भगवान महावीर स्वामी के जीवन की प्रेरक कथा : 2. ग्वाले को सद्‍बुद्धि

एक दिन संध्या के समय महावीर गांव के निकट पहुंचे तो वहां एक वृक्ष के ‍नीचे निश्चल खड़े होकर ध्यान करने लगे। तभी एक ग्वाला अपनी कुछ गायों को लेकर वहां आया और उन्हें संबो‍धित करके बोला- ‘हे मुनि! मैं गांव में दूध बेचने जा रहा हूं। मेरे लौटने तक मेरी गायों का ध्यान रखना।’
इतना कहकर उनका जवाब सुने बिना वह वहां से चला गया। कुछ समय बाद वह लौटा तो देखा कि महावीर स्वामी ज्यों के त्यों खड़े हैं लेकिन गायें वहां नहीं हैं। उसने पूछा- ‘मुनि! मेरा पशु-धन कहां हैं?’
महावीर ने कोई उत्तर नहीं दिया तो इधर-उधर देखते हुए वह जंगल में घुस गया और पूरी रात वहां अपनी गायें तलाश करता रहा। इसी बीच गायें चरकर लौट आईं और महावीर को घेरकर बैठ गईं। सुबह थका-मांदा ग्वाला लौटा तो गायों को वहां देखकर आगबबूला हो उठा- ‘इस मुनि ने मुझे तंग करने के लिए मेरी गायों को छिपा दिया था। अभी इसकी खबर लेता हूं।’
यह कहकर उसने गायों को बांधने वाली रस्सी अपनी कमर से खोली और महावीर पर वार करने को हुआ। तभी एक दिव्य पुरुष ने वहां प्रकट होकर उसे रोक लिया- ‘ठहरो मूर्ख! यह क्या अपराध करने जा रहे हों। तुम बिना इनका उत्तर सुने अपनी गायें इनकी रखवाली में छोड़कर गए। अब पूरी गायें पाकर भी इन्हें दोष दे रहे हो। मूर्ख! ये भावी तीर्थंकर हैं।’ यह सुनकर ग्वाला महावीर के चरणों में गिर पड़ा और क्षमायाचना करके वहां से चला गया।

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