जो जागा है और जिसके भीतर सोये हुए मन का कोई भी हिस्सा नहीं बचा, जो परिपूर्ण चैतन्य से भरा है, और जिसकी अचेतना नष्ट हो गई, केवल उसकी आवाज में ही एक-स्वर सुना जा सकता है। तुम्हारी आवाज में दो-स्वर होंगे ही। वे अनिवार्य हैं। क्योंकि तुम्हारे भीतर मन के दो तल हैं।
ऊपर के तल को चेतन, कांशस मन कहते हैं। नीचे के गहरे तल को, जो सोया है, अंधेरे में डूबा है, उसे अचेतन, अनकांशस तल कहते हैं। और ये दोनों एक-दूसरे के विपरीत हैं। इसलिये तुम्हारी मुस्कुराहट भीतर के दुख को छिपाए होती है। और तुम्हारे आंसुओं में भी विपरीत की मौजूदगी रहती है।
जब तक ये दोनों मन मिट कर एक न हो जाएं, तब तक तुम्हारी आवाज दोहरी होगी; द्वंद्व, द्वैत से भरी होगी। इसे तुम थोड़ा निरीक्षण करोगे तो अपने भीतर भी पा सकोगे। और जब तक अपने भीतर न पा लोगे, तब तक यह कहानी समझ में न आएगी। कुछ बातें केवल अनुभव से ही समझ में आती हैं।
मैंने सुना है, निर्जन रास्ते पर दो अमरीकी यात्री रुके। रुकना पड़ा, क्योंकि सामने ही बड़ी तख्ती लगी थीः ‘द रोड इज क्जोल्ड।’ रास्ता बंद है। लेकिन तख्ती के पास से ही उन्होंने देखा कि अभी-अभी गई गाड़ी के पहियों के निशान हैं। तो फिर उन्होंने तख्ती की फिक्र न की। फिर उन निशानों का पीछा किया। वे आगे बढ़ गये। तीन मील बाद वह रास्ता टूट गया था, पुल गिर गया था, और उनके पास वापस लौटने के सिवाय कोई उपाय न था।
उनमें से एक ने दूसरे से कहा, हमने तख्ती पर भरोसा क्यों नहीं किया? दोनों वापस लौटे तो तख्ती की दूसरी तरफ नजर पड़ी, जहां लिखा था, ‘अब भरोसा आया न कि रास्ता बंद है?’ तुम्हारी जिंदगी भी करीब-करीब ऐसी है। तख्तियों पर सब लिखा है। वे तख्तियां ही शास्त्र हैं। लेकिन तुम उनकी न सुनोगे, जब तक तुम्हारा अनुभव ही तुम्हें न बता दे कि वे सच हैं। अनुभव के अतिरिक्त सच को जानने का कोई उपाय भी नहीं है।
तो अब जब तुम दूसरे की प्रशंसा में लीन होओ, तब थोड़ा भीतर झांक कर देखना, कहीं निंदा तो नहीं छिपी है! और जब तुम दूसरे की खुशी में खुशी जाहिर करो, तो थोड़ी आंख बंद करना और ध्यान देना कि भीतर कहीं पीड़ा तो नहीं छिपी? ईर्ष्या तो नहीं छिपी? और तुम निश्चित रूप से पाओगे।
और जब तुम दूसरे के दुख में दुःख प्रगट करो और तुम्हारी आंखों में आंसू भी बहें और तुम वे शब्द भी बोलो जो दूसरे के लिए सांत्वना हैं, तब भी गौर करना। तुम पाओगे, भीतर तुम हंस रहे हो, भीतर तुम प्रसन्न हो। यह इतना दुःखद है और अहंकार को इससे इतनी चोट लगती है कि मैं और ऐसा कर सकता हूं?
कोई मर गया है और तुम उसके घर दुःख, संवेदना प्रगट करने गये हो। तुम सोच भी नहीं सकते कि तुम्हारे भीतर कोई खुशी छिपी होगी। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, छिपी है। और इस डर से कि कहीं छिपी न हो, तुम भीतर लौटकर भी नहीं देखते। थौड़ा गौर करोगे, तो दिखाई पड़ेगी।