कैसे करें अपने भाग्य पर काबू?

जब हम अटलांटा से निकले थे, तब तापमान पंचानबे डिग्री फॉरेनहाइट था और आसमान सफेद, पर यहां कम-से-कम दस डिग्री ठंडा था और हवा में नमी नहीं थी… पढ़ें धारावाहिक ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’ के हिंदी अनुवाद की अगली कड़ी:

मैंने सद्‌गुरु से पूछा, ‘तो अपने भाग्य को पूरी तरह अपने हाथ में लेने के लिए हमें क्या करना होगा? मैंने किसी महिला को आपसे अपने विचारों पर काबू करने के बारे में सवाल करते सुना था। वो बता रही थीं किस तरह उनके विचार उनके काबू में न रहकर बेवजह हर दिशा में दौड़ते रहते हैं। हममें से अधिकतर लोगों के साथ ऐसा होता है। मैंने आपको जवाब देते सुना कि हम तब तक अपने विचारों पर काबू नहीं कर सकते जब तक हम खुद को कई सारी चीजों – हमारा शरीर, हमारा मन, हमारा कामकाज और हमारा परिवार – के एक ढेर के रूप में देखते रहेंगे। सुनकर लगा था मानो आप कह रहे हों कि इन सबका हमारे भाग्य पर काबू करने से कोई संबंध है। क्या आप यह बात समझा सकते हैं?’

बाहरी स्थितियों के कारण आपको थोड़ा आनंद मिल सकता है, पर अधिकतर लोगों के लिए स्वयं में रहकर पूरी तरह आनंदमय होना संभव नहीं हो पाता। इस स्थिति में आनंद कुछ बाहरी चीजों के कारण है, आपका अपना नहीं।
सद्‌गुरु ने समझाना शुरू किया, ‘जैसे ही आप खुद को उन सब चीजों से जुड़ा हुआ मानती हैं, जो आप नहीं हैं, तो आप इन विचारों को नहीं रोक सकतीं। भौतिक शरीर से शुरू करके, जो एक गठरी है, मन, भावनाएं, चीजें, लोग, आपने इतनी सारी झूठी पहचानें जोड़ ली हैं कि उनका सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता। ‘लोग इन झूठी पहचानों के साथ अपने संबंधों को समझ नहीं पाते। आप इस हाल में खुशी पा सकती हैं। बाहरी स्थितियों के कारण आपको थोड़ा आनंद मिल सकता है, पर अधिकतर लोगों के लिए स्वयं में रहकर पूरी तरह आनंदमय होना संभव नहीं हो पाता। इस स्थिति में आनंद कुछ बाहरी चीजों के कारण है, आपका अपना नहीं। ‘सद्गुरु, मेरी जान-पहचान के अधिकतर लोग एक भरा-पूरा जीवन चाहते हैं, मैंने कहा। ‘सही जीवन-साथी, सुंदर दृश्य, खूब धन-दौलत। मुझे भी यह सब पसंद है, पर मैं जानती हूं कि हम खुद को कम आंक रहे हैं। मुझे लगता है कि इससे आगे भी काफी कुछ हम पा सकते हैं।

‘निश्चित रूप से आप बहुत कुछ पा सकती हैं। ज़रूरी साधना करने पर आप तन, मन और ऊर्जा पर कुछ हद तक काबू कर सकती हैं। अगर कोई आध्यात्मिक भाग्य पाना चाहता है तो उसे और अधिक नियंत्रण करना होगा, और निपुणता हासिल करनी होगी। लेकिन अगर आप केवल भौतिक सुख चाहती हैं तो थोड़े-बहुत नियंत्रण से काम चल जाएगा और इसको हासिल करना बड़ा सरल है।

‘मुझे अभी भी लगता है कि केवल आरामदेह जीवन जीने की कोशिश करके हम अपना मूल्य घटा रहे हैं’, मैंने कहा।

