इस जगत में मिलता कुछ भी नहीं है, खोजना पड़ता है। भगवान तो यहीं मौजूद है और ऐसा नहीं कि आपकी पीड़ा का उसको पता नहीं है, लेकिन आप पीठ करके खड़े हैं। और इतनी स्वतंत्रता आपको है कि आप चाहें तो भगवान को लें और चाहें तो न लें।
जिस दिन आपको मिलेगा, उस दिन आप भगवान से शिकायत कर सकते हैं कि जब तक मैंने तुझे नहीं खोजा, तूने ही मुझे क्यों न खोज लिया? लेकिन भगवान उस दिन कहेगा कि जबरदस्ती तेरे ऊपर हावी हो जाऊं, वह भी परतंत्रता हो सकती है।
स्वतंत्रता का अर्थ ही इतना है कि जो हम खोजते हैं वह हमें मिल सके, जो हम नहीं खोजते हैं वह न मिल सके। और ध्यान रहे, कुछ भी इस जगत में नहीं मिलता है बिना खोजे, खोजना ही पड़ता है। सुदामा कैसा है, यह सवाल बड़ा नहीं है। सुदामा इनकार भी कर सकता है। और मैं मानता हूं कि अगर कृष्ण देने गए होते सुदामा के घर, तो शायद इनकार भी कर देता।
जरूरी नहीं था कि स्वीकार करता। सुदामा की तैयारी होनी चाहिए। ये सारी की सारी घटनाएं बहुत मनोवैज्ञानिक अर्थ रखती हैं। इनकी अपनी साइकोलांजिकल अर्थवत्ता है। हम तो खोजने जाएंगे, जिस दिन हमारी खोज की तैयारी पूरी होगी, उसी दिन वह हमें मिल सकता है। उसके पहले हमें नहीं मिलेगा। पड़ा हो बगल में तो भी नहीं मिलेगा।
हमारी खोज ही उसके मिलने का द्वार बनेगी। इसलिए सुदामा गरीब है, अकेला सुदामा गरीब नहीं है, बहुत लोग गरीब हैं। और कृष्ण के लिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सुदामा गरीब है कि कोई और गरीब है। बड़ा फर्क जो पड़ता है वह यह है कि सुदामा इतना गरीब होकर भी देने चला आया है, आदमी अमीर होने के योग्य है।
यह जो सुदामा की स्थिति है, उसी से परिवर्तन शुरू होता है। और हम ही, प्रत्येक व्यक्ति व्यक्ति की हैसियत से अपने परिवर्तन को शुरू करता है, बाकी फिर सारी शक्तियां मिलती चली जाती हैं। जिस आदमी ने इस पृथ्वी पर गरीब होने का तय किया है, उसे सब गरीबी की परिस्थितियां मिल जाएंगी। जिस आदमी ने इस पृथ्वी पर अज्ञानी रहने का तय किया है, उसे अज्ञानी होने की सब परिस्थितियां मिल जाएंगी।
जिस आदमी ने इस जगत में ज्ञान के लिए तय कर रखा है, उसे ज्ञान के सब द्वार खुल जाएंगे। इस जगत में हम जो मांगते हैं, वह लौट आता है, वह आ जाता है। बहुत गहरे में, हमारी ही आकांक्षाएं, हमारी ही प्रार्थनाएं, हमारी ही अभीप्साएं हम पर लौट आती हैं। और जब अगर कोई आदमी समझता हो कि मैं गरीब क्यों हूं, तब अगर आप उसके पूरे व्यक्तित्व को खोजेंगे तो बहुत हैरान हो जाएंगे, उसने गरीब होने की सारी व्यवस्था कर रखी है।
वह गरीब होने के लिए पूरा का पूरा तत्पर है। और अगर गरीब न हो तो खुद भी चैंकेगा कि यह क्या हो गया! अज्ञानी ने पूरी व्यवस्था कर रखी है अज्ञान की। और अपने अज्ञान की सुरक्षा के सब उपाय कर रहा है। और अगर कोई उसका अज्ञान तोड़ने आए तो क्रुद्ध हो जाता है। और अपने बागुड़-बगीचे को डंडा लेकर खड़ा हो जाता है कि भीतर प्रवेश मत कर जाना!
नहीं, जो हम खोजने जाते हैं, वही होता है। सुदामा जाता है कृष्ण के पास, तो सुदामा को कृष्ण मिल पाते हैं। कृष्ण का आना उचित भी नहीं है। प्रतीक्षा कृष्ण को करनी चाहिए सुदामा के आने तक। वह प्रतीक्षा जरूरी है। ऐसा नहीं है कि परमात्मा आप पर नाराज है और आपके पास नहीं आ रहा है। लेकिन आपको उसके पास जाना पड़ेगा। और जिस दिन जाएंगे, उस दिन आप पाएंगे, वह सदा तत्पर था आपसे मिलने को। लेकिन आप ही राजी नहीं थे।