प्रश्नकर्ता: सद्गुरु, संगीत का आध्यात्मिकता से किस तरह का संबंध है? मैं जानना चाहता हूं कि किसी संगीतवाद्य को बजाने को कैसे एक ध्यान की प्रक्रिया या किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में बदला जा सकता है?
सद्गुरु:
संगीत और आध्यात्मिकता आपस में जुड़े हुए नहीं हैं। बात बस इतनी है कि किसी भी काम में अगर आप पूरी तरह से डूब जाते हैं, उसमें पूरी तन्मयता से शामिल होते हैं, तो आध्यात्मिक प्रक्रिया वहीं शुरू हो जाती है। सबसे पहले तो यह समझ लें कि आध्यात्मिक प्रक्रिया है क्या।
किसी भी चीज को सतही तौर पर जानना, सांसारिकता है, और उसे ही गहराई तक जानना, आध्यात्मिकता है।
फर्श पर झाड़ू लगा कर भी आप आध्यात्मिक हो सकते हैं। आपका सांस लेना भी आपको आध्यात्मिक बना सकता है। उस लिहाज से आप संगीतवाद्य बजा कर भी आध्यात्मिक हो सकते हैं। बहुत-से लोगों ने आध्यात्मिक प्रक्रिया और संगीत दोनों को जाना है, लेकिन इसलिए नहीं कि वे आपस में जुड़े हुए हैं। हो सकता है आप कोई वाद्य-यंत्र बजाना जानते हों, लेकिन अगर उसमें आप पूरी तरह डूबे नहीं है, तो उसे आप ठीक से नहीं बजा पाएंगे। अगर आप पूरी तरह से उससे जुड़े हैं, तभी आप कुछ सार्थक संगीत बजा पाएंगे। इस स्तर का जुड़ाव अगर हो, तो आपके लिए आध्यात्मिकता का द्वार खुलेगा ही। कोई और रास्ता नहीं है। मैं तो कहता हूं कि अगर आप पूरी तरह मग्न हो कर फर्श पर झाड़ू भी लगाएंगे, तो यह द्वार खुल जाएगा। आपको कोई संगीतवाद्य सीखने की भी जरूरत नहीं।
एक आदमी ने नया- नया गिटार बजाना सीखा जिसे वह किसी को सुनाना चाहता था। लेकिन उसको स्टेज या कोई श्रोता नहीं मिला। वह तो बस गिटार बजाना चाहता था। आखिरकार वह अपने नेक इरादे के साथ एक वृद्धालय में गया। वहां एक बहुत बूढ़ा और बीमार आदमी बिस्तर पर पड़ा हुआ था। वह उसके पास जा कर बैठ गया। उस बूढ़े आदमी को एक भेंट देने के भाव से उसने आधे घंटे तक गिटार बजाया। फिर जब उसको लगा कि उसने एक बड़ा नेक काम पूरा कर दिया है, तो उसने खड़े हो कर उस बूढ़े आदमी की ओर देखा, जिसकी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी। उसने बड़े ही विनम्रता से कहा, “उम्मीद करता हूं, अब आप बेहतर हो जाएंगे।” बूढ़े आदमी ने उसको इशारे से पास आने को कहा। जब वह पास आया, तो बूढ़े आदमी ने कहा, “उम्मीद करता हूं, तुम भी बेहतर हो जाओगे!”
आध्यात्मिक प्रक्रिया जिंदगी के किसी एक खास पहलू से जुड़ी हुई नहीं है। या तो आपके लिए हर कण आध्यात्मिकता का एक द्वार है या फिर आपके लिए यह आयाम ही नहीं खुलता। आध्यात्मिक प्रक्रिया मंत्रों के जाप, ध्यान या गिटार बजाने या ऐसी ही किसी चीज से जुड़ी हुई नहीं है। ये काम ऐसे हैं, जिनको बिना पूरी तल्लीनता के किया ही नहीं जा सकता; इसी कारण से इन गतिविधियों को आध्यात्मिक प्रक्रिया से जोड़ दिया गया है। वरना आध्यात्मिकता के लिए ऐसी किसी चीज की जरूरत नहीं। अगर आप यहां पूरी तल्लीनता से बैठे रहें, इतना कि आप अपना आपा खो दें, आप बिल्कुल रिक्त हो जाएं, तो फिर आप जो भी काम करेंगे वही एक आध्यात्मिक प्रक्रिया होगी। वरना कोई भी काम आध्यात्मिक प्रक्रिया नहीं है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “प्रार्थना करने से ज्यादा फुटबाल को किक मारते समय आप ईश्वर के अधिक करीब होते हैं।” क्योंकि जब तक आप पूरी तरह से खुद को खेल में शामिल नहीं करेंगे, आप फुटबाल को किक नहीं मार सकते। यह पूरी तरह से शामिल होने का नतीजा है, किसी विशेष गतिविधि का नहीं, कि आपके लिए यह द्वार खुलता है। अगर आप संगीत में बहुत अच्छे हैं, तो जरूर बजाइए।