पर वजन मालूम पड़े, तो वैसे ही खड़े रहें और पीछे अंदर देखते रहें कि वजन दाएं पैर पर है। क्षण में ही आप पाएंगे कि वजन बाएं पैर पर हट गया। मन इतने जोर से बदल रहा है भीतर। वह एक पैर पर भी एक क्षण खड़ा नहीं रहता। बाएं से दाएं पर चला जाता है; दाएं से बाएं पर चला जाता है। अब अगर इस छोटे-से अनुभव में आप एक प्रयोग करें, उस स्थिति में अपने को ऐसा समतुल करके खड़ा करें कि न वजन बाएं पैर पर हो, न दाएं पैर पर; दोनों पैरों के बीच में आ जाए। यह बहुत छोटा-सा प्रयोग आपसे कह रहा हूं। वजन दोनों के बीच आ जाए। एक क्षण को भी उसकी झलक आपको मिलेगी, तो आप हैरान हो जाएंगे। क्योंकि जब मन बाएं पर जा सकता है और दाएं पर जा सकता है, तो बीच में क्यों नहीं रह सकता! कोई कारण नहीं है, कोई बाधा नहीं है, सिर्फ पुरानी आदत के अतिरिक्त। एक क्षण को आप ऐसे अपने को समतुल करें कि बीच में रह गए, न बाएं पर वजन है, न दाएं पर। और जिस क्षण आपको पता चलेगा कि बीच में है, उसी क्षण आपको लगेगा कि शरीर नहीं है।एकदम लगेगा, बॉडीलेसनेस हो गई है; शरीर में कोई भार न रहा। शरीर जैसे निर्भार हो गया। ऐसा लगेगा, जैसे आकाश में चाहें तो उड़ सकते हैं! उड़ नहीं सकेंगे; लेकिन लगेगा ऐसा कि चाहें तो उड़ सकते हैं। ग्रेविटेशन नहीं मालूम होता। ग्रेविटेशन तो है, जमीन तो अभी भी खींच रही है। लेकिन जमीन का जो भार है, वह असली भार नहीं है। असली भार तो मन का है, जो निरंतर द्वंद्व, हर छोटी चीज में द्वंद्व को खड़ा करता है। इस छोटे-से प्रयोग को भी अगर रोज पंद्रह मिनट कर पाएं, तो तीन महीने में आप उस स्थिति में आ जाएंगे, जब दोनों पैर के बीच में आपको खड़े होने का अनुभव शुरू हो जाएगा। तो इस छोटे-से सूत्र से आपको मन को समत्वबुद्धि में ले जाने का आधार मिल जाएगा। तब जब भी मन और कहीं भी बायां-दायां चुनना चाहे, तब आप वहां भी बीच में ठहर पाएंगे