भगवान महावीर का रास्ता निषेध और नकार का है। उनका रास्ता एक डॉक्टर का रास्ता है। तुम डॉक्टर के पास जाते हो तो वह तुम्हारी बीमारी का निदान करता है, बीमारियों को उघाड़कर रखता है। एक-एक बीमारी की पकड़ करता है, जांच-पड़ताल करता है, डायग्नोसिस करता है। बीमारी पकड़ में आते ही वह औषधि बता देता है। हालांकि ऐसा करते वक्त वह स्वास्थ्य की ज्यादा बात नहीं करता। उसने बीमारी पकड़ ली और इलाज बता दिया, अब आगे तुम्हारे ऊपर है। अगर तुम्हें बीमारी से परेशानी है और जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, लगातार दर्द बना हुआ है, तो दवा तुम लोगे, चाहे वह कड़वी ही क्यों न हो। बीमारी से सामना हुआ तो दवा तुम अपना ही लोगे।दवा बीमारी को काट देगी। बीमारी के कट जाने के बाद जो बाकी रह जाएगा उसे बखान नहीं किया जा सकता। उसकी बात ही नहीं की जा सकती। वह अभिव्यक्ति के योग्य नहीं है। उसे चाहे ‘ईश्वर’ कहो, ‘समाधि’ कहो या ‘कैवल्य’ कोई शब्द इसे बखान नहीं कर सकता। लेकिन जब तुम्हारी सारी बीमारी हट जाती है, तब अचानक जो घटित है, वही स्वास्थ्य है। स्वास्थ्य बताया नहीं जा सकता, बस अनुभव किया जा सकता है। यही वजह है कि भगवान महावीर के वचनों में तुम्हें बार-बार दुख की चर्चा मिलेगी। इससे थोड़ी बेचैनी भी होती है क्योंकि तुम सुख की चर्चा सुनना चाहते हो। तुम कहते हो,‘यह क्या हमेशा दुख का राग है!’ इसलिए पश्चिमी देशों में जब महावीर के वचन पहली बार पहुंचने शुरू हुए तो लोगों ने समझा कि वह दुखवादी हैं।असल में भगवान महावीर दुखवादी नहीं हैं। एक बार सोच कर देखो। क्या डॉक्टर तुम्हारी बीमारी के बारे में चर्चा करे या दवा से उसके इलाज के बारे में सोचे। तो क्या तुम यह कहोगे कि यह बीमारी का पक्षपाती है/ वह चर्चा ही बीमारी की इसलिए कर रहा है कि तुम उससे छूट जाओ। वह स्वास्थ्य की चर्चा नहीं कर रहा है, क्योंकि चर्चा करने से कभी कोई स्वस्थ हुआ है। इसलिए महावीर दुख का ही विश्लेषण करते चले जाते हैं। हजारों तरफ से एक ही इशारा है उनका- दुख। इसके जरिए वह चाहते हैं कि हमें यह दिखाई देने लगे कि हमारा सारा जीवन दुख है।सुबह से शाम तक, जन्म से मृत्यु तक दुख का ही अंबार है। ऐसी तुम्हारी पहचान जिस दिन हो जाएगी …और यही हो सकता है, क्योंकि इसमें तुम खड़े हो। भगवान महावीर इसकी चिंता नहीं करते कि सृष्टि कब बनी। इसकी भी चिंता नहीं करते, किसने बनाई। इन दूर की बातों में जाने से फायदा क्या है/ कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम दूर की बातें करके पास की असलियत को भुलाना चाहते हैं/ ऐसा तो नहीं है कि सृष्टि किसने बनाई, कौन है बनानेवाला, क्यों बनाई इस तरह के बड़े-बड़े सवाल उठाकर जिंदगी के असली सवालों को हम ढक लेना चाहते हैं/ कहीं ऐसा तो नहीं कि ये सब खुद को सांत्वना देने के तरीके हैं ताकि दुख दिखाई न पड़ें। ताकि दुख चुभे नहीं और दुखों से पीड़ा न हो।भगवान महावीर ऐसा ही जानते हैं। यह सब सांत्वना का जाल है। इसलिए महावीर दोस्त भी मालूम नहीं पड़ते। इसलिए तो महावीर बहुत अनुयायी इकट्टठे नहीं कर पाए। उन्होंने अगर सुख की चर्चा की होती तो दुखी लोग उनके पास आ गए होते। उन्होंने तो दुख की चर्चा की। इससे दुखियों ने सोचा, ‘हम वैसे ही दुखी हैं, हमें बख्शो! ऐसे ही क्या दुख कम हैं, जो अब तुम और चर्चा करके जोड़े जा रहे हो/ हमें थोड़ी सांत्वना दो, भरोसा दो, आश्वासन दो, आशा दो। कहो हमें कि आज सब गलत है, कल सब ठीक हो जाएगा। कहो कि यह संसार तो माया है।’ भगवान महावीर ने नहीं कहा कि यह संसार माया है क्योंकि उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम दुख को माया कहकर भुलाना चाहते हैं। जिस चीज को भी माया कह दो, उसे भुलाने में सहूलियत हो जाती है। संसार माया है तो दुख भी माया है, बीमारी भी माया है, तो झेल लो, भोग लो, कुछ असलियत तो इसमें है नहीं। वैसे भी असली चीज तो परमात्मा है।