“एक स्त्री का एक ही बेटा था, वह भी मर गया तो रोती-बिलखती वह महात्मा बुध्दके पास पहुंची और उनके पैरों में गिरकर बोली, ‘महत्माजि, आप किसी तरह मेरे लाल को जीवित कर दें।’
महत्मा बुद्ध ने उसके प्रति सहानुभूति जताते हुए कहा, ‘तुम शोक न करो। बुद्ध ने उस महिला को सत्य बताने के लिए सराहना देते हुए कहा, में तुम्हारे बेटे को जीवित कर दूंगा लेकिन एक शर्त है की तुम किसी ऐसे घर से भिक्षा के रूप में कुछ भी मांग लाओ जहाँ किसी ब्यक्ति की कभी मृत्यु न हुई हो।’
उस स्त्री को कुछ तसल्ली हुई और दौड़कर गाँव पहुंची।
अब वह ऐसा घर खोजने लगी जहाँ किसी की मृत्यु न हुई हो। बहुत बहुत ढूंढा लेकिन ऐसा कोई घर उसे नहीं मिला। वह निराश होकर महात्मा बुध्द के पास आई और वस्तुस्थिति से अवगत कराया।
तब बुध्द बोले, ‘यह संसार-चक्र है। यहाँ जो आता है। उसे एक दिन अवश्य ही जाना पड़ता है। तुम्हें इस दुःख को धैर्यता से सहन करना चाहिए।’
तब महिला हो को बुद्ध के वचन समझ आये और उस महिला ने फिर बुद्ध से संन्यास लिया और मोक्ष की राह पर चलने लगी।”