नवरात्रि – दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती स्त्री-गुण के तीन आयामों के प्रतीक हैं। वे तीन मूल गुणों – तमस (जड़ता), रजस (सक्रियता) और सत्व(ज्ञान) के भी प्रतीक हैं…
नवरात्रि ईश्वरत्व के स्त्री गुण यानी – दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा से जुड़ने का एक अवसर है। ये तीन देवियाँ अस्तित्व के तीन मूल गुणों – तमस, रजस और सत्व की प्रतीक हैं। तमस का अर्थ है जड़ता। रजस का गुण सक्रियता और जोश से जुड़ा है। और सत्व गुण, ज्ञान और बोध का गुण है। सभी नवरात्रि देवी को समर्पित होते हैं, और दसवां दिन दशहरा तीनों मूल गुणों से परे जाने से जुदा होता है…
नवरात्रि ईश्वर के स्त्री रूप को समर्पित है। दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती स्त्री-गुण यानी स्त्रैण के तीन आयामों के प्रतीक हैं। वे अस्तित्व के तीन मूल गुणों – तमस, रजस और सत्व के भी प्रतीक हैं। तमस का अर्थ है जड़ता। रजस का मतलब है सक्रियता और जोश। सत्व एक तरह से सीमाओं को तोडक़र विलीन होना है, पिघलकर समा जाना है। तीन खगोलीय पिंडों से हमारे शरीर की रचना का बहुत गहरा संबंध है – पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा। इन तीन गुणों को इन तीन पिंडों से भी जोड़ कर देखा जाता है। पृथ्वी माता को तमस माना गया है, सूर्य रजस है और चंद्रमा सत्व।
नवरात्रि के पहले तीन दिन तमस से जुड़े होते हैं। इसके बाद के दिन राजस से, और नवरात्रि के अंतिम दिन सत्व से जुड़े होते हैं।
नवरात्रि – दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा
जो लोग शक्ति, अमरता या क्षमता की इच्छा रखते हैं, वे स्त्रैण के उन रूपों की आराधना करते हैं, जिन्हें तमस कहा जाता है, जैसे काली या धरती मां। जो लोग धन-दौलत, जोश और उत्साह, जीवन और भौतिक दुनिया की तमाम दूसरी सौगातों की इच्छा करते हैं, वे स्वाभाविक रूप से स्त्रैण के उस रूप की ओर आकर्षित होते हैं, जिसे लक्ष्मी या सूर्य के रूप में जाना जाता है। जो लोग ज्ञान, बोध चाहते हैं और नश्वर शरीर की सीमाओं के पार जाना चाहते हैं, वे स्त्रैण के सत्व रूप की आराधना करते हैं। सरस्वती या चंद्रमा उसका प्रतीक है।
तमस पृथ्वी की प्रकृति है जो सबको जन्म देने वाली है। हम जो समय गर्भ में बिताते हैं, वह समय तामसी प्रकृति का होता है। उस समय हम लगभग निष्क्रिय स्थिति में होते हुए भी विकसित हो रहे होते हैं। इसलिए तमस धरती और आपके जन्म की प्रकृति है। आप धरती पर बैठे हैं। आपको उसके साथ एकाकार होना सीखना चाहिए। वैसे भी आप उसका एक अंश हैं। जब वह चाहती है, एक शरीर के रूप में आपको अपने गर्भ से बाहर निकाल कर आपको जीवन दे देती है और जब वह चाहती है, उस शरीर को वापस अपने भीतर समा लेती है।
