भारत के विचारक ओशो रजनीश का जन्मदिवस 11 दिसंबर को मनाया जाता है. देश-विदेश में फैले उनके अनुयायी इसे मुक्ति दिवस या मोक्ष दिवस के तौर पर मनाते हैं. हर विषय पर अलग और खुलकर राय देने की वजह से वह काफी विवादों में भी रहे. उन्हें ‘सेक्स गुरु’ तक की संज्ञा भी दी गई लेकिन ओशो के ‘संभोग से समाधि की ओर’ के विचार को काफी लोकप्रियता मिली. उन्होंने हर उस विषय पर खुलकर राय रखी जिसे ज्यादातर धर्मगुरु वर्जित मानते हैं. उनके विचारों से सहमत या असहमत होने के लिए पहले उन्हें पढ़ना जरूरी होगा. आइए जानते हैं क्या कहते हैं ओशो न्यूडिटी और कामवासना पर…
ओशो कहते हैं- यौन क्रिया जीवन का अद्भुत रहस्य है. वह जीवन की अद्भुत मिस्ट्री है. उससे कोई घबराने की, भागने की जरूरत नहीं है. जिस दिन हम इसे स्वीकार कर लेंगे, उस दिन इतनी बड़ी उर्जा मुक्त होगी भारत में कि हम न्यूटन पैदा कर सकेंगे, हम आइंस्टीन पैदा कर सकेंगे. उस दिन हम चाँद-तारों की यात्रा करेंगे. लेकिन अभी नहीं. अभी तो हमारे लड़कों को लड़कियों के स्कर्ट के आस पास परिभ्रमण करने से ही फुरसत नहीं है. चाँद तारों का परिभ्रमण कौन करेगा. लड़कियां चौबीस घंटे अपने कपड़ों को चुस्त करने की कोशिश करें या कि चाँद तारों का विचार करें. यह नहीं हो सकता. यह सब सेक्सुअलिटी का रूप है.
अगर किसी समाज में भोजन वर्जित कर दिया जाये, कि भोजन छिपकर खाना. कोई देख न ले. अगर किसी समाज में यह हो कि भोजन करना पाप है, तो भोजन के पोस्टर सड़कों पर लगने लगेंगे फौरन. क्योंकि आदमी तब पोस्टरों से भी तृप्ति पाने की कोशिश करेगा. पोस्टर से तृप्ति तभी पायी जाती है. जब जिंदगी तृप्ति देना बंद कर देती है. और जिंदगी में तृप्ति पाने का द्वार बंद हो जाता है. जिस दिन दुनिया में यौन संबंध स्वीकृत होगा, जैसा कि भोजन, स्नान स्वीकृत है. उस दिन दुनिया में अश्लील पोस्टर नहीं लगेंगे. अश्लील किताबें नहीं छपेगी. अश्लील मंदिर नहीं बनेंगे. क्योंकि जैसे-जैसे वह स्वीकृति होता जाएगा. अश्लील पोस्टरों को बनाने की कोई जरूरत नहीं रहेगी. वह जो इतनी अश्लीलता और कामुकता और सेक्सुअलिटी है, वह सारी की सारी वर्जना का अंतिम परिणाम है.
हम शरीर को नंगा देखना और दिखाना चाहते है. इसलिए कपड़े चुस्त होते चले जाते है. सौंदर्य की बात नहीं है यह, क्योंकि कई बार चुस्त कपड़े शरीर को बहुत बेहूदा और भोंडा बना देते है. हां किसी शरीर पर चुस्त कपड़े सुंदर भी हो सकते है. किसी शरीर पर ढीले कपड़े सुंदर हो सकते है. और ढीले कपड़े की शान ही और है. ढीले कपड़ों की गरिमा और है. ढीले कपड़ों की पवित्रता और है.
लेकिन वह हमारे ख्याल में नहीं आयेगा. हम समझेंगे यह फैशन है, यह कला है, अभिरूचि है, टेस्ट है. नहीं ‘’टेस्ट’’ नहीं है. अभी रूचि नहीं है. वह जो जिसको हम छिपा रहे है भीतर दूसरे रास्तों से प्रकट होने की कोशिश कर रहा है. लड़के लड़कियों का चक्कर काट रहे है. लड़कियां लड़कों के चक्कर काट रही है. तो चाँद तारों का चक्कर कौन काटेगा. कौन जायेगा वहां? और प्रोफेसर? वे बेचारे तो बीच में पहरेदार बने हुए खड़े है. ताकि लड़के लड़कियां एक दूसरे के चक्कर न काट सकें. कुछ और उनके पास काम है भी नहीं. जीवन के और सत्य की खोज में उन्हें इन बच्चों को नहीं लगाना है. बस, ये सेक्स से बच जायें, इतना ही काम कर दें तो उन्हें लगता है कि उनका काम पूरा हो गया.
यह सब कैसा रोग है, यह कैसा डिसीज्ड माइंड, विकृत दिमाग है हमारा. हम कामेच्छा के तथ्यों की सीधी स्वीकृति के बिना इस रोग से मुक्त नहीं हो सकते. यह महान रोग है.
जीवन के सारे साधारण तथ्यों से जीवन के बहुत ऊंचे तथ्यों की खोज करनी है. सेक्स सब कुछ नहीं है इस दुनिया में सत्य भी है. उसकी खोज कौन करेगा. यहीं जमीन से अटके अगर हम रह जायेंगे तो आकाश की खोज कौन करेगा. पृथ्वी के कंकड़ पत्थरों को हम खोजते रहेंगे तो चाँद तारों की तरफ आंखे उठायेगा कौन?
