विरह का अर्थ

विरह का अर्थ क्या है?
विरह का अर्थ है: भीतर मै शून्य हूं। जहाँ परमात्मा होना चाहिए था वहां कोई भी नहीं है, सिंहासन खाली पड़ा है। विरह का अर्थ है: बाहर सब , भीतर कुछ भी नहीं। विरह का अर्थ है: यह भीतर का सूनापन काटता है, यह भीतर का संन्नाटा काटता है। लेकिन इस विरह से गुजरना होता है। इस विरह से गुजरे बिना कोई भी उस सिंहासन के मालिक तक नहीं पहुँच पाता है। यह कीमत है जो चुकानी पड़ती है। शायद इसीलिये लोग, अधिक लोग ईश्वर में उत्सुक नहीं होते। इतनी कीमत कौन चुकाए। किस भरोसे चुकाए। शायद इसीलिए लोगो ने झुटे और औपचारिक धर्म खड़े कर लिए है। मंदिर गए दो फूल चढ़ा दिए, घंटा बजा दिया, दिया जला आए, निपट गए, बात ख़तम हो। न भीतर का घंटा बजा, न भीतर का दिया जला, न भीतर की आरती सजी, बहार का इंतजाम कर लिया। तुम्हारी दुकान भी बाहर और तुम्हारा मंदिर भी बाहर। तो तुम्हारी दुकान और तुम्हारे मंदिर में बहुत फर्क नहीं हो सकता। दुकान बाहर तो मंदिर भीतर तो होना चाहिए।
अभी झरत बिगसत कंवल

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