देवी-देवताओं का कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं: ओशो

देवी-देवता, ये पौराणिक प्रतीक हैं। इनका तुम्हारे बाहर कोई भी अस्तित्व नहीं है, लेकिन इनका मनोवैज्ञानिक अस्तित्व है, और वह मनोवैज्ञानिक अस्तित्व सहायक हो सकता है। उसका उपयोग किया जा सकता है। इसलिए पहली बात जो कि समझने योग्य है वह यह कि वह कोई वास्तविक व्यक्ति नहीं हैं जो कि इस जगत में रहते हों, लेकिन वे मनुष्य के चित्त के वास्तविक प्रतीक हैं।
उदाहरण के लिए, कार्ल गुस्ताव जुंग इन प्रतीकों के रहस्य के उद्घाटन के बहुत करीब पहुंच गया था। वह मानसिक रोगियों पर काम कर रहा था। वह अपने मरीजों से कहता था कि वह जायें और चित्र बनायें, जो भी उनके मन में आये। एक आदमी जो कि सीजोफ्रेनिक है, खंड-खंड बंटा है, टूटा हुआ है, वह कुछ विशेष चीजें बनायेगा और वे चीजें एक विशेष ढांचा लिए होंगी।
सभी खंडित मानसिकता के लोग कुछ विशेष चीजें बनायेंगे, और उन सबका ढांचा वही होगा। और जब वे रोगमुक्त हो जाएंगे, स्वस्थ हो जाएंगे तो वह बिल्कुल भिन्न चित्र बनाएंगे और यह बात प्रत्येक मरीज के साथ होगी। सिर्फ उनके चित्रों को देखकर ही तुम कह सकते हो कि मरीज बीमार है या नहीं।
तब जुंग को अनुभव में आया कि जब भी कोई व्यक्ति जो कि विभाजित व्यक्तित्व के रोग से ग्रसित था, जब वह वापस एक हो गया, ठीक हो गया, तब वह ऐसे चित्र बनाता है जैसे कि मंडल होता है; वर्तुल की तरह के चित्र बनाता है। वह वर्तुल, वह मंडल उसके भीतर के मंडल से गहरे में संबंधित है जो कि पुनः उपलब्ध कर लिया गया है।
अब भीतर वह भी एक वर्तुल हो गया है, जुड़ गया है। वह एक हो गया है। तब उसके चित्रों में यकायक वर्तुल फूट पड़ते हैं। तो जुंग इस नतीजे पर पहुंचा कि तुम्हारा अंतर्मन किसी खास अवस्था में कुछ विशेष चीजें अभिव्यक्त करता है। यदि मन की स्थिति बदल जाती है तो तुम्हारे स्वप्न भी बदल जायेंगे, तुम्हारी अभिव्यक्तियां भी बदल जाएंगी।
हिंदू पौराणिक देवी-देवता एक विशेष मनोदशा के विशेष स्वप्न हैं। जब तुम उस मनोदशा में होते हो तब तुमको वैसे स्वप्न दिखलाई पड़ने लगते हैं। उनमे एक प्रकार की समानता होगी। सारे संसार में उनमें एक प्रकार की समानता होगी। थोड़ी-बहुत भिन्नता संस्कृति, शिक्षा, प्रशिक्षण आदि के कारण होगी, लेकिन गहरे में उनमें समानता होगी। उदाहरण के लिए मंडल एक पौराणिक प्रतीक है। सारे संसार में यह बार-बार आता रहा है।
प्राचीन ईसाई चित्रों में भी यह है। चीनी, जापानी तथा भारतीय कला में भी मंडल का एक आकर्षण रहा है। किसी भी तरह जब अंतर्दृष्टि वर्तुलाकार हो जाती है, जब एक धारा की तरह हो जाती है, अखंड हो जाती है, अविभाजित हो जाती है, तो तुम अपने स्वप्न में वर्तुल देखने लगते हो। यह वर्तुल तुम्हारी वास्तविकता को बताता है। इसी तरह सभी प्रतीक व्यक्तिगत सत्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। और यदि कोई समाज किसी देवता को कोई विशेष रूप देता है तो यह बहुत सहायक सिद्ध होता है। यह साधक के लिए बहुत सहायक सिद्ध होता है, क्योंकि अब वह बहुत से आंतरिक स्वप्न-दर्शनों को समझ सकता है।
फ्रायड ने सपनों की व्याख्या करके पश्चिम में एक नये युग का प्रारंभ किया। फ्रायड के पहले पश्चिम में कोई भी सपनों में दिलचस्पी नहीं रखता था। किसी ने सोचा भी नहीं था कि सपनों का भी कुछ अर्थ हो सकता है या कि सपनों की भी अपनी कुछ वास्तविकता हो सकती है या कि उनके पास भी कोई गुप्त कुंजियां हो सकती हैं जो कि मनुष्य के व्यक्तित्व को खोल सकती हैं। लेकिन भारत में सदा से इसका ज्ञान था।
हम सदा से सपनों की व्याख्या करते रहे हैं। और केवल सपने ही नहीं, क्योंकि सपने तो साधारण हैं, हम दर्शनों की भी व्याख्या करते रहे हैं। दर्शन उन लोगों के सपने हैं जो कि ध्यान कर रहे हैं और अपनी चेतना को रूपांतरित कर रहे हैं। वे भी सपने ही हैं। सामान्य चेतना में सपने घटित होते हैं। और अब फ्रायड के मनोविज्ञान से यह निष्कर्ष निकला है कि विशेष प्रकार के सपने एक विशेष अर्थ रखते हैं।

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