भगवन बुद्ध ने संसार को जीवन के चार आर्य सत्य दिए हैं। भगवान् की यह देशना सर्वकालिक है। वे ढाई हजार वर्ष पूर हुए पर उनके बताये हुए मार्ग उस समय भी सटीक थे, आज भी हैं और जब तक मनुष्य है तब तक रहेंगे। उन्होंने मनुष्य के स्वभाव और चेतना की बात की है- श्रद्धा पर नहीं पर विज्ञान पर आधारित कर। उन्होंने एक जीवन विज्ञान दिया, दर्शन शास्त्र की बात ही नहीं की मात्र रोग व मोचिकित्सा की बात की है। किसी और पर आश्रित होने को नहीं कहा परन्तु स्वयं के जागरण व होश को महत्व दिया। इशारे दिए और मार्ग स्वयं ढूँढने को कहा। उनका सारा जोर इस बात पर था की मनुष्य की पीड़ा कैसे दूर हो, उसमें कैसे रूपांतर आए और वह स्वयं ही आनंद रूपी स्वभाव की पहचान कर सके।
इसके लिए भगवान् बुद्ध ने चार आर्य सत्यों की घोषणा की-
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दुःख है, मनुष्य दुखी है।
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मनुष्य के दुःख का, उसके दुखी होने का कारण है क्योंकि दुःख अकारण तो होता नहीं।
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दुःख का निरोध है दुःख के कारणों को हटाया जा सकता है। दुःख के मिटाने के साधन है, वे ही आनन्द को पाने के साधन है।
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दुःख निरोध की अवस्था है। एक ऐसी दशा है जब दुःख नहीं रह जाता, दुःख से मुक्त होने की पूरी संभावना है।