आप खुद को विचारों और भावनाओं से जितना ज्यादा मंडित करते हैं, आप जीवन से उतने ही दूर चले जाते हैं।
सत्य का खोजी होने का मतलब है – जो चीजें आप नहीं जानते हैं, उनके बारे में कोई धारणा बनाना बंद कर दें।
जीवन जबरदस्ती अपना रास्ता खोज निकालने के बारे में नहीं है। जीवन तो है कि इसे घटित होने दें और खुद के माध्यम से व्यक्त होने दें।
इस धरती की सारी समस्याओं की एक ही बुनियाद है – बेताल मनुष्य, ऐसे मनुष्य जिनका किसी भी चीज़ के साथ तालमेल नहीं बैठता।
हर वो चीज़ जो गतिमान है, एक-न-एक दिन खुद को खत्म कर लेती है। जो अचल है, वही सदा बना रहता है।
अगर आप ‘खुद’ से भरे हुए हैं, तो जीवन आपको मसलेगा ही। इसके अलावा कोई और इलाज नहीं है।
आपका जीवन और आप इसे कैसे अनुभव करते हैं – यह सब पूरी तरह से आपकी रचना है। जब यह बात आपको पूरी तरह समझ आ जाती है, सिर्फ तभी आप बदलने के लिए तैयार होंगे।
भारत एक काफी संगठित अव्यवस्था है, और यही इसकी ताकत है।
लोगों को अपने जीवन अपनी खास जरूरतों के मुताबिक ढालने चाहिएं, न कि समाज के चलन के अनुसार।
असल में ध्यान का अर्थ है, अनुभव के स्तर पर यह एहसास होना कि आप कोई अलग इकाई नहीं हैं – आप एक ब्रह्मांड हैं।
नेताओं को लोगों के आगे खड़े होकर बाधा नहीं बनना चाहिए। उन्हें उनके पीछे रहकर उनका साथ देना चाहिए।
अगर आप कोई अच्छीक चीज देखते हैं, तो आपको उसे विकसित करना चाहिए – चाहे वो आपके भीतर हो या आपके आसपास हो।
सच्ची खुशहाली को अनुभव करने का सिर्फ एक ही तरीका है – अपने भीतर की ओर मुड़ना। योग का यही अर्थ है – ऊपर नहीं, बाहर नहीं, बल्कि अंदर। बाहर निकलने की एकमात्र राह अंदर की ओर है।
समय रुपया-पैसा नहीं है। समय जीवन है।
अगर आप अपने दिमागी कचरे के ढेर पर खड़े हैं, तो आपके पैर कभी जमीन पर नहीं आएंगे।