“कपिलवस्तु के शाक्यवंशीय राजा सुद्धोदन और महिषी महामाया के पुत्र सिद्धार्थ गौतम (संस्कृत व हिन्दी : सिद्धार्थ गौतम झ्र५६३ ई.पू.- ४८७ ई.पू. का जन्म वैशाख-पूर्णिमा के दिन लुम्बिनी के उपवन में स्थित एक साल-वृक्ष के नीचे हुआ था जब उनकी माता अपने माता-पिता से मिलने अपने मायके देवदह जा रही था।
पुत्र-जन्म के तत्काल बाद महामाया वापिस कपिलवस्तु लौट आयी थी। तावविंस देवों से शिशु के जन्म की सूचना पाते ही शिशु के दादा सीहहनु के गुरु तथा राजपुरोहित तत्क्षण कपिलवस्तु पहुँचे। शिशु को अपनी गोद में उठा या जैसे ही शिशु को निकट से देखा तो उनकी आँखें पहले तो खुशी से चमक उठीं लेकिन फिर आँसुओं में डूब गयीं।
राजा सुद्धोदन द्वारा कारण पूछे जाने पर उन्होंने बताया था, ‘ यह शिशु बुद्ध बनने वाला है इसलिए मैं प्रसन्न हूँ। किन्तु दु:ख इस बात का है कि शिशु की बुद्धत्व-प्राप्ति तक मैं जीवित नहीं रह सकूंगा।’
शिशु के जन्म के पाँचवे दिन उसके नामकरण के अवसर पर एक सौ आठ ज्योतिषियों को आमंत्रित किया गया था जिन में आठ विलक्षण ज्योतिषी भी थे। उन आठ में से छ: राम, धज, लक्खण, मन्ती, भोज और सुदन्त ने यह भविष्यवाणी की थी कि वह शिशु या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या एक बुद्ध। किन्तु सबसे कम उम्र के ज्योतिषी कोण्डञ्ञ का कथन था कि वह शिशु निश्चित रुप से एक बुद्ध बनेगा।
शिशु का नाम सिद्धार्थ गौतम रखा गया। सातवें दिन सिद्धार्थ की माता का देहांत हो गया, तब उसके लालन-पालन का दायित्व उसकी मौसी महापजापति ने लिया (वह भी सुद्धोदन की एक रानी थी ; और उनका विवाह भी सुद्धोदन के साथ उसी दिन हुआ था जिस दिन महामाया का।)
सोलह वर्ष की अवस्था में सिद्धार्थ ने शाक्यों की एक सभा में अपने अद्भुत युद्ध-कौशल दिखाये। सारभड़ग जातक के अनुसार तो उन्होंने एक ऐसे धनुष को उठा अपने कर्तव्य दिखाये थे जिसे हज़ार आदमी मिल कर भी नहीं उठा सकते थे।