मिल जाए तो मिट्टी, खो जाए तो सोना Osho

मुल्ला नसरुद्दीन एक शराबखाने में बैठा था। एक मित्र के साथ गपशप चल रही थी, पी रहे थे। मुल्ला नसरुद्दीन ने उस मित्र से पूछा कि बड़ी देर हो गई, आज घर नहीं जाना है? मित्र ने कहा, घर जाकर क्या करूं? घर है कौन? गैर शादी शुदा हूं। घर खाली और सूना है। मुल्ला नसरुद्दीन ने हाथ सिर से मार लिया; उसने कहा, हद्द हो गई! तुम इसलिए यहां बैठे हो? हम इसलिए बैठे हैं कि घर पत्नी है। घर जाएं तो कैसे जाएं! जितनी देर कट जाए उतना अच्छा है।
कल मैं एक गीत पढ़ रहा था:
दुनिया जिसे कहते हैं,जादू का खिलौना है।
मिल जाए तो मिट्टी है,खो जाए तो सोना है।
जो मिल जाता है, वही मिट्टी हो जाता है। जिस स्त्री के पीछे दीवाने थे, मिल गई और मिट्टी हो गई। जिस पुरुष के पीछे पागल थे, मिल गया और मिट्टी हो गया। मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है। न मिले…मजनू सौभाग्यशाली था, लैला नहीं मिली, सोना बनी ही रही। इतने सौभाग्यशाली सभी मजनू नहीं होते। मजनुओं को लैला मिल जाती है। और तब गले में फांसी लग जाती है। मजनू कभी जाग ही न सका अपने स्वप्न से, क्योंकि लैला मिली ही नहीं। मिल जाती तब बच्चू को पता चलता ! तब फिर लैला लैला न करता।
कितनी बार तो सुख मिले! या तो खो गए और नहीं खो गए तो तुम्हारे हाथ में मिट्टी हो गए। और कितनी बार तो दुख मिले! या तो खो गए या धीरे धीरे तुम उनके आदी हो गए, वे तुम्हारी आदत बन गए। सुख और दुख के पार भी कुछ है, इसीलिए जीवन में अर्थ है, गरिमा है, महिमा है, परमात्मा है। सुख दुख के पार उठना है।
ओशो
अजहू चेत गवांर

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