भारतीय संस्कृति बहुत जटिल है और एक जबर्दस्त घालमेल-सी लगती है। लेकिन इस घालमेल-सी दिखने वाली हजारों साल पुरानी संस्कृति की बुनियाद विज्ञान पर आधारित है। “हम जो करते हैं, क्यों करते हैं” नामक इस लेखमाला में हम भारतीय संस्कृति के तमाम तत्वों की बुनियाद पर नजर डालेंगे और इस बात पर रौशनी डालने की कोशिश करेंगे कि किस तरह इसकी छोटी-से-छोटी बारीकी भी इंसान की तत्कालिक खुशी के साथ- साथ उसके परम खुशहाली के लिए तराशी गई थी।
आज की पोस्ट में, हम सद्गुरु के शब्दों में सोने के तरीके से जुड़े कुछ अंधविश्वासों का तार्किक खुलासाकरने की कोशिश कर रहे हैं
सद्गुरु:
सही दिशा में सोना
भारत में, यह बताया जाता है कि सोते समय सिर उत्तर दिशा की तरफ नहीं रखना चाहिए, क्यों? आइए सबसे पहले आपके शरीर की इंजिनियरिंग को देखते हैं। आपका दिल शरीर के बीचोंबीच में नहीं है, यह आपके शरीर में लगभग तीन चोथाई ऊंचाई पर है, क्योंकि खून को नीचे की तरफ पम्प करने की बजाए गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ उपर की तरफ पम्प करना अधिक मुश्किल होता है। नीचे की तरफ जाने वाली नसों की तुलना में ऊपर की तरफ जाने वाली नसें ज्यादा बारीक होती हैं। दिमाग में जाने वाली नस तो लगभग एक बाल जैसी महीन होती हैं, इस हद तक महीन कि खून की एक बूंद भी ज्यादा नहीं जा सके। अगर खून की एक बूंद भी उनमें ज्यादा पम्प हो जाए तो कोई नस फट जाएगी और आपको ब्रेन हेमरिज हो जाएगा।
बहुत से लोगों को ब्रेन हेमरिज की शिकायत होती है। जरूरी नहीं कि इससे आपके अंदर कोई बहुत बड़े पैमाने पर नुकसान हो, लेकिन थोडा नुकसान तो होता ही है। आप ज्यादा सुस्त हो सकते हैं, और लोग आजकल ऐसा ही होते जा रहे हैं। अगर आप बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दें तो आपकी होशियारी का स्तर ३५ साल की उम्र के बाद कई तरह से गिरने लगता है। आप अगर काम चला पा रहे हैं तो अपनी याददाश्त के कारण, न कि अपनी बुद्धिमानी के कारण।