योग ज्ञान को समूचे विश्व में फैलाया सप्तऋषियों ने

जब आदि योगी ने खुद को आदि गुरु में रूपांतरित करके अपनी योगिक विद्या को सात साधकों को देना शुरू किया, तो इसमें कई साल लग गए। इस प्रक्रिया के पूरे होने पर यही सात लोग  ब्रह्म ज्ञानी बन गए और हम आज उनको “सप्तऋषि” के नाम से जानते हैं। हमारी संस्कृति में इन ऋषियों को पूजा जाता है।

 

उन्होंने शिव से परम प्रकृति में खिलने की तकनीक और ज्ञान प्राप्त किया। शिव ने इन सातों लोगों को योग के अलग अलग पहलुओं की गहराई से जानकारी दी, जो आगे चलकर योग के सात मुख्य पहलू बन गए। आज भी अगर आप देखें तो पाएंगे कि योग की सात विशेष विधाएं हैं।

"इन सातों ऋषियों को सात दिशाओं में विश्व के अलग-अलग हिस्सों में भेजा गया, ताकि ये अपना ज्ञान आम इंसान तक पहुंचा सकें।"

 

इन सातों ऋषियों को सात दिशाओं में विश्व के अलग-अलग हिस्सों में भेजा गया, ताकि ये अपना ज्ञान आम इंसान तक पहुंचा सकें। इन सप्तऋषियों में से एक मध्य एशिया गए, दूसरे मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीकी भाग में गए, तीसरे ने दक्षिण अमेरिका और चौथे ने पूर्वी एशिया की राह पकड़ी। पांचवें ऋषि हिमालय के निचले इलाकों में उतर आए। छठे ऋषि वहीं आदि योगी के साथ रुक गए और सातवें ने दक्षिण दिशा में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की। दक्षिणी प्रायद्वीप की यात्रा करने वाले यही ऋषि हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। जानते हैं उनका नाम क्या था? उनका नाम था – अगस्त्य मुनि।

 

अगर आप दक्षिण में कहीं भी जाएंगे तो आपको वहाँ के कई गाँवों में तमाम तरह की पौराणिक कथाएं सुनने को मिलेंगी। ’अगस्त्य मुनि’ ने इसी गुफा में ध्यान किया था’, ‘अगस्त्य मुनि ने यहां एक मंदिर बनवाया’, ‘इस पेड़ को अगस्त्य मुनि ने ही लगवाया था’, ऐसी न जाने कितनी दंत कथाएं वहां प्रचलित हैं। अगर आप उनके द्वारा किए गए कामों को देखें और यह जानें कि पैदल चलकर उन्होंने कितनी दूरी तय की तो आपको इस बात का सहज ही अंदाजा हो जाएगा कि वह कितने बरस जिए होंगे। कहा जाता है कि इतना काम करने में उन्हें चार हजार साल लगे थे। हमें नहीं पता कि अगस्त्य चार हजार साल जिए, चार सौ साल या फिर 140 साल, लेकिन इतना तो तय है कि उनका जीवनकाल असाधारण था। अपने जीवनकाल में इतने सारे कामों को अंजाम देना तो सुपरमैन जैसा काम ही हुआ ना!

 

"शिव ने इन सातों लोगों को योग के अलग अलग पहलुओं की गहराई से जानकारी दी, जो आगे चलकर योग के सात मुख्य पहलू बन गए।"

अगस्त्य मुनि ने आध्यात्मिक प्रक्रिया को किसी शिक्षा या परंपरा के जैसे नहीं, बल्कि जीवन जीने के तौर पर, व्यावहारिक जीवन का हिस्सा बना दिया। उन्होंने सैकड़ों की तादाद में ऐसे योगी पैदा किए, जो अपने आप में ऊर्जा के भंडार थे। कहा तो यहां तक जाता है कि उन्होंने कोई ऐसा शख्स नहीं छोड़ा जिस तक इस पवित्र योगिक ज्ञान और तकनीक को न पहुंचाया हो। इसकी झलक इस बात से मिलती है कि उस इलाके में आज भी तमाम ऐसे परिवार हैं, जो जाने अनजाने योग से जुड़ी चीजों का पालन कर रहे हैं। इन लोगों के रहन-सहन, जिस तरह वे बैठते हैं, खाते हैं, वे जो भी करते हैं, उसमें अगस्त्य के कामों की झलक दिखती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि उन्होंने घर-घर में योग की प्रतिष्ठा की।

 

हजारों साल पहले आदि योगी ने जिस ऊर्जा और कार्य की नींव रखी थी, वह आज भी फल फूल रही है। तमाम आध्यात्मिक तकनीकों और ज्ञान का यह संचार आज भी करोड़ों ज़िंदगियों में आंतरिक रूपांतरण की वजह बन रहा है।

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