महावीर मुक्तिपथ पर दृढ़ कदमों से बढ़े जा रहे थे। तभी पीछे से उन्हें एक करुण पुकार सुनाई दी। उनके कदम ठिठक गए। पीछे मुड़कर देखा तो एक दुर्बल ब्राह्मण लाठी के सहारे गिरता-पड़ता दौड़ा आ रहा था। कुछ पल बाद ही वह महावीर के कदमों में आकर गिर पड़ा। उसकी आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। फिर लड़खड़ाती जुबान से वह बोला- ‘मेरी सहायता कीजिए राजकुमार वर्द्धमान। मुझे कुछ दीजिए। मेरी निर्धनता दूर कीजिए।’
वह बूढ़ा ब्राह्मण सोम शर्मा था, जो प्राय: उनसे दान-दक्षिणा लेने आता रहता था। वे भी आवश्यकतानुसार उसकी मदद करते रहते थे। उसकी हालत देखकर महावीर सहानुभूति से द्रवित हो गए। लेकिन आज देने के लिए उनके पास कुछ नहीं था। तभी उन्हें कंधे पर पड़े हुए दिव्य वस्त्र का ध्यान आया। उन्होंने उसे आधा फाड़कर सोम शर्मा को दे दिया। वह खुशी से भर उठा और उसे एक जौहरी के पास ले गया। जौहरी उसे देखकर बोला- ‘इसका आधा भाग कहां है? यदि तुम वह हिस्सा भी ले आओ तो मैं तुम्हें एक लाख स्वर्ण मुद्राएं दे सकता हूं।’
लालच में डूबा ब्राह्मण वापस महावीर के पीछे भागा और जहां-जहां वे गए, उनका पीछा करता रहा। लगभग एक साल बाद महावीर के कंधे से कपड़े का वह टुकड़ा गिरा तो सोम शर्मा उसे ले भागा और एक लाख स्वर्ण मुद्राओं में बेच दिया।