हिंसा का यह अर्थ नहीं है कि तुम किसी को मत मारो। अगर यह अर्थ है, तो अहिंसा का मतलब हुआ कि आत्मा मर सकती है। लेकिन महावीर तो निरंतर कहते हैं कि आत्मा अमर है। जब आत्मा अमर है, तो तुम उसे मार ही कैसे सकते हो? जब मार ही नहीं सकते, तो हिंसा की बात ही कहां रही? अहिंसा का अर्थ यह नहीं है कि तुम किसी को मत मारो, उसका अर्थ है कि किसी को मारने की इच्छा मत करो। मरता तो कोई कभी नहीं, लेकिन मारने की इच्छा की जा सकती है। अहिंसा की कामना या हिंसा की वासना से मुक्त हो जाने का क्या अर्थ है? जब तक आदमी इंद्रियों को तृप्त करने के लिए विक्षिप्त है, तब तक हिंसा से मुक्ति असंभव है। इंद्रियां पूरे समय हिंसा कर रही हैं।
जब भी आपकी इंद्रियां भोगने के लिए कहीं कब्जा मांगती हैं और कब्जा नहीं मिल पाता, तभी हिंसा शुरू हो जाती है। पहले सूक्ष्म हिंसा जन्म लेती है, फिर वह पूर्ण होती है और फिर स्कूल रूप ले लेती है। हिंसा का संबंध हमारी इंद्रियों से होता है। अगर इंद्रियां वश में हैं, तो हिंसा का भाव मन में आएगा ही नहीं। अगर हमने इंद्रियों को काबू में नहीं किया, तो हिंसा तो जन्म लेगी ही। अहिंसा के सिद्धांत को अपनाकर आप हिंसा को खुद से दूर रख सकते हैं। मन में विचार आना ही नहीं चाहिए कि आपको किसी को मारना है। यह विचार तभी आने बंद होंगे, जब इंद्रियों पर नियंत्रण होगा।