आप जहां भी हों, आपका जिस भी चीज़ से सामना हो, हर परिस्थिति में जो भी उत्तम है, उसे ले लें। तब जीवन सीखने का एक सिलसिला बन जाता है।
इंसान की मौलिक चाहत भौतिक में जमे रहने की है, पर साथ ही साथ वह भौतिक से परे का स्वाभद भी चखना चाहता है।
खुलेपन का मतलब है कोई निष्कर्ष न निकालना – हर चीज को बस वैसे ही देखना जैसी वह है।
देश के चारों स्तंभ – कार्यपालिका, न्यायपालिका, सेना, लोक सेवा – लचीले और फुर्तीले बनाए जाने चाहिए। इन सभी को उचित योग की जरुरत है।
जागरूकता से आप जीवन का अर्थ जानेंगे। बेफिक्री से आप जीवन का जादू जान जाएंगे।
ईश्वर तब तक नहीं प्रकट होता, जब तक कि यह आपकी पहली प्राथमिकता नहीं बन जाता।
भीतर की ओर मुड़ना बहुत आसान है। चूंकि आप बहुत लंबे समय से बाहर की ओर रुख किए हुए हैं, सिर्फ इसी वजह से भीतर मुड़ना मुश्किल लगता है।
अगर आपके पास देखने के लिए आंखें हैं, अगर आपमें जीवन को महसूस करने के लिए संवेदनशीलता है, तो हर चीज एक चमत्कार है।
आमोद-प्रमोद या शेखी दिखाने के लिए किसी जीवन को बिना जरूरत के नष्ट करना, निश्चित रूप से अपराध है।
‘अच्छे’ लोगों ने दुनिया को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। हमें ‘अच्छे’ लोगों की जरूरत नहीं है। हमें खुशहाल और समझदार लोगों की जरूरत है।
जैसे ही आप सचेतन हो जाते हैं, अचेतनता और स्व-चेतनता दोनों ही गायब हो जाते हैं।
प्राण प्रतिष्ठा की वजह से लिंग भैरवी एक जीवंत देवी बन गईं है। उनकी प्रबल मौजूदगी, हमारे और आने वाली पीढ़ियों के लिए, एक बहुत बड़ा वरदान है।
आप दो अलग-अलग तरीकों से अपना विस्तार कर सकते हैं – एक है जीतकर के, और दूसरा अंगीकार कर के। पहला तरीका दुःख लाता है और दूसरा आनन्द।
“जीवन संयोग से चलता है” – आप यह जितना ही ज्यादा सोचते हैं जीवन को उतना ही कम समझते हैं। जीवन संयोग से नहीं चलता – हर चीज कारण और प्रभाव से बंधी हुई है।
जो इंसान अपनी भीतरी और बाहरी निश्चलता को नहीं छूता है, वह निश्चित रूप से कामकाजों में खो जाएगा।