पता भी नहीं होगा उनको जिन्होंने पृथ्वी की ही तरफ आँख लगाकर जिंदगी गुजार दी. उन्हें पता नहीं चलेगा कि आकाश में तारे भी हैं, आकाश गंगा भी है. रात्रि के सन्नाटे में मौन सन्नाटा भी है आकाश का. बेचारे कंकड़ पत्थर बीनने वाले लोग, उन्हें पात भी कैसे चलेगा कि और आकाश भी है. और अगर कभी कोई कहेगा कि आकाश भी है, चमकते हुए तारे भी है. तो वे कहेंगे सब झूठी बातचीत है, कोरी कल्पना है. सच में तो केवल पत्थर ही पत्थर है. हां कहीं रंगीन पत्थर भी होते है. बस इतनी ही जिंदगी है.
नहीं, मैं कहता हूं इस पृथ्वी से मुक्त होना है,ताकि आकाश दिखाई पड़ सके. शरीर से मुक्त होना है. ताकि आत्मा दिखाई पड़ सके. और सेक्स से मुक्त होना है, ताकि समाधि तक मनुष्य पहुंच सके. लेकिन उस तक हम नहीं पहुंच सकेंगे. अगर हम इसी से बंधे रह जाते है तो. और सेक्स से हम बंध गये है. क्योंकि हम सेक्स से लड़ रहे है. लड़ाई बाँध देती है. समझ मुक्त कर देती है. अंडरस्टैंडिंग चाहिए समझ चाहिए.
सेक्स के पूरे रहस्य को समझो बात करो विचार करो. मुल्क में हवा पैदा करो कि हम इसे छिपायेंगे नहीं. समझेंगे. अपने पिता से बात करो, अपनी मां से बात करो. वैसे वे बहुत घबराएंगे. अपने प्रोफेसर से बात करो. अपने कुलपति को पकड़ो और कहो कि हमें समझाओ. जिंदगी के सवाल है ये. वे भागेगे. वे डरे हुए लोग है. डरी हुई पीढ़ी से आए है. उनको पता भी नहीं है. जिंदगी बदल गयी है. अब डर से काम नहीं चलेगा. जिंदगी का एन काउंटर चाहिए मुकाबला चाहिए. जिंदगी से लड़ने और समझने की तैयारी करो. मित्रों का सहयोग लो, शिक्षकों का सहयोग लो, मां-बाप का सहयोग लो.
वह मां गलत है, जो अपनी बेटी को और अपने बेटे को वे सारे राज नहीं बात जाती,जो उसने जाने. क्योंकि उसके बताने से बेटा और उसकी बेटी भूलों से बच सकती है. उसके न बताने उनसे भी उन्हीं भूलों को दोहराने की संभावना है. जो उसने खुद की होगी. बाप गलत है, जो अपने बेटे को अपनी प्रेम की और अपनी निजी जिंदगी की सारी बातें नहीं बता देता. क्योंकि बता देने से बेटा उन भूलों से बच जायेगा. शायद बेटा ज्यादा स्वस्थ हो सकेगा. लेकिन वही बात इस तरह जीयेगा कि बेटे को पता चले कि उसने प्रेम ही नहीं किया. वह इस तरह खड़ा रहेगा. आंखे पत्थर की बनाकर कि उसकी जिंदगी में कभी कोई औरत इसे अच्छी लगी ही नहीं थी.
यह सब झूठ है. यह सरासर झूठ है. तुम्हारे बाप ने भी प्रेम किया है. उनके बाप ने भी प्रेम किया है. सब बाप प्रेम करते रहे है. लेकिन सब बाप धोखा देते रहे है. तुम भी प्रेम करोगे. और बाप बनकर धोखा दोगे. यह धोखे की दुनिया अच्छी नहीं है. दुनिया साफ सीधी होनी चाहिए. जो बाप ने अनुभव किया है वह बेटे को दे जाये. जो मां ने अनुभव किया, वह बेटी को दे जाये. जो ईष्र्या उसने अनुभव कि है. जो प्रेम के अनुभव किये है. जो गलतियां उसने की है. जिन गलत रास्तों पर वह भटकी है और भ्रमि है. उस सबकी कथा को अपनी बेटी को दे जाये. जो नहीं दे जाते है, वे बच्चे का हित नहीं करते है. अगर हम ऐसा कर सके तो दुनिया ज्यादा साफ होगी.
हम दूसरी चीजों के संबंध में साफ हो गये है. शायद केमेस्ट्री के संबंध में कोई बात जाननी हो तो सब साफ है. फ़िज़िक्स के संबंध में कोई बात जाननी है तो सब साफ है. भूगोल के बाबत जाननी हो तो सब साफ है. नक्शे बने हुए है. लेकिन आदमी के बाबत साफ नहीं है. कहीं कोई नक्शा नहीं है. आदमी के बाबत सब झूठ है. दुनिया सब तरफ से विकसित हो रही है. सिर्फ आदमी विकसित नहीं हो रहा. आदमी के संबंध में भी जिस दिन चीजें साफ-साफ देखने की हिम्मत हम जुटा लेंगे. उस दिन आदमी का विकास निश्चित है.
यह थोड़ी बातें मैंने कहीं. मेरी बातों को सोचना. मान लेने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि हो सकता है कि जो मैं कहूं बिलकुल गलत हो. सोचना, समझना, कोशिश करना. हो सकता है कोई सत्य तुम्हें दिखाई पड़े. जो सत्य तुम्हें दिखाई पड़ जायेंगा. वही तुम्हारे जीवन में प्रकार का दिया बन जायेगा.