“अगर आप यहां अपनी पूरी चेतना में प्यार के साथ बैठना सीख जाएं, अस्तित्व पर उसी रूप में भरोसा करें, जैसा वह है, यही भक्ति है। भक्ति इस दुनिया में, इस अस्तित्व में, जीने का सबसे प्यारा तरीका है।”
जब मैं भक्ति की बात कर रहा हूं, तो मेरा मतलब आपके ‘बिलिफ सिस्टम’ यानी विश्वास से नहीं है। विश्वास नैतिकता की तरह होता है।
जो लोग किसी फालतू बात में विश्वास कर लेते हैं, उन्हें लगता है कि वे दूसरों से श्रेष्ठ हैं। आप किसी चीज में विश्वास कर लेने से बेहतर नहीं हो जाते। बात सिर्फ इतनी है कि आपकी मूर्खता में आत्मविश्वास आ जाता है। आत्मविश्वास और मूर्खता का मिश्रण बहुत खतरनाक होता है। बुद्धि के साथ हिचकिचाहट स्वाभाविक है। आप जितने बुद्धिमान होंगे, कई रूपों में उतने ही संकोची हो जाएंगे क्योंकि अगर आप अपने आस-पास सभी आयामों को देखें, तो आपको साफ-साफ समझ आ जाएगा कि आपका ज्ञान इतना कम है कि आत्मविश्वास की कोई गुंजाइश ही नहीं है। लेकिन आपका विश्वास इस समस्या को समाप्त कर देता है। यह आपको भारी आत्मविश्वास से भर देता है लेकिन आपकी मूर्खता का इलाज नहीं करता।
भक्ति का विश्वास से कोई लेना-देना नहीं है, यह भरोसे से जुड़ा है। तो सवाल उठता है, “मैं भरोसा कैसे कर सकता हूं?” आप आराम से बैठे हुए हैं, यह भरोसा है। क्योंकि आप जानते हैं कि कई बार धरती फट जाती है और लोगों को निगल जाती है। ऐसी भी घटनाएं हुई हैं, जहां लोगों पर आसमान गिर पड़ा है और उनकी मौत हो गई है। ऐसी स्थितियां भी उत्पन्न हुई हैं, जब लोगों ने जिस हवा में सांस ली है, उसी ने उनकी जान ले ली। यह गोल ग्रह काफी गति से घूम रहा है और यह पूरी सौर प्रणाली और तारामंडल पता नहीं किस गति से चल रहे हैं। मान लीजिए धरती मां अचानक उल्टी दिशा में घूमने का फैसला कर ले, तो हो सकता है कि अभी आप जहां बैठे हैं, वहां से उड़ जाएं – आप कुछ कह नहीं सकते।
इसलिए बैठने, मुस्कुराने, किसी की बात सुनने और किसी से बात करने के लिए आपको भरोसे की जरूरत होती है, बहुत सारे भरोसे की। लेकिन आप ऐसा अनजाने में और बिना किसी लगाव के करते हैं। बस यह भरोसा पूरी चेतनता और प्यार के साथ करें। यही भक्ति है। एक बार आप यहां अपनी पूरी चेतना में प्यार के साथ बैठना सीख जाएं, अस्तित्व पर उसी रूप में भरोसा करें, जैसा वह है, यही भक्ति है। भक्ति इस दुनिया में, इस अस्तित्व में, रहने का सबसे प्यारा तरीका है।