आखिर ये चक्र हैं क्या?
आजकल जहां देखो, वहां चक्रों की चर्चा हो रही है। खासकर पश्चिम में जहां भी आप जाएंगे आपको हर जगह ‘व्हील अलाइनमेंट सेंटर’ दिखाई देंगे, जहां आप अपने चक्रों को एक सीध में करवा सकते हैं। इसके अलावा वहां योग-स्टूडियो से लेकर काइरो-पै्रक्टिस करने वाले, सभी चक्रों पर काम कर रहे हैं। यह अब एक फैशन सा हो गया है। आइए समझें कि आखिर ये चक्र हैं क्या? मनुष्य के शरीर में कुल मिलाकर 114 चक्र हैं। वैसे तो शरीर में इससे कहीं ज्यादा चक्र हैं, लेकिन ये 114 चक्र मुख्य हैं। आप इन्हें नाड़ियों के संगम या मिलने के स्थान कह सकते हैं। यह संगम हमेशा त्रिकोण की शक्ल में होते हैं। वैसे तो ‘चक्र‘ का मतलब पहिया या गोलाकार होता है। चूंकि इसका संबंध शरीर में एक आयाम से दूसरे आयाम की ओर गति से है, इसलिए इसे चक्र कहते हैं, पर वास्तव में यह एक त्रिकोण है।
शरीर के सात मूल चक्र
अब सवाल यह है कि आखिर ये चक्र इस शरीर-प्रणाली में करते क्या हैं? मूल रूप से चक्र केवल सात हैं – मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार। पहला चक्र है मूलाधार, जो गुदा और जननेंद्रिय के बीच होता है, स्वाधिष्ठान चक्र जननेंद्रिय के ठीक ऊपर होता है। मणिपूरक चक्र नाभि के नीचे होता है। अनाहत चक्र हृदय के स्थन में पसलियों के मिलने वाली जगह के ठीक नीचे होता है। विशुद्धि चक्र कंठ के गड्ढे में होता है। आज्ञाचक्र दोनों भवों के बीच होता है। जबकि सहस्रार चक्र, जिसे ब्रम्हरंद्र्र भी कहते हैं, सिर के सबसे ऊपरी जगह पर होता है, जहां नवजात बच्चे के सिर में ऊपर सबसे कोमल जगह होती है।
ऊपर और नीचे वाले चक्र
हम चक्रों को ऊपर वाले और नीचे वाले चक्र कह सकते हैं, लेकिन ऐसी भाषा के प्रयोग से अक्सर गलतफहमी पैदा हो जाती है। यह एक इमारत की नींव और छत की तुलना करने जैसा है। छत कभी नींव से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होती। किसी भी इमारत की नींव उसका मुख्य आधार होती है, छत नहीं। इमारत की मजबूती और वह कितना टिकाऊ होगी, यह सब उसकी नींव पर निर्भर करता है न कि छत पर। लेकिन जब हम बात करते हैं तो कहते हैं कि छत ऊपर और नींव नीचे है।
मूलाधार
अगर आप की ऊर्जा मूलाधार में प्रबल है, तो आपके जीवन में भोजन और निद्रा का सबसे प्रमुख स्थान होगा। वैसे, चक्रों के एक से ज्यादा आयाम होते है। चक्रों का एक आयाम तो उनका भौतिक अस्तित्व है, लेकिन उनके आध्यात्मिक आयाम भी होते हैं। इसका मतलब है कि उनको पूरी तरह से रूपांतरित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, मूलाधार चक्र, जो भोजन और नींद के लिए तरसता है, अगर आपने सही तरीके से जागरूकता पैदा कर ली है, तो वही इन चीजों से आप को पूरी तरह से मुक्त भी कर सकता है।
स्वाधिष्ठान
दूसरा चक्र हैः स्वाधिष्ठान । अगर आपकी ऊर्जा स्वाधिष्ठान में सक्रिय है, तो आपके जीवन में आमोद प्रमोद की प्रधानता होगी। आप भौतिक सुखों का भरपूर मजा लेने की फिराक में रहेंगे। आप जीवन में हर चीज का लुत्फ उठाएंगे।
मणिपूरक
अगर आपकी ऊर्जा मणिपूरक में सक्रिय है, तो आप कर्मयोगी होंगे।आप दुनिया में हर तरह का काम करने को तैयार रहेंगे।
अनाहत
ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे।
विशुद्धि
इसी तरह से आपकी ऊर्जा अगर विशुद्धि में सक्रिय है, तो आप अति शक्तिशाली होंगे।
आज्ञा
अगर आपकी ऊर्जा आज्ञा में सक्रिय है, या आप आज्ञा तक पहुंच गये हैं, तो इसका मतलब है कि बौद्धिक स्तर पर आपने सिद्धि पा ली है। बौद्धिक सिद्धि आपको शांति देती है। आपके अनुभव में यह भले ही वास्तविक न हो, लेकिन जो बौद्धिक सिद्धि आपको हासिल हुई है, वह आपमें एक स्थिरता और शांति लाती है। आपके आस पास चाहे कुछ भी हो रहा हो, या कैसी भी परिस्थितियां हों, उस से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
सहस्रार
एक बार इंसान की ऊर्जा सहस्रार तक पहुँच जाती है, तो वह पागलों की तरह परम आनंद में झूमता है। अगर आप बिना किसी कारण ही आनंद में झूमते हैं, तो इसका मतलब है कि आपकी ऊर्जा ने उस चरम शिखर को छू लिया है।
ऊपर की ओर गिरना
दरअसल, किसी भी आध्यात्मिक यात्रा को हम मूलाधार से सहस्रार की यात्रा कह सकते हैं। यह एक आयाम से दूसरे आयाम में विकास की यात्रा है, इसमें तीव्रता के सात अलग-अलग स्तर होते हैं। आपकी ऊर्जा को मूलाधार से आज्ञा चक्र तक ले जाने के लिए कई तरह की आध्यात्मिक प्रक्रियाएं और साधनाएं हैं, लेकिन आज्ञा से सहस्रार तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है। कोई भी एक खास तरीका नहीं है। आपको या तो छलांग लगानी पड़ती है या फिर आपको उस गड्ढे में गिरना पड़ता है, जो अथाह है, जिसका कोई तल नहीं होता। इसे ही ‘ऊपर की ओर गिरना‘ कहते हैं। योग में कहा जाता है कि जब तक आपमें ‘ऊपर की ओर गिरने’ की ललक नहीं है, तब तक आप वहां पहुँच नहीं सकते।