मेरा संपूर्ण कार्य है लोगों को खुद आगे बढ़ने के लिए सशक्त बनाना, न कि उनसे अपना अनुसरण करवाना।
अर्थ की जरूरत सिर्फ मन को होती है। जीवन को अर्थ की कोई जरूरत नहीं है। आप जीवित हैं – यही खूबसूरत है, और बस यही सब कुछ है।
योग में बड़े अनुभवों का केवल एक ही प्रयोजन होता है – आपको आध्यात्मिक राह पर कायम रखना।
जब प्रज्ञा, संवेदनशीलता, और बोध जीवन के सबसे अहम पहलू बन जाते हैं, सिर्फ तभी लैंगिक समानता आती है।
अगर आप ब्रह्मांड के किसी दूसरे हिस्से से धरती को देखते हैं, तो हम लोग दिव्य-लोक के प्राणी लगेंगे। यह तो बस एक दृष्टिकोण की बात है।
अगर आप ग्रहण करना चाहते हैं, तो आपको देना होगा। यह कोई बाजार का नियम नहीं है। यही जीवन का ढंग है।
योग इस बारे में है कि हम अपनी पूंजी को शरीर, दिमाग, और भावनाओं से हटाकर अपनी अन्तरात्मा (जीव या प्राणों) में लगाएं – कल्पना से हटाकर वास्तविकता में लगाएं।
आपको जो कहना है, अगर आप उसके लिए कम शब्दों का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं, तो आप अपनी वाणी के प्रति जागरूक हो जाएंगे, और परिणाम स्वरूप अपने विचारों के प्रति भी।
दुनिया को सुंदर बनाने के लिए हर किस्म के लोगों की जरूरत होती है। आप भी यह कर सकते हैं।
बीते कल की सूचना के आधार पर जीने का मतलब है कि आप वर्तमान में जागरूक रहने की संभावना को खो रहे हैं।
हम यहां या तो सृष्टि के एक अंश की तरह जी सकते हैं, या फिर सृष्टि के स्रोत की तरह। हमें यही चुनाव करना है।
मेरे जीवन का हर पहलू भक्ति से सराबोर है। भक्ति ऊपर बैठे किसी भगवान के प्रति नहीं, बल्कि हर उस चीज़ के प्रति जो मेरे आस-पास है।
एक गेंद इस दुनिया को बदल सकती है।
अस्तित्व के साथ आपका संबंध जितना गहरा होगा, आपके जीवन का अनुभव भी उतना ही मधुर होगा। कृष्ण इस बात का जीवंत प्रमाण थे।
आप जो भी काम ख़ुशी-ख़ुशी करते हैं, वो हमेशा सहजता से हो जाता है।