मन, वचन और कर्म पर संयम रखो

कायप्पकोपं रक्खेय्य कायेन संवुतो सिया।

कायदुच्चरितं हित्वा कायेन सुचरितं चरे॥

– बुद्ध कहते हैं कि शरीर के दुराचार से मनुष्य अपने को बचाए। अपने शरीर का संयम करें। शरीर का दुराचार छोड़कर सदाचार का पालन करें।

वची पकोप रक्खेय्य वाचाय संब्रुतो सिया।

वची दुच्चरितं हित्वा वाचाय सुचरितं चरे

– वाणी के दुराचार से मनुष्य अपने को बचाए। अपनी वाणी का संयम करें। वाणी के दुराचार को छोड़कर सदाचार का पालन करें।

मनोपकोपं रक्खेय्य मनसा संवुतो सिया।

मनोदुच्चरितं हित्वा मनसा सचरितं चरे॥

– मन के दुराचार से मनुष्य अपने को बचाए। अपने मन का संयम करें। मन के दुराचार को छोड़कर सदाचार का पालन करें।

कायेन संवुता धीरा अथो वाचाय संवुता।

मनसा संवुता धीरा ते वे सुपरिसंवुता॥

– जो बुद्धिमान लोग शरीर को संयम में रखते हैं, वाणी को संयम में रखते हैं, मन को संयम में रखते हैं, वे ही पूरे तौर से संयमी माने जाते हैं।

हर काम की कसौटी क्या हो?

– भगवान बुद्ध कहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य को काया, वचन और मन से काम करना चाहिए। जब हम काया से काम करना चाहें, तो सोचना चाहिए कि मेरा यह काय-कर्म अपने, दूसरे या दोनों के लिए पीड़ादायक तो नहीं? क्या यह अकुशल, दुख देने वाला काय-कर्म है? यदि हमे ऐसा लगे कि यह बुरा काय-कर्म है, तो उसे कभी मत करना

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