शिक्षा वह है जो अभय सिखाए, अलोभ में प्रतिष्ठा दे, साहस दे और विद्रोह की शक्ति दे-अज्ञात की चुनौती को मानने की हिम्मत दे। ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा नहीं, प्रेम सिखाए। महत्वाकांक्षा की ज्वरग्रस्त गति नहीं, वरन सहज, स्वस्फूर्त विकास दे। लेकिन यह तो तभी होगा जब हम प्रत्येक व्यक्ति की निजता की अद्वितीयता को स्वीकार करेंगे। किसी की किसी से तुलना आधारभूत भूल है। तुलना से स्पर्धा होती है। न कोई किसी से आगे है, न पीछे; न कोई किसी से ऊपर है, न नीचे।प्रत्येक वही है जो वह है और प्रत्येक को वही होना है। बच्चों को कहा जाता है, राम जैसे बनो, बुद्ध जैसे बनो, गांधी जैसे बनो। इससे भूल भरी बातें और क्या होगी? क्या कोई किसी और जैसा बन सकता है या कि कभी बन सका है? राम तो बनना असंभव है। हां, रामलीला के राम जरूर बन सकते हैं। इसी कारण तो संसार में इतना पाखंड है। पाखंड आदर्श की छाया है। जब तक आदर्श थोपे जाएंगे तब तक पाखंड भी रहेंगे। पाखंड को मिटाना है तो आदर्शों को छोड़ना आवश्यक है।वस्तुतः कोई भी मनुष्य किसी दूसरे जैसा होने को पैदा नहीं हुआ है। प्रत्येक को स्वयं जैसा ही होना है। प्रत्येक को, उस बीज को ही वृक्ष तक पहुंचाना है जो कि उसमें ही छिपा है और मौजूद है। शिक्षा जिस दिन भी व्यक्ति की अद्वितीय और बेजोड़ निजता के सत्य को स्वीकार करेगी, उस दिन ही एक बड़ी क्रांति का सूत्रपात हो जाएगा। फिर हम किसी के ऊपर किसी और के ढांचे को नहीं थोपेंगे। वरन उस व्यक्ति के बीज में ही जो प्रसुप्त है उसके जागरण के लिए ही चेष्टारत होंगे।आदर्शों के कारण बहुत हिंसा होती रही है और व्यक्ति को वही होने का अवसर नहीं दिया जा सका है जो कि वह हो सकता है। और अन्य होने के प्रयास में अन्य तो कोई हो ही नहीं पाता है। हां, वह होने से जरूर वंचित रह जाता है जो कि वह हो सकता था। मैं अत्यंत विनम्रता से यह निवेदन करना चाहता हूं कि मनुष्य को वही होने दें जो कि होने को वह पैदा हुआ है। गुलाब गुलाब है, और चमेली चमेली, और जुही जुही। और कोई किसी से न छोटा है, न बड़ा है। गुलाब को चमेली नहीं होना है और चमेली को जुही नहीं होना है। यह छोटे-बड़े और ऊंचे-नीचे का मूल्यांकन एकदम झूठा है। इस मूल्यांकन को नष्ट करें।