आजकल के समाज में रिश्तों का इतनी आसानी से बिगड़ जाना क्या ये दर्शा रहा है कि समाज में एक जीवन एक साथी की व्यवस्था ख़त्म हो रही है? क्या सामाजिक व्यवस्था में एकविवाह प्रथा का अंत होता जा रहा है? आइये जानते हैं सद्गुरु से l
क्या एक जीवन, एक साथी वाली व्यवस्था ख़त्म हो रही है?
प्रश्न: सद्गुरु, मुझे ऐसा विश्वास था या शायद मुझे “एक जीवन, एक साथी” वाली पद्धति में विश्वास कराया गया था| लेकिन अब मैं यह देख रहा हूँ कि एक साथी के साथ सम्बन्ध वाली व्यवस्था अब कहीं नज़र नही आती| यह सारा विचार ही गायब हो गया है| आपको इस बारे में क्या लगता है?
सद्गुरु : शायद यह जेएनयू में गायब हो गया हो, लेकिन बाकी विश्व में यह वास्तविक रूप से नही गया है| अगर आप अमेरिका भी जायें जहाँ इतना अभेद है, इतनी व्यवस्थाहीनता है,फिर भी जब लोग शादी करते हैं तो उन्हें यह विश्वास होता है कि यह जीवन भर के लिये है| हाँ, दो वर्ष बाद जीवन ख़त्म हो जाता है—वो बात अलग है| लेकिन जब वे शादी करते हैं तो उन्हें यह विश्वास होता है कि यह जीवन भर के लिये है| यही कारण है कि वे हीरों में पैसा लगाते हैं| उन्हें लगता है कि यह निवेश जीवन भर के लिये है|
दुर्भाग्यवश, सम्बन्ध, रिश्ते, कई प्रकार के कारणों से बिगड़ते हैं| एक कारण कि वे क्यों इतनी आसानी से बिगड़ जाते हैं यह है कि लोग जीवन में बहुत देर से मिल रहें हैं| जब लोग छोटी उम्र में मिलते थे, सत्रह या अट्ठारह की उम्र में, तो उनके व्यक्तित्व ठोस नही हुआ करते थे| दो लोग आसानी से एक व्यक्ति की तरह हो जाते थे|
क्या हमारे पास बेहतर व्यवस्था है?
हमारे जीवन के किसी भी मुकाम पर, चाहे वह सामाजिक व्यवस्था हो, राजनीतिक व्यवस्था हो या समाज का मनोवैज्ञानिक ढांचा हो, इससे पहले कि हम उसे तोड़ें, हमें यह सोचना चाहिये कि क्या हमारे पास कोई बेहतर व्यवस्था है?
अब वे दोनों तीस की उम्र में मिल रहे हैं, और दोनों दो कंक्रीट खण्डों की तरह ठोस हैं| सामान्य रूप से मैं देखता हूँ कि अगर युवा लोग छोटी उम्र में शादी करते हैं तो वे टिके रहते हैं| यदि पचास साल के ऊपर के लोग भी शादी करते हैं तो वे भी टिके रहते हैं क्योंकि वे फिर से नरम पड़ जाते हैं| तीस और पचास के बीच थोडा कंक्रीट खण्डों वाला मामला होता है| मनमुटाव इसलिये होता है क्योंकि दोनों लोग मजबूत हैं| अगर वे बुद्धिमान हैं तो वे कुछ अलग ही पा सकेंगे|
चाहे एकविवाह प्रथा हो या बहुविवाह या कोई और विवाह, महत्वपूर्ण बात जो हमें समझनी चाहिये, वह यह है कि आप और मैं यहाँ इसलिये हैं क्योंकि एक पुरुष और स्त्री साथ आये| शायद आप यह सोचते हों कि चूँकि वे माता पिता थे, वे प्रेम नही करते या सहवास नही करते, और क्योंकि किसी पंडित ने एक मंत्र बोला तो आप का जन्म हो गया| नही, ऐसा नही है| किसी की शारीरिक ज़रूरत है जिसे वे शादी के माध्यम से पूरा करते हैं और इसी के कारण हम यहाँ हैं|
