मीरा भक्तिकाल की एक ऐसी संत हैं, जिनका सब कुछ कृष्ण के लिए समर्पित था। यहां तक कि कृष्ण को ही वह अपना पति मान बैठी थीं। भक्ति की ऐसी चरम अवस्था कम ही देखने को मिलती है।
कृष्ण को लेकर मीरा इतनी दीवानी थीं कि महज आठ साल की उम्र में मन ही मन उन्होंने कृष्ण से विवाह कर लिया। उनके भावों की तीव्रता इतनी गहरी थी कि कृष्ण उनके लिए सच्चाई बन गए। यह मीरा के लिए कोई मतिभ्रम नहीं था; यह एक सच्चाई थी कि कृष्ण उनके साथ उठते-बैठते थे, घूमते थे। ऐसे में मीरा के पति को उनके साथ दिक्कत होने लगी, क्योंकि वह हमेशा अपने दिव्य प्रेमी के साथ रहतीं थी। यहां तक कि मीरा ने अपने दिव्य प्रेमी के साथ संभोग भी किया। उनके पति ने हर संभव कोशिश की, यह सब समझने की, क्योंकि वह मीरा से वाकई प्यार करते थे। लेकिन वह नहीं जान सके कि आखिर मीरा के साथ हो क्या रहा है। दरअसल, मीरा जिस स्थिति से गुजर रही थीं और उनके साथ जो भी हो रहा था, वह बहुत वास्तविक लगता था, लेकिन उनके पति को कुछ भी नजर नहीं आता था। वह इतना निराश हो गए कि एक दिन उन्होंने खुद को नीले रंग से पोत लिया, कृष्ण की तरह के पोशाक पहन कर मीरा के पास आए। दुर्भाग्य से उन्होंने गलत तरह के रंग का इस्तेमाल कर लिया, जिसकी वजह से उन्हें एलर्जी हो गई और शरीर पर चकत्ते निकल आए।
मीरा के इर्द गिर्द के लोग शुरुआत में बड़े चकराए कि आखिर मीरा का क्या करें। बाद में जब कृष्ण के प्रति मीरा का प्रेम अपनी चरम ऊंचाइयों तक पहुंच गया तब लोगों को यह समझ आया कि वे कोई असाधारण औरत हैं। लोग उनका आदर करने लगे। यह देख कर कि वे ऐसी चीजें कर सकती हैं, जो कोई और नहीं कर सकता, उनके आस-पास भीड़ इकट्ठी होने लगी। पति के मरने के बाद मीरा पर व्यभिचार का आरोप लगाया गया। उन दिनों व्यभिचार के लिए मत्यु दंड दिया जाता था। इसलिए शाही दरबार में उन्हें जहर पीने को दिया गया। उन्होंने कृष्ण को याद किया और जहर पीकर वहां से चल दीं। लोग उनके मरने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन वह स्वस्थ्य और प्रसन्न बनी रहीं। इस तरह की कई घटनाएं हुईं। दरअसल भक्ति वो है, जो व्यक्ति को खुद से भी खाली कर देती है।
“भक्ति वो है, जो व्यक्ति को खुद से भी खाली कर देती है।”
जब मैं भक्ति कहता हूं तो मैं किसी मत या धारणा में विश्वास की बात नहीं कर रहा हूं। मेरा मतलब पूरे भरोसे और आस्था के साथ आगे बढ़ने से है। तो सवाल उठता है, कि मैं भरोसा कैसे करूं? आप इस धरती पर आराम से बैठे हैं, यह भी भरोसा ही है। यह गोल धरती बड़ी तेजी से अपनी धुरी पर और सूरज के चारों ओर घूम रही है। मान लीजिए अचानक यह धरती माता उल्टी दिशा में घूमने का फैसला कर लें, तो हो सकता है कि आप जहां बैठे हैं, वहां से छिटककर कहीं और चले जाएं। आप नहीं जानते आप कहां पहुंच जायेंगे।
तो आप आराम से बैठें, मुस्कराएं, दूसरों से बातें करें, इन सबके लिए आपको बहुत ज्यादा भरोसा की जरूरत है। लेकिन यह सब आप अनजाने में और बिना प्रेम-भाव के कर रहे हैं। इस भरोसा को पूरी जागरुकता और प्रेम के साथ करना सीखिए। यही भक्ति है। इस सृष्टि पर पूरा भरोसा रखते हुए अगर आपने जागरुकता और प्रेम के साथ यहां बैठना सीख लिया, तो यही भक्ति है। भक्ति कोई मत या मान्यता नहीं है। भक्ति इस अस्तित्व में होने का सबसे खूबसूरत तरीका है।