ध्यानलिंग जीवन के सारे उल्लास को अपने भीतर समाए हुए है, पर फिर भी यह जीवन से परे है।
मैं न तो आधुनिक गुरु हूं और न ही प्राचीन – मैं बस सामयिक हूं, जैसे हर गुरु था। अगर कोई वर्तमान में प्रासंगिक नहीं है, तो उसके होने का मतलब ही क्या है।
‘यह पल’ कोई विचार नहीं है। यही एकमात्र वास्तविकता है।
कोई भी फ़िलोसोफी सृष्टि की तौहीन है। यह लोगों को बस उसी किस्म की व्याख्या देती है, जो वे सुनना चाहते हैं।
जीवनसाथी एक सहयात्री है न कि कोई मंजिल।
आत्मज्ञान कोई ‘बिग-बैंग’ धमाके की तरह नहीं होता है – यह निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है।
खुशियां सुखद हवा के झोंकों की तरह आती-जाती रहती हैं। ये दुख ही हैं जो आपके अंदर कांटों की तरह धंसे रहते हैं – जब तक कि आपको यह एहसास नही हो जाता कि वह आपकी ही करनी है।
यौवन जबरदस्त ऊर्जा का दौर होता है। आपको संभावनाओं की ओर ध्यान देना चाहिए, न कि समस्याओं की ओर।
सफलता को हमेशा आर्थिक नजरिये से नापना जरूरी नहीं है। इसे जीवन की गुणवत्ता से नापना चाहिए।
बस यहां मौजूद होने मात्र का जो परम आनन्द है, जब आप इस आनंद की तलाश करते हैं, जहां सांस लेना भी एक व्यवधान हो, सिर्फ तभी आप खुद को पूर्ण कह सकते हैं।
आप प्रेम में खड़े नहीं हो सकते, आप प्रेम में चढ़ नहीं सकते, आप प्रेम में उड़ नहीं सकते – आप प्रेम में सिर्फ डूब (पड़) सकते हैं।
आध्यात्मिक प्रक्रिया किसी दिन स्वर्ग जाने के बारे में नहीं है। यह जीवन को इसकी संपूर्ण गहनता में जानने के बारे में है।
जैसे ही आपको गलतियां करने, उन्हें स्वीकार करने, और उन्हें सुधारने में कोई समस्या नहीं होती – तब शायद ही कभी गलतियां होंगी।
आपका शरीर एक बड़ी छलांग लगा सकता है, आपकी उर्जाएं एक ऊंची उछाल ले सकती हैं, लेकिन मन हमेशा किश्तों में रूपांतरित होता है।
जब आपका अंतरतम भक्ति से भीगा होता है, तब एक पत्थर का टुकड़ा भी ईश्वर बन जाता है।