अपने जीवन के एक मुकाम पर, जब आप अट्ठारह के हैं, आप शादी के खिलाफ हो सकते हैं| लेकिन जब आप तीन साल के थे तब आप शादी के पक्ष में थे—अपने माता पिता की शादी के| क्या आप खुश नही थे कि आप के माता पिता की शादी स्थिर रही? जब आप अट्ठारह के होते हैं, तब आप मुक्त सेक्स के बारे में, कोई शादी नहीं और ऐसी चीज़ों के बारे में सोचते हैं| लेकिन जब आप पचास-पचपन के हो जाते हैं तब आप फिर से ऐसा रिश्ता चाहते हैं जो स्थिर हो|
एक कारण कि रिश्ते क्यों इतनी आसानी से टूट जाते हैं, यह है कि लोग अपने जीवन में बहुत देर से मिल रहे हैं
भावनात्मक और शारीरिक स्थिरता ज़रूरी है
ये आपका जीवन है अतः ये आपको सोचना है कि क्या आप ऐसा जीवन जीना चाहते हैं जिसमें आप भावनात्मक रूप से हमेशा किसी की राह देख रहे हों, या आप इसको एक ख़ास तरीके से स्थिर करना चाहते हैं जिससे आप अपनी बुद्धिमत्ता और समय का उपयोग कर कुछ और निर्माण कर सकें, आप का काम या कुछ और| यदि भावनाएं और शरीर स्थिर हो जाते हैं तो अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करने की आपकी क्षमता ज्यादा बेहतर होगी बजाय उस परिस्थिति के जिसमें आपको रोज़ किसी को ढूँढने के लिये इधर उधर भटकना पड़े|
ये आपका जीवन है अतः ये आपको सोचना है कि क्या आप ऐसा जीवन जीना चाहते हैं जिसमें आप भावनात्मक रूप से हमेशा किसी की राह देख रहे हों, या आप इसको एक ख़ास तरीके से स्थिर करना चाहते हैं जिससे आप अपनी बुद्धिमत्ता और समय का उपयोग कर कुछ और निर्माण कर सकें|
मैं इसे किसी हलके तरीके से नही कह रहा लेकिन अमेरिका में मैंने देखा है, चालीस, पैंतालिस की उम्र की कई महिलायें,जो अच्छे लोग हैं, बार में बैठकर इंतज़ार करती हैं—आजकल तो अब सब ऑन लाइन हो गए हैं, वर्ना वे इंतज़ार करती हैं कि कोई उन्हें ले जाये|
मुझे लगता है, यह बहुत ही भयावह है| पैंतालिस की उम्र में जो महिला है उसे अच्छे वातावरण में किसी का प्रेम और आदर मिलना चाहिये था, लेकिन वो अब बैठी है और राह देख रही है कोई अजनबी आकर उसे ले जाये,और वो अगले उन दस मिनटों में अपना निर्णय लेगी जब वो उसके लिये ड्रिंक या डिनर या कुछ और लेगा| यह अत्यंत दुखद है|
इसका अर्थ यह नही है कि हर कोई ऐसा ही करेगा, लेकिन सामाजिक व्यवस्था को तोड़ने के पहले आपको अधिकतर लोगों की खुशहाली के बारे में सोचना चाहिये| आपको यह विचार करना चाहिये कि क्या आप के पास इसकी जगह कोई और बेहतर व्यवस्था है? हमारे जीवन के किसी भी मुकाम पर, चाहे वो सामाजिक व्यवस्था हो या राजनितिक व्यवस्था या समाज का मनोवैज्ञानिक ढांचा, उसको तोड़ने के पहले हमें गंभीरता से सोचना चाहिये कि क्या हमारे पास कोई और बेहतर व्यवस्था है? किसी दूसरी व्यवस्था के बिना, यदि आप अभी की व्यवस्था को तोड़ते हैं जो ठीकठाक चल रही है तो यह पागलपन होगा|