अपनी तरफ ध्यान खींचने का प्रयास भी एक रोग हैः ओशो

हम प्रेम लिए आतुर होते हैं। तुम्हें पता नहीं होगा कि क्यों? क्योंकि प्रेम के बिना ध्यान नहीं मिलता। प्रेम की तलाश वस्तुतः ध्यान की तलाश है। कोई तुम पर ध्यान दे, तो तुम्हारे भीतर जीवन का फूल खिलता है, बढ़ता है। कोई ध्यान न दे, कुम्हला जाता है। इसलिए प्रेम की प्यास कि कोई प्रेम करे, वस्तुतः प्रेम की नहीं है।
कोई ध्यान दे, कोई तुम्हारी तरफ देखे, कोई तुम्हारी तरफ देख कर प्रसन्न हो, आनंदित हो, तो तुम बढ़ते हो। मगर कभी-कभी यह रुग्ण रूप ले लेता है। रुग्ण रूप हर चीज के होते हैं। प्रेम की खोज तो स्वस्थ है, लेकिन कोई आदमी फिर यह भी कोशिश करता है कि किसी भी तरह ध्यान मिले, तो खतरा हो जाता है।
तुम अगर जोर से रोओ-चिल्लाओ, तो लोगों का ध्यान तुम्हारी तरफ आएगा। बच्चा सीख जाता है, मां अगर उसे ठीक से प्रेम नहीं करती। जिस बच्चे को मां ठीक से प्रेम करती है, वह रोता, चीखता, चिल्लाता नहीं है। लेकिन जिसकी मां ठीक से प्रेम नहीं करती, बच्चा ज्यादा रोता, चीखता, चिल्लाता है। क्योंकि अब वह एक तरकीब सीख रहा है कि जब वह चिल्लाता है, तो मां ध्यान देती है; सामान पटक देता है, तो मां ध्यान देती है; कोई चीज तोड़ देता है, तो मां ध्यान देती है।
कभी आपने ख्याल किया कि आपके घर में मेहमान आ जाएं, तो बच्चे ज्यादा चीजें पटकते हैं, ज्यादा उपद्रव मचाते हैं, वे मेहमानों का ध्यान खींच रहे हैं। वैसे शांत बैठे थे। और आप चाहते हैं कि जब मेहमान आएं तब वे शांत रहें। वे कैसे शांत रहें? घर में और लोग आए हों, उनका ध्यान…और मेहमान आपसे ही बातें कर रहे हैं और बच्चे की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं, तो बच्चा पच्चीस उपद्रव करेगा ताकि आप ध्यान दो, मेहमान भी ध्यान दें।
अनजाने चल रहा है। लेकिन ध्यान बढ़ोत्तरी का हिस्सा है। वह बढ़ेगा, जितना ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। फिर लोग बीमार हो जाते हैं। जैसे एक राजनीतिज्ञ है, वह भी और कुछ नहीं मांग रहा है। पद पर हो कर मिलेगा क्या उसको? हजार तरह की गालियां मिलेंगी, हजार तरह का अपमान मिलेगा, हजार तरह की निंदा मिलेगी, और कुछ मिलने वाला नहीं है।
लेकिन एक बात है, कि जब वह पद पर होगा, कुर्सी पर होगा, तो ध्यान मिलेगा, चारों तरफ से लोग देखेंगे। पद की खोज ध्यान की खोज है, लेकिन रुग्ण। क्योंकि यह जो ध्यान है, इस तरह मांगना, जबर्दस्ती मांगना है, हिंसात्मक है। जैसे बच्चा चीज तोड़ कर ध्यान मांग रहा है, ऐसे ही राजनीतिज्ञ भी हिंसात्मक हो कर ध्यान मांग रहा है।
इसलिए आप देखें, अगर कभी किसी मुल्क में युद्ध हो जाए, तो युद्ध के समय में जो मुल्क का बड़ा नेता है, वह महानेता हो जाता है। क्योंकि युद्ध के समय में जितना ध्यान आपको नेता पर देना पड़ता है, शांति के समय में नहीं देना पड़ता है। इसलिए राजनीतिशास्त्र कहता है कि अगर किसी को महान नेता होना है तो पद पर होते वक्त युद्ध होना ही चाहिए। नहीं तो नहीं होता।
हिंदुस्तान-पाकिस्तान का युद्ध हो गया बांग्लादेश को लेकर इंदिरा को आप कहने लगे कि महाकाली है। वह आपने कभी नहीं कहा होता। नेता खो जाते हैं, अगर युद्ध उनके जीवन में न घटे। और अगर युद्ध में वे हार जाएं, तो फिर ध्यान उनको बिल्कुल नहीं मिलता। अगर युद्ध में जीत जाएं, तो फिर पूरा ध्यान मिलता है। इसलिए नेता बड़ी कोशिश में होता है कि किसी तरह जीत का सेहरा उसके सिर बंध जाए, ताकि सारा मुल्क, सारी दुनिया उस पर ध्यान दे।

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