चांद के साथ चलो…

चंद्रमा की अलग-अलग स्थितियों का मानव के शरीर और मन पर अलग-अलग तरह का असर पड़ता है। अलग-अलग स्थितियों का अलग-अलग मकसद के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

हम आधुनिक समय में जी रहे हैं, जहां दिन हो या रात, हमारी आंखों के सामने रोशनी चमकती रहती है। मेरे ख्याल से आज शहरों में रहने वाले अधिकतर लोगों का ध्यान पूर्णिमा की चांद की तरफ भी नहीं जाता। आश्चर्य है कि आखिर आप पूर्णिमा के चांद को अनदेखा कैसे कर सकते हैं?

 

क्या वह इतना बड़ा और चमकीला नहीं होता कि आपका ध्यान खींच सके ? चंद्रमा की अलग-अलग स्थितियों का मानव के शरीर और मन पर अलग-अलग तरह का असर पड़ता है। भारत में हर दिन का महत्व होता है क्योंकि चंद्रमा की हर स्थिति का मानव कल्याण के लिए किस तरह लाभ उठाया जा सकता है, यह हमारी संस्कृति में बखूबी समझा गया है। अलग-अलग स्थितियों का अलग-अलग मकसद के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

पूर्णिमा से अमावस्या तक और फिर अमावस्या से पूर्णिमा तक बहुत सी चीजें घटित होती हैं। अपने साथ कुछ भी करने के लिए, यह जानना लाभदायक होगा कि चंद्रमा किस स्थिति में है क्योंकि इससे शरीर में अलग तरह का गुण और ऊर्जा पैदा होती है। अगर कोई जागरूक है तो वह इसका लाभ उठा सकता है। 

चंद्रमा की हर स्थिति को आप या तो आसमान में सर उठा कर देख कर जान सकते हैं या अगर आप अपने शरीर में जागरूकता और समझ का एक खास स्तर ले आएं, तो आपको पता चलेगा कि हर स्थिति में शरीर थोड़ा अलग तरीके से व्यवहार करता है। यह पुरुष और स्त्री दोनों शरीरों में होता है, लेकिन स्त्री शरीर में अधिक साफ प्रकट होता है। इंसान के भीतर के जो चक्र हैं- जिन पर मानव जन्म, या कहें इस शरीर का सृजन निर्भर करता है, वह चंद्रमा के समय-चक्र से गहरे जुड़े हुए हैं।

तर्क से परे

 

पूर्वी सभ्यताओं में, खासकर भारत में, हमारे दैनिक जीवन में चंद्रमा का बहुत गहरा प्रभाव है, इसलिए हमने दो तरह के कैलेंडर बनाए। दुनियावी कामों के लिए, हमने सौर कैलेंडर इस्तेमाल किया, लेकिन अपने जीवन के दूसरे व्यक्तिपरक पहलुओं के लिए, जिसे आप सब्जेक्टिव अस्पेक्ट कह सकते हैं, जो महज सूचना या तकनीक नहीं बल्कि एक जीवंत पहलू है, हमारे पास चंद्र कैलेंडर है। आम तौर पर चंद्रमा का प्रभाव अतार्किक माना जाता है। पश्चिम में, किसी भी अतार्किक चीज को पागलपन का नाम दे दिया जाता है। अंग्रेजी भाषा में चंद्रमा को “लूनर” कहते हैं। इसी से एक कदम आगे बढ़ने पर आपको शब्द मिलता हैं- ‘लुनेटिक’ जिसका अर्थ है पागल या विक्षिप्त। लेकिन भारतीय संस्कृति में, हमने हमेशा तर्क की सीमाएं देखीं। आपके जीवन के स्थूल पक्ष के लिए तर्क बहुत उपयोगी है। अगर आपको कारोबार करना है या घर बनाना है, तो आपको तार्किक होना होगा। लेकिन तर्क के परे एक आयाम है, जिसके बिना व्यक्तिपरक आयामों (सब्जेक्टिव अस्पेक्ट्स) तक नहीं पहुंचा जा सकता। जैसे ही हमारा तार्किक दिमाग गणनाओं के बदले अंतर्ज्ञान से जीवन को देखना शुरु करता है, चंद्रमा महत्वपूर्ण हो जाता है। 

मुख्य रूप से ‘लूना’ शब्द का मतलब चंद्रमा होता है, लेकिन इसका यह भी मतलब है कि आप तर्क से दूर हो गए हैं। अगर आपका सिस्टम सुव्यवस्थित नहीं है और अगर आप तर्क से दूर हो गए हैं तो आप पागलपन की ओर बढ़ जाएंगे। लेकिन अगर आप सुव्यवस्थित हैं, तो आप अंतर्ज्ञान की ओर बढ़ेंगे। चंद्रमा एक परावर्तन है। आप चंद्रमा को देख सकते हैं क्योंकि वह सूर्य की रोशनी को परावर्तित करता है। मनुष्य का ज्ञान भी एक तरह का परावर्तन है। अगर आप परावर्तन के अलावा कोई और चीज देखते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप सच नहीं देख रहे हैं। कोई भी ज्ञान वास्तव में एक प्रतिबिंब होता है। चूंकि प्रतिबिंब चंद्रमा की प्रकृति है, इसलिए चंद्रमा को हमेशा से जीवन के गहरे अनुभवों या ज्ञान का प्रतीक माना जाता रहा है। इसलिए दुनिया में हर जगह चंद्रमा की रोशनी का रहस्यवाद या आध्यात्मिकता से गहरा संबंध रहा है। इस संबंध को दर्शाने के लिए ही आदियोगी शिव ने चंद्रमा के एक हिस्से को अपने सिर पर आभूषण के रूप में धारण किया था।

सृष्टि का रूप

योग के विज्ञान और योग की राह को भी इसी तरह बनाया गया था। शुरुआती कुछ कदम सौ फीसदी तार्किक हैं। योग के निचले सोपान बहुत तार्किक और सूर्य केंद्रित हैं। किसी और चीज की कोई जगह नहीं है। लेकिन जैसे-जैसे आप ऊपर की ओर जाते हैं, वह तर्क से दूर हो कर पूरी तरह अतार्किक क्षेत्रों में चला जाता है। तर्क को दूर करना पड़ता है क्योंकि जीवन और सृष्टि को इसी रूप में बनाया गया है। इसलिए चंद्रमा बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। जब हम शुरुआत करते हैं, तो हम सूर्य पर होते हैं। आपने देखा ही है कि जब सूर्य सक्रिय होता है, तो सब कुछ स्पष्ट और साफ होता है। जब चंद्रमा सक्रिय होता है, तो सब कुछ गड्ड-मड्ड हो जाता है, एक-दूसरे में मिल जाता है। आपको पता नहीं चलता कि क्या चीज क्या है।

 

विज्ञान भी केवल इसी तरह से घटित हो सकता है। यदि आप आधुनिक विज्ञान को देखें जो असल में अब भी अपनी शुरुआती अवस्था में है, तो यही चीज हो रही है। वे शुरुआत में सौ फीसदी तार्किक थे। कुछ कदम चलने के बाद, अब वे धीरे-धीरे अतार्किक हो रहे हैं। भौतिकशास्त्री तो लगभग रहस्यवादियों की तरह बात करने लगे हैं। वे भी वही भाषा बोलने लगे हैं क्योंकि सिर्फ यही एक तरीका है, सृष्टि ऐसी ही है। अगर आप सृष्टि का पता लगाएं, तो वह ऐसी ही होगी।

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