इन तीनों आयामों में आप खुद को जिस तरह से लगाएंगे, वह आपके जीवन को एक दिशा देगा। अगर आप खुद को तमस की ओर लगाते हैं, तो आप एक तरीके से शक्तिशाली होंगे। अगर आप रजस पर ध्यान देते हैं, तो आप दूसरी तरह से शक्तिशाली होंगे। लेकिन अगर आप सत्व की ओर जाते हैं, तो आप बिल्कुल अलग रूप में शक्तिशाली होंगे। लेकिन यदि आप इन सब के परे चले जाते हैं, तो बात शक्ति की नहीं रह जाएगी, फिर आप मोक्ष की ओर बढ़ेंगे।
जो पूर्ण जड़ता है, वह एक सक्रिय रजस बन सकता है। रजस पुन: जड़ता बन जाता है। यह परे भी जा सकता है और वापस उसी तमस की ओर भी जा सकता है। दुर्गा से लक्ष्मी, लक्ष्मी से दुर्गा, सरस्वती कभी नहीं हो पाई। इसका मतलब है कि आप जीवन और मृत्यु के चक्र में फंसे हैं। उनसे परे जाना अभी बाकी है।
नवरात्रि – दुर्गा और लक्ष्मी से जुड़े आयाम एक चक्र की तरह हैं
तो ये दोनों घटित होते रहते हैं। जो चीज जड़ता की अवस्था में है, वह रजस व सक्रियता की स्थिति में आएगी और फिर से वापस जाकर एक खास समय के लिए जड़ता की स्थिति में पहुंच सकती है। उसके बाद फिर सक्रिय हो सकती है। यह एक व्यक्ति के रूप में आपके साथ हो रहा है, यही पृथ्वी के साथ हो रहा है, यही तारामंडल के साथ हो रहा है, यही समूचे ब्रह्मांड के साथ हो रहा है। ये सब जड़ता की अवस्था से सक्रिय होते हैं, और फिर जड़ता की अवस्था में चले जाते हैं। मगर महत्वपूर्ण चीज यह है कि इस इंसान में इस चक्र को तोडक़र उसके परे जाने की काबिलियत है। लिंग भैरवी (ईशा योग केंद्र में सद्गुरु द्वारा प्रतिष्ठित देवी का एक रूप) के रूप में देवी के इन तीन आयामों को स्थापित किया गया है। आपको अपने अस्तित्व और पोषण के लिए इन तीन आयामों को ग्रहण करने में समर्थ होना चाहिए, क्योंकि आपको इन तीनों की जरूरत है। पहले दो की जरूरत आपके जीवन और खुशहाली के लिए है। तीसरा परे जाने की चाहत है।
नवरात्र साधना
नवरात्रि के दिनों में लिंग भैरवी देवी मंदिर में होने वाले आयोजनों का लाभ सभी उठा सकते हैं। जो लोग देवी की कृपा से जुड़ना चाहते हैं, उनके लिए सद्गुरु ने एक सरल और शक्तिशाली साधना बनाई है, जिसका अभ्यास सभी अपने घरों में कर सकते हैं। ये साधना हर दिन 10 अक्टूबर से 18 अक्टूबर 2018 तक करनी है, और इस साधना को आप निचे दिए गये निर्देशों के अनुसार करना है। (यह साधना गृहस्थ भी कर सकते हैं)
देवी के लिए एक दिया जलाएं
देवी के फोटो, गुडी, देवी यंत्र या फिर अविघ्ना यंत्र के सामने “जय भैरवी देवी” स्तुति को कम से कम तीन बार गाएं। बेहतर होगा कि आप 11 बार यह स्तुति गाएं। (एक पूरी स्तुति देवी के 33 नामों के उच्चारण को कहते हैं। ये 33 नाम नीचे दिए गएँ हैं।)
देवी को कुछ अर्पित करें। आप कोई भी चीज़ अर्पित कर सकते हैं।
इस साधना को दिन या रात में किसी भी समय कर सकते हैं और यह साधना सभी कर सकते हैं। इस साधना में खाने-पीने से जुड़े कोई नियम नहीं हैं, लेकिन नवरात्रि त्यौहार के समय सात्विक खाना बेहतर होगा – जैसी कि पारंपरिक रूप से मान्यता भी है।
ये देवी के 33 पावन नाम हैं। अगर आप भक्ति भाव से इन्हें गाएं, तो आप देवी की कृपा के पात्र बन जाते हैं।