एक शब्द प्रेम का Osho

प्रेम का हाथ जहाँ छू दे, वहीं क्रांति ?
टालस्टाय एक दिन सुबह एक गांव की सडक से निकला।एक भिखारी ने हाथ फैलाया।टालस्टाय ने अपनी जेब तलाशे लेकिन जेब खाली थे।वह सुबह घूमने निकला था और पैसे नहीँ थे।
उसने भिखारी को कहा, मित्र ! क्षमा करो, मेरे पास पैसे नहीं हैं, तुम जरूर दुख मानोगे।लेकिन मैं मजबूरी में पड गया हूं। पैसे मेरे पास नहीं हैं। उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, मित्र! क्षमा करो, पैसे मेरे पास नहीँ हैं। उस भिखारी ने कहा कोई बात नहीं। तुमने मित्र कहा, मुझे बहुत कुछ मिल गया।यू काल्ड मी ब्रदर, तुमने मुझे बंधु कहा ! और बहुत लोगों ने मुझे अब तक पैसे दिए थे लेकिन तुमने जो दिया है, वह किसी ने भी नहीं दिया था।मैं बहुत अनुगृहीत हूं।
एक शब्द प्रेम का – मित्र, उस भिखारी के हृदय में क्या निर्मित कर गया,क्या बन गया।टालस्टाय सोचने लगा।उस भिखारी का चेहरा बदल गया, वह दूसरा आदमी मालूम पडा ।यह पहला मौका था कि किसी ने उससे कहा था, मित्र।भिखारी को कौन मित्र कहता है? इस प्रेम के एक शब्द ने उसके भीतर एक क्रांति कर दी,वह दूसरा आदमी है। उसकी हैसियत बदल गयी, उसकी गरिमा बदल गयी, उसका व्यक्तित्व बदल गया।वह दूसरी जगह खडा हो गया। वह पद-दलित एक भिखारी नहीं है, वह भी एक मनुष्य है। उसके भीतर एक नया क्रिएशन शुरू हो गया।प्रेम के एक छाेटे से शब्द ने!
प्रेम का जीवन ही क्रिएटिव जीवन है। प्रेम का जीवन ही सृजनात्मक जीवन है। प्रेम का हाथ जहां भी छू देता है, वहां क्रांति हो जाती है, वहां मिट्टी सोना हो जाती है। प्रेम का हाथ जहां स्पर्श देता है, वहां अमृत की वर्षा शुरू हो जाती है।
ओशो

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