कमजोरी नहीं ताकत हैं भावनाएं

अकसर यह कहते सुना जाता है कि आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वालों के लिए भावनाएं एक बाधा है। तो क्या उस राह पर जाने से पहले से खुद को भाव-शून्य बनाना होगा? आइए जानते हैं सद्‌गुरु से:

अगर किसी इंसान के अंदर कोई भावना ही नहीं है तो आप उसे इंसान नहीं कह सकते। जो लोग कहते हैं कि भावनाएं आध्यात्मिक उन्नति के रास्ते में बाधक हैं, वे अगली बात यह बताएंगे कि आपका मन और शरीर भी एक बाधा है। एक तरह से देखें, तो यह सच है। आपका शरीर, मन, भावनाएं, और ऊर्जा ये तमाम चीजें या तो आपके जीवन में बाधा बन सकती हैं, या फिर यही चीजें जीवन में आगे बढऩे का सोपान भी बन सकती हैं। यह सब इस बात पर निर्भर है कि आप उनका इस्तेमाल किस तरह करते हैं।

आपकी भावनाएं आपके मन में चल रहे विचारों से अलग नहीं होतीं। जैसा आप सोचते हैं, वैसा आप महसूस करते हैं। विचार शुष्क होते हैं और भावनाएं रसीली। आपको लगता है कि आपका मन भी एक समस्या है। नहीं, समस्या मन नहीं है।

समस्या यह है कि आपको यह नहीं पता कि उसका इस्तेमाल कैसे करें। इसे ऐसे समझ सकते हैं।

आपको गाड़ी चलाना नहीं आता और हमने आपको तेजी से चलने वाली एक कार दे दी। अब यह कार न सिर्फ आपकी जिंदगी के लिए एक समस्या हो गई, बल्कि दूसरों की जिंदगी के लिए भी, क्योंकि आपने कार चलाना नहीं सीखा। जाहिर है, समस्या की वजह मशीन नहीं है। मन आपके लिए समस्या बन गया है, क्योंकि आपने इसे संभालने का तरीका सीखने की कोई कोशिश नहीं की।

मन और भावनाएं समस्या नहीं हैं। भावनाएं तो मानवीय जीवन का एक खूबसूरत पहलू हैं। अगर भावनाएं न हों तो लोग बदसूरत हो जाएं। हां, बस इतना है कि जब भावनाएं बेलगाम हो जाती हैं तो यह पागलपन कहलाता है। अगर आपके विचार बेकाबू हो जाते हैं, तो यह पागलपन है।

पूरी दुनिया को या यूं कहें कि नब्बे फीसदी दुनिया को सिर्फ भक्ति और प्रेम सिखाया जाता है। भक्ति अपनी भावनाओं को खूबसूरत बनाने का एक तरीका है।

ये भावनाएं बाधा नहीं हैं। मैं जीवन को इस रूप में देखता हूं कि यहां क्या काम करता है और क्या नहीं। अगर आप लगातार नाराज हैं, कुंठित हैं, हताश हैं, नफरत से भरे हैं, तो क्या यह आपके लिए काम करेगा? नहीं। लेकिन अगर आप अपनी भावनाओं को आनंद, दया और प्रेम से भरपूर बना लेते हैं तो यह आपके लिए जरूर काम करेगा। तो अहम बात यह है कि कौन सी चीज काम करती है। सवाल यही है कि कोई चीज काम करती है या नहीं।

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