ऊर्जा के स्रोत osho

एक चाय-घर में लोग गपशप में लगे हैं। एक सैनिक युद्ध से लौटा है, वह बड़ी बहादुरी हांक रहा है। वह कह रहा है कि मैंने एक दिन में पचास सिर काटे, ढेर लगा दया सिरों का।
मुल्ला नसीरुदीन बहुत देर से सुन रहा है। उसने कहा: यह कुछ भी नहीं। मैं भी युद्ध में गया था अपनी जवानी में। एक दिन में मैंने पचास हजार आदमियों के पैर काट दिए थे। सैनिक ने कहा: पैर! कभी सुना नहीं, यह भी कोई बात है? सिर काटे जाते हैं, पैर नहीं ।
मुल्ला ने कहा। मैं क्या करता, सिर तो कोई पहले ही काट चुका था! मरों के अगर तुम पैर काट भी लाए तो कोई विजेता नहीं हो। अगर तुमने मार ही डाला अपने भीतर तो तुम कुछ बुद्धिमान नहीं हो। और तुम अपने भीतर जिनको शत्रु समझकर मार डाले हो, उनको मारने के बाद पाओगे: तुम्हारे जीवन की सारी ऊर्जा के स्रोत सूख गए। इसलिए तुम्हारे संतो के जीवन में न उल्लास है, न उत्सव है, न आनंद है। एक गहन उदासी है। तुम्हारे संतो के जीवन में कोई सृजनात्मकता भी नहीं है। उनसे कोई गीत भी नहीं फूटते। उनसे कोई नृत्य भी नहीं जगता। क्योंकि जो ऊर्जा गीत बन सकती थी और नृत्य बन
सकती थी, उस ऊर्जा को तो वे नष्ट करके बैठ गए।
उनके जीवन में कोई करुणा भी नहीं दिखाई पड़ती। क्योंकि क्रोध को मार दिया, करुणा पैदा कहां से हो?
ओशो

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