‘अपने तन-मन पर थोड़े-से नियंत्रण से ही आप ये सब चीजें आसानी से पा सकती हैं। यदि आप अपनी जीवन-ऊर्जा को एक निश्चित स्तर से ऊपर उठाकर तीव्र कर लें तो ये आपके तन और मन से अधिक प्रबल हो जाएगी और तब आप बिना मेहनत के अपना मनचाहा रच पाएंगी। अपना जीवन उस पर जरा भी खपाये बिना संसार की हर मनचाही भौतिक वस्तु आपके कदमों में होगी। इसमें आपका जरा भी समय नष्ट नहीं होगा। सफल लोग वे होते हैं, जो अपने मन पर कुछ हद तक नियंत्रण कर पाते हैं। वे किसी भी काम में खुद को एक विशेष रूप में दूसरों से अधिक लगा पाते हैं। वैसे सबसे अच्छा तो यह होगा कि आप चाहने की विवशता के पार निकल जाएं, वरना आप बहुत-सी गैरजरूरी चीजों का नर्माण कर इस धरती का संतुलन बिगाड़ देंगी,’ सद्‌गुरु ने कहा।

यदि एक पल के लिए आप यह अनुभव करें कि सृजन का स्रोत आपके अंदर है और अपनी एकाग्रता को आप खुद में केंद्रित कर लें, तो आप अपने भाग्य को दोबारा अपने हाथों से लिख सकती हैं।
मैंने कहा, ‘मैं हताश हूं, क्योंकि जब मैं अपने जीवन में एकाग्रचित्त हो पाई तब बहुत-सी ऐसी बाहरी चीजें करवा सकी जो मैं होते देखना चाहती थी, लेकिन मेरे भाग्य में कुछ भी आध्यात्मिक करवाना नहीं लिखा था’।

सद्‌गुरु ने कहा, ‘आप अब तक केवल छोटी-छोटी चीजें ही कर पाई हैं, बड़ी चीजें नहीं। जरूरत इस बात की है कि आप बड़ी-बड़ी चीजें करने की काबिलियत हासिल करें। यदि एक पल के लिए आप यह अनुभव करें कि सृजन का स्रोत आपके अंदर है और अपनी एकाग्रता को आप खुद में केंद्रित कर लें, तो आप अपने भाग्य को दोबारा अपने हाथों से लिख सकती हैं।’

निश्चित रूप से मैं बड़ी-बड़ी चीजें नहीं कर पाई थी। सद्‌गुरु मुझे याद दिला रहे थे कि मेरे स्वास्थ्य में इतना सुधार कितनी महत्वपूर्ण बात है। मैं उसका मूल्य कम नहीं करना चाहती थी। यदि आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है, तो उस पर सबसे पहले ध्यान देना होता है। शक्तिहीन और पीड़ा से कराहते रहने के कारण ईशा के अभ्यास मेरे लिए शुरू में बड़े मुश्किल होते थे। अब उस समस्या के न होने के कारण मैं योग के सूक्ष्म आयामों को और अधिक अनुभव कर पा रही हूं। अब अपने अस्तित्व की सारी संभावनाएं पा लेने की इच्छा बड़ी तेज हो गई है।

कार के इंटर-स्टेट पर दौड़ते समय मैं धुंधलाते दृश्यों पर अधिक ध्यान नहीं दे पा रही थी। लेकिन अब हम दो लेन वाले हाइवे पर थे और उत्तर जॉर्जिया पर्वतों के करीब पहुंचने वाले थे। लहलहाते हरे-भरे खेत, कही-कहीं कटी हुई फसल की सुनहरी गोल गड्डियां और चारों तरफ पर्वतों के धुंधलके से घिरे हम। एक जगह रुककर हमने कन्वर्टिबल के ऊपरी छज्जे को हटा दिया। जब हम अटलांटा से निकले थे तब तापमान पंचानबे डिग्री फॉरेनहाइट था और आसमान सफेद, पर यहां कम-से-कम दस डिग्री ठंडा था और हवा में नमी नहीं थी। आसमान बहुत सुंदर और नीली दमक लिए हुए